Mumbai News: पिता की मृत्यु 1956 से पहले हुई हो, तो बेटियों का संपत्ति में कोई अधिकार नहीं

पिता की मृत्यु 1956 से पहले हुई हो, तो बेटियों का संपत्ति में कोई अधिकार नहीं
  • बेटियों को पिता की संपत्ति में अधिकार को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट का फैसला
  • 20 साल बाद एक अहम फैसला सुनाया

Mumbai News : बेटियों को पिता की संपत्ति में अधिकार को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट ने 20 साल बाद एक अहम फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने कहा कि यदि पिता की मृत्यु 1956 से पहले हो गई हो, तो बेटियों को उनकी संपत्ति में कोई उत्तराधिकार का अधिकार नहीं है। 2007 में दो एकल न्यायाधीशों की पीठों द्वारा परस्पर विरोधी विचारों के बाद मामले को दो न्यायाधीशों को सौंपा गया था।न्यायमूर्ति ए.एस.चंदुरकर और न्यायमूर्ति जितेंद्र जैन की पीठ ने एक व्यक्ति की दो पत्नियों की दो बेटियों को उनकी संपत्ति में उत्तराधिकार को लेकर 20 साल बाद अपना फैसला सुनाया। पीठ से यह तय करने के लिए कहा गया था कि यदि पिता की मृत्यु 1956 से पहले हो गई हो तो क्या बेटी को उनके पिता की संपत्ति में कोई अधिकार मिल सकता है। पीठ ने कहा कि यदि पिता की मृत्यु हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के लागू होने से पहले हो गई हो तो बेटी को उनके पिता की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं मिल सकता है। पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि हिंदू महिला संपत्ति अधिकार अधिनियम, 1937, बेटियों को कोई उत्तराधिकार अधिकार नहीं देता है, क्योंकि कानून में स्पष्ट रूप से बेटों का उल्लेख किया गया है। बेटियों के लिए कोई प्रावधान नहीं है। अदालत ने कहा कि यदि विधायिका का इरादा बेटियों को शामिल करने का होता, तो वह स्पष्ट रूप से ऐसा करती।

यह है मामला : यह मामला एक ऐसे व्यक्ति की संपत्ति को लेकर पारिवारिक विवाद से जुड़ा था, जिसकी दो पत्नियां थीं। पहली शादी से उन्हें दो बेटियां थीं। दूसरी शादी से एक बेटी थी। पहली पत्नी की मृत्यु 1930 में हो गई थी। 10 जून 1952 को उस व्यक्ति का निधन हो गया। दूसरी पत्नी जो जीवित थी, उनकी भी 8 जुलाई 1973 को मृत्यु हो गई। वे अपनी बेटी के पक्ष में 14 अगस्त 1956 की वसीयत छोड़ गईं। उनकी पहली पत्नी की दूसरी बेटी ने पिता की आधी संपत्ति का दावा करते हुए मुकदमा दायर किया। ट्रायल कोर्ट ने उसके दावे को खारिज करते हुए कहा कि दूसरी पत्नी को हिंदू महिला संपत्ति अधिकार अधिनियम 1937 के तहत पूरी संपत्ति विरासत में मिली थी। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अधिनियमन के बाद वह संपत्ति की पूर्ण मालिक बन गई। इस निर्णय के खिलाफ उसने हाई कोर्ट में अपील दायर की थी।

अवैध फेरीवालों के खिलाफ अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की गई ?

बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) और राज्य सरकार को अवैध फेरीवालों को लेकर फटकार लगाई है। अदालत ने कहा कि मुंबई की एक भी सड़क अवैध फेरीवालों से नहीं बची है। अदालत ने बीएमसी और सरकार से पूछा कि 5 साल तक अवैध फेरीवालों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई? न्यायमूर्ति अजय गडकरी और न्यायमूर्ति कमल खाता की पीठ के समक्ष अनधिकृत फेरीवालों और स्टॉलों से संबंधित स्वत: संज्ञान (सुमोटो) याचिका पर सुनवाई हुई। पीठ ने कहा कि बीएमसी और राज्य पुलिस सड़कों को अवैध फेरीवालों से मुक्त रखने के लिए एक-दूसरे पर दोष नहीं मढ़ सकते। 12 दिसंबर को मामले की अगली सुनवाई रखी गई है।


Created On :   14 Nov 2024 2:45 PM IST

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