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Mumbai News: अवधि समाप्ति बाद भी भूमि पर कब्जा रखने के लिए लगा डेढ़ लाख का जुर्माना, दुराचार के आरोपी जमानत नहीं
- म्हाडा और सोलापुर महानगरपालिका पर अधिग्रहण की अवधि समाप्ति बाद भी भूमि को कब्जा में रखने के लिए लगाया डेढ़ लाख का जुर्माना
- बॉम्बे हाई कोर्ट ने सौतेली पोती से दुराचार के आरोपी व्यक्ति को जमानत देने से किया इनकार
- बेटी के 20 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने के अनुरोध को लेकर माता-पिता को लगाई फटकार
Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र आवास और क्षेत्र विकास प्राधिकरण (म्हाडा) और सोलापुर महानगरपालिका पर अधिग्रहण अवधि के बाद भी संपत्तियों पर कब्जा रखने के लिए डेढ़ लाख रुपए का जुर्माना लगाया। अदालत ने जुर्माने की राशि को तीन भूमि मालिकों को 50-50 हजार रुपए देने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति एम.एस. सोनक और न्यायमूर्ति जितेंद्र जैन की पीठ ने सोलापुर में अपनी भूमि की बहाली के लिए भूमि मालिकों की याचिका पर कहा कि बॉम्बे भूमि अधिग्रहण अधिनियम और म्हाडा अधिनियम दो स्वतंत्र कानून हैं। दोनों में से किसी भी अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो राज्य सरकार को भूमि अधिग्रहण के लिए अधिसूचना जारी करने से छूट देता हो, जिसमें पहले से अधिग्रहण आदेश दिया गया था। याचिकाकर्ताओं की भूमि पर कब्जा जुलाई 1987 में सोलापुर जिलाधिकारी द्वारा एक अधिग्रहण आदेश के बाद म्हाडा और सोलापुर महानगरपालिका के अधिकारियों द्वारा अपने अधिकार में लिया गया था। याचिकाकर्ताओं ने अपनी संपत्तियों के अधिग्रहण के लिए 1 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर के मुआवजे पर सहमति व्यक्त की थी। राज्य सरकार ने सड़क और नाले के निर्माण के लिए याचिकाकर्ताओं की संपत्तियों का अधिग्रहण करने का आदेश जारी किया था। राज्य सरकार ने 24 अगस्त 1987 को म्हाडा अधिनियम की धारा 41 के प्रावधान के तहत एक नोटिस जारी किया, लेकिन भूमि अधिग्रहण को पूरा करने के लिए म्हाडा अधिनियम की धारा 41 (1) के तहत कोई अधिसूचना जारी नहीं की। जबकि म्हाडा अधिकारियों ने भूमि अधिग्रहण अवधि की अवधि (24 वर्ष) समाप्त होने के बावजूद भूमि को अपने कब्जे में रखा। इसलिए याचिकाकर्ताओं ने अपनी भूमि की बहाली के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने सौतेली पोती से दुराचार के आरोपी व्यक्ति को जमानत देने से किया इनकार
दूसरे मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने नाबालिग सौतेली पोती से दुराचार के आरोपी व्यक्ति को जमानत देने से इनकार कर दिया। मुंबई की एक हाउसिंग सोसायटी के सुरक्षा गार्ड ने 2023 में पीड़िता की दादी से शादी की थी और उसके घर में रहने लगा था। पीड़िता की मां काम के लिए बाहर जाती थी, तो 5 वर्षीय बेटी (पीड़िता) और छोटे बेटे को अपनी मां के घर पर छोड़ देती थी। अभियोजन पक्ष का आरोप कि पीड़िता की दादी भी नौकरानी के रूप में काम करती थी। इसलिए वे आरोपी के कार्यस्थल पर उसकी देखभाल में रहते थे। 31 अगस्त 2023 को मां से गुप्तांग में दर्द की शिकायत की, तो उसकी मां को आरोपी की हरकत के बारे में पता चला। उसने 4 सितंबर 2023 को एफआईआर दर्ज कराई। अतिरिक्त सरकारी वकील मयूर सोनावणे ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि अपराध की प्रकृति गंभीर है और आरोपी पीड़िता की दादी के माध्यम से उससे संबंधित होने के कारण साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ कर सकता है। इसलिए उसे रिहा नहीं किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की एकल पीठ ने आरोपी की याचिका खारिज करते हुए कहा कि पीड़िता को बहुत पीड़ा हुई है और उसे मनोचिकित्सक के पास ले जाने का परामर्श दिया गया है। पीड़िता अभी भी सदमे में है। याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप बेहद गंभीर हैं। पीड़िता की दादी जो उसकी पत्नी है, उस पर दबाव डालने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने मानसिक रूप से बीमार गोद ली गई बेटी के 20 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने के अनुरोध को लेकर माता-पिता को लगाई फटकार
इसके अलावा बॉम्बे हाई कोर्ट ने मानसिक रूप से बीमार गोद ली गई बेटी के 20 सप्ताह के गर्भ को समाप्त के अनुरोध को लेकर उसके माता-पिता को फटकार लगाई। अदालत ने सरकारी जेजे अस्पताल में मेडिकल बोर्ड को महिला और उसकी गर्भावस्था की जांच करने और उसकी मानसिकता का मूल्यांकन करने का आदेश दिया। 8 जनवरी को मामले की अगली सुनवाई रखी गई है। न्यायमूर्ति रवींद्र घुगे और न्यायमूर्ति राजेश पाटिल की पीठ ने 1998 में लड़की को गोद लेने वाले 60 वर्षीय माता-पिता की याचिका पर सुनवाई के दौरान नाराजगी जताते हुए कहा कि वे 13 वर्ष की आयु से बेटी को घंटों घर से बाहर रहने की अनुमति क्यों दी? जब आप कहते हैं कि वह मानसिक रूप से बीमार है, तो आप उसे 10 बजे रात को घर से बाहर जाने की कैसे अनुमति दे सकते हैं? आप ने स्वेच्छा से उसके माता-पिता बनना चुना है। अब आप यह नहीं कह सकते कि वह हिंसक और बेकाबू है। आप उसकी देखभाल नहीं कर सकते। अतिरिक्त सरकारी वकील ने पीठ को बताया कि लड़की मानसिक रूप से विक्षिप्त नहीं थी, जैसा कि उसके माता-पिता ने आरोप लगाया है। लड़की बॉर्डरलाइन पर्सनालिटी डिसऑर्डर की शिकार है, जो अवसाद का एक प्रभाव है। उन्होंने गर्भवती महिला द्वारा गर्भपात के लिए कोई सहमति नहीं दिए जाने का हवाला देते हुए याचिका का विरोध किया। महिला को उसके दत्तक माता-पिता से अपेक्षित प्यार और स्नेह नहीं मिला, जो उसकी वर्तमान चिकित्सा स्थिति का एक कारण हो सकता है। सुनवाई के दौरान पीठ ने जानना चाहा कि महिला के माता-पिता ने अपनी दत्तक बेटी की अवैध गर्भ के संबंध में अभी तक कोई मामला क्यों दर्ज नहीं कराई है? इस पर वकील ने कहा कि बेटी असहयोगी है। इसलिए माता-पिता ने कोई मामला दर्ज कराना उचित नहीं समझा। इसलिए पीठ ने मुलुंड पुलिस स्टेशन को आदेश दिया कि जब भी माता-पिता इस मामले की जांच के लिए उनसे (पुलिस) संपर्क करें, तो कानून के अनुसार कार्रवाई करें।
Created On :   7 Jan 2025 10:01 PM IST