Mumbai News: तीसरा बच्चा गोद लेने की इजाजत पर विचार करने का केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण को निर्देश, पुणे का वाकड़-बालेवाड़ी पुल हो शुरु

तीसरा बच्चा गोद लेने की इजाजत पर विचार करने का केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण को निर्देश, पुणे का वाकड़-बालेवाड़ी पुल हो शुरु
  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने दो दिव्यांग बच्चों के माता-पिता को तीसरे बच्चे को गोद लेने की इजाजत देने पर विचार करने का केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण को दिया निर्देश
  • हाई कोर्ट का आदेश- 10 साल से तैयार वाकड़-बालेवाड़ी पुल जल्द चालू करे मनपा

Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने दो दिव्यांग बच्चों के माता-पिता को तीसरे बच्चे को गोद लेने की इजाजत देने को लेकर अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने उनके आवेदन पर केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण को पुनर्विचार करने का निर्देश हुए कहा कि हमारी राय में ऐसी जटिल और भावनात्मक मानसिकता में दिव्यांग बच्चों के माता-पिता स्वाभाविक रूप से एक सामान्य बच्चे को गोद लेने के लिए एक गहन समर्पण, इच्छा और खुशी रखते हैं, जिससे वे अपने जीवन को संतुलित कर सकें। एक सामान्य बच्चे को पालने का अनुभव प्राप्त कर सकें, जिसकी उन्हें कमी महसूस हो रही है। यह निश्चित रूप से और निस्संदेह दिव्यांग से पीड़ित बच्चों के प्रति उनके प्यार और समर्पण को बनाए रखते हुए हैं, जिन्हें कभी भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। अदालत ने यह भी कहा कि अगर वे (दिव्यांग बेटियों के माता-पिता) अपने परिवार में एक अतिरिक्त सदस्य को प्राप्त करने की अपनी क्षमता के साथ एक नई आशा की तलाश कर रहे हैं, तो ऐसा करके अपने सपने को पूरा करने की दिशा में जीवन को और अधिक सार्थक बनाने के लिए एक पारस्परिक पूर्ति प्राप्त करते हैं। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। ये कुछ ऐसे विचार हैं, जो बुनियादी मानवीय जरूरतों और उनके विचारों पर विचार करते हुए हमें छू गए हैं। न्यायमूर्ति जी. एस. कुलकर्णी और न्यायमूर्ति अद्वैत सेथना की पीठ ने दिव्यांग बच्चों के माता-पिता(रूथ ब्रोंसन डायस और ब्रोंसन बार्थोल डायस) की याचिका पर अपने फैसले में कहा कि हमारा स्पष्ट मत है कि याचिका को विवादित निर्णय को अलग करके और प्रतिवादियों (केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण, छूट समिति, केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, राज्य दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण और वात्सल्य ट्रस्ट) को कानून के अनुसार याचिकाकर्ताओं (माता-पिता) के आवेदन पर पुनर्विचार करना चाहिए। पीठ ने कहा कि 2017 के विनियमन 5(8) और 2022 के विनियमन 5(7) में कुछ समानता होनी चाहिए। इसके लिए विशेष रूप से 2022 के विनियमन 63 (ढील देने की शक्ति) के तहत प्रदत्त छूट की शक्ति को लागू करके उन्हें अनुमति दी जानी चाहिए। तीसरे बच्चे को गोद लेने के लिए याचिकाकर्ताओं के आवेदन को खारिज करने वाले निर्णय को रद्द किया जाता है। उनके आवेदन पर निर्णय संबंधित प्राधिकारी के समक्ष आदेश की प्रति प्रस्तुत किए जाने की तिथि से 6 सप्ताह की अवधि के भीतर लिया जाए। माता-पिता ने 10 सितंबर 2022 को प्राधिकरण के बाल दत्तक ग्रहण संसाधन सूचना और मार्गदर्शन प्रणाली (केयरिंग्स) पोर्टल पर एक बच्चे को गोद लेने के लिए आवेदन किया था, जिसे प्राधिकरण ने 21 मार्च 2023 को नियमों का हवाला देते हुए उनके आवेदन को खारिज कर दिया था और उन्हें तीसरे बच्चे को गोद लेने की इजाजत देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद माता-पिता ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

हाई कोर्ट का आदेश- 10 साल से तैयार वाकड़-बालेवाड़ी पुल जल्द चालू करे मनपा

उधर बांबे हाई कोर्ट ने वाकड़-बालेवाड़ी पुल को सार्वजनिक उपयोग के लिए खोलने में हो रही देरी को गंभीरता से लेते हुए पुणे महानगर पालिका (मनपा) को शेष बची भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया तुरंत पूरी करने और पुल जल्द चालू करने का सख्त निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति आलोक आराध्ये और न्यायमूर्ति एम. एस. कर्णिक की खंडपीठ ने 9 अप्रैल को इस संबंध में दायर याचिका पर सुनवाई के बाद 15 अप्रैल को यह आदेश जारी किया। यह जनहित याचिका वाकड़ निवासी अभिजीत गरड़ व बालेवाड़ी निवासी संदीप मंडलोई द्वारा अधिवक्ता सत्या मुले के माध्यम से दायर की गई थी। याचिका में बताया गया कि यह पुल 2013 में पुणे मनपा और पिंपरी-चिंचवड़ मनपा द्वारा संयुक्त रूप से मंजूर किया गया था, लेकिन 2018-19 में निर्माण पूर्ण होने के बावजूद आज तक इसे जनता के लिए नहीं खोला गया है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि मुला नदी पर बना यह पुल बालेवाड़ी, बाणेर और वाकड़ को जोड़ता है, लेकिन बालेवाड़ी की ओर से सड़क संपर्क न होने के कारण पुल का कोई उपयोग नहीं हो पा रहा है। इस कारण क्षेत्र के लगभग 2.5 लाख नागरिकों को रोजाना भारी ट्रैफिक, अतिरिक्त 5-6 किलोमीटर की दूरी और 40 मिनट से 1 घंटे तक का समय लगता है। अधिकांश नागरिकों को वाकड़ से बालेवाड़ी और बाणेर काम के लिए आना-जाना पड़ता है और विकल्प के तौर पर उन्हें मुंबई-बंगलुरु हाईवे से होकर लंबा रास्ता तय करना पड़ता है। अधिवक्ता सत्या मुले ने दलील दी कि तेजी से शहरीकरण हो रहे क्षेत्र में पुल चालू न होने से रोजाना जाम की समस्या गंभीर हो चुकी है। पुणे मनपा ने लंबे समय तक केवल औपचारिकताएं निभाईं और भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में जानबूझकर देरी की। अदालत के निर्देश के बाद ही पीएमसी ने 24 फरवरी-25 को भूमि अधिग्रहण का प्रस्ताव बनाकर 20 मार्च को प्रशासक की अध्यक्षता वाली स्थायी समिति व सामान्य सभा से इसे पारित कराया और प्रस्ताव भूमि अधिग्रहण विभाग को भेजा। खंडपीठ ने कहा कि 2018-19 में 31 करोड़ रुपए की लागत से बना यह पुल आज तक उपयोग में नहीं लाया गया है, जो सार्वजनिक धन की बर्बादी है। अदालत ने मनपा को आदेश दिया है कि वह तत्काल भूमि अधिग्रहण पूर्ण कर पुल चालू करे और भविष्य में यदि प्रगति नहीं हुई तो याचिकाकर्ता छह महीने बाद दोबारा याचिका दाखिल कर सकते हैं। वाकड़ निवासी अभिजीत गरड़ ने कहा कि यह निर्णय हम सभी नागरिकों के लिए बड़ी राहत है। अदालत ने पुणे मनपा की विफलता को गंभीरता से लिया है। वर्षों से यह पुल बंद पड़ा है, जबकि हजारों नागरिकों को रोज कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। बालेवाड़ी निवासी संदीप मंडलोई ने कहा कि हमें उम्मीद है कि अब भूमि अधिग्रहण जल्द पूरा होगा और यह पुल जनता के लिए शीघ्र खुल जाएगा। अधिवक्ता सत्या मुले ने कहा कि मनपा ने लंबे समय तक केवल बहाने बनाए। अब जब अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं, तो हम अपेक्षा करते हैं कि यह काम जल्द पूरा होगा। यदि छह महीने में कोई प्रगति नहीं हुई तो हम फिर अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे। यह मामला वर्षों से लटका हुआ था और 10 साल से नागरिक इस पुल के उपयोग की प्रतीक्षा कर रहे हैं। बंबई हाई कोर्ट के इस आदेश से अब उम्मीद जगी है कि क्षेत्र के नागरिकों को यातायात के संकट से राहत मिलेगी और समय व ईंधन की बर्बादी रुकेगी। यह आदेश न केवल प्रशासन की निष्क्रियता पर करारा तमाचा है, बल्कि जनहित याचिका के माध्यम से नागरिकों द्वारा लड़ी गई लंबी लड़ाई की ऐतिहासिक जीत भी है।


Created On :   16 April 2025 10:14 PM IST

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