बॉम्बे हाईकोर्ट: पंढरपुर के श्री विठ्ठल रुक्मिणी मंदिर पर सरकार के नियंत्रण का दावा, छोटा राजन की पत्नी भी एक मामले में अदालत पहुंची

पंढरपुर के श्री विठ्ठल रुक्मिणी मंदिर पर सरकार के नियंत्रण का दावा, छोटा राजन की पत्नी भी एक मामले में अदालत पहुंची
  • डॉ.सुब्रमण्यम स्वामी की जनहित याचिका पर राज्य सरकार को हलफनामा दाखिल करने का दिया निर्देश
  • कानून के बारे में जानकारी न होना कानून तोड़ने का बहाना नहीं हो सकता...बॉम्बे हाईकोर्ट
  • अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन की पत्नी सुजाता निकालजे ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने पंढरपुर के श्री विट्ठल रुक्मिणी मंदिर को सरकार के नियंत्रण से हटाने को लेकर पूर्व सांसद डॉ.सुब्रमण्यम स्वामी की जनहित याचिका पर राज्य सरकार को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। राज्य के महाधिवक्ता बीरेंद्र सराफ ने बुधवार को अदालत से डॉ.स्वामी की जनहित याचिका को अस्वीकार करने का अनुरोध किया। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की पीठ के समक्ष डॉ.सुब्रमण्यम स्वामी की जनहित याचिका सुनवाई हुई। सरकार की ओर से महाधिवक्ता बीरेंद्र सराफ ने दलील दी कि पहले भी आर्टिकल 31 (ए) को चुनौती देने वाली याचिका आयी थी, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया था। इस पर पीठ ने कहा कि राज्य सरकार हलफनामा दाखिल कर पूरी स्थिति स्पष्ट करे। इस मामले में 16 अक्टूबर को अगली सुनवाई होगी। डॉ. स्वामी की जनहित याचिका में अनुरोध किया गया है कि सरकार को श्री विट्ठल रुक्मिणी मंदिर के प्रबंधन का अधिकार जिस धर्म और संप्रदाय का मंदिर है, उसके प्रतिनिधियों को दे देना चाहिए। आर्टिकल 31 (ए) में संपदा के अधिग्रहण के लिए प्रदान करने के विधान की बचत (1) लेखा 13 में निहित है। सार्वजनिक हित में या संपत्ति के उचित प्रबंधन को सुरक्षित रखने के लिए सीमित अवधि के लिए राज्य सरकार द्वारा किसी भी संपत्ति के प्रबंधन का संरक्षण किया जाता है। सरकार ने पंढरपुर टेंपल एक्ट 1973 के अंतर्गत श्री विट्ठल रुक्मिणी मंदिर समिति का गठन कर मंदिर प्रबंधन का अधिकार अपने हाथ में ले लिया है।

कानून के बारे में जानकारी न होना कानून तोड़ने का बहाना नहीं हो सकता...बॉम्बे हाईकोर्ट

उधर बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि कानून के बारे में जानकारी न होना कानून तोड़ने का बहाना नहीं हो सकता है। अदालत ने एक व्यवसायी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया।न्यायमूर्ति अजय गडकरी और डॉ. नीला गोखले की पीठ के समक्ष अजय मेलवानी की याचिका पर सुनवाई हुई। पीठ ने याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार करते हुए कहा कि यदि अज्ञानता एक बहाना है, तो प्रत्येक व्यक्ति जिस पर किसी अपराध के लिए आरोप लगाया गया है और जो किसी अपराध में शामिल है। वह उत्तरदायित्व से बचने के लिए केवल यह दावा करेगा कि उसे संबंधित कानून के बारे में जानकारी नहीं है, भले ही वह कानून तोड़ने के परिणामों से अच्छी तरह वाकिफ हो। पीठ ने यह भी कहा कि यदि अज्ञानता को बचाव के रूप में स्वीकार किया जाता है, तो कानून लागू करने वाली मशीनरी ठप हो जाएगी। इससे कानून तोड़ने वालों की ओर से कानून को गलत तरीके से संभालने की प्रवृत्ति भी पैदा हो सकती है। अज्ञानता की ढाल प्रदान करके कानून तोड़ने वालों की रक्षा करना विधायिका का उद्देश्य कभी नहीं हो सकता है। याचिकाकर्ता अजय मेलवानी पर इटली स्थित एक कंपनी को प्रतिबंधित रसायन निर्यात करने के लिए नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टेंस (एनडीपीएस) अधिनियम के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था। याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत में दलील दी कि उन्हें भारत सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के बारे में जानकारी नहीं थी, जिसमें उस उत्पाद के निर्यात या उत्पादन की अनुमति के लिए ‘अनापत्ति प्रमाण पत्र' अनिवार्य किया गया था। केंद्र सरकार ने संबंधित अधिसूचना 27 फरवरी 2018 को जारी की गई थी। पीठ ने कहा कि यह अधिसूचना नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) द्वारा अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड नहीं की गई थी, फिर भी आरोपी की कंपनी द्वारा निर्यात किए जा रहे रसायन को एनडीपीएस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार प्रतिबंधित किया गया था। याचिकाकर्ता कंपनी में 23 फरवरी 2012 से निदेशक है। वह 2012 से कारोबार की गतिशीलता से अवगत है। निर्यात आयात कानूनों और नियमों में लगातार बदलते घटनाक्रमों से खुद को अवगत कराना और अपडेट करना स्पष्ट रूप से कंपनी और उसके अधिकारियों की नियमित गतिविधि होनी चाहिए। याचिकाकर्ता इस बहाने से निर्यात की आवश्यकताओं का पालन करने में चूक को उचित नहीं ठहरा सकता है।

अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन की पत्नी सुजाता निकालजे ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया

अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन की पत्नी सुजाता निकालजे ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। सुजाता निकालजे की दायर याचिका में उनके खिलाफ दर्ज महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के मामले को रद्द करने का अनुरोध किया गया है। 29 अगस्त को मामले की अगली सुनवाई रखी गई है। न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की पीठ के समक्ष बुधवार को सुजाता निकालजे की ओर से वकील शेखर जगताप की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। वकील शेखर जगताप की दलील दी कि मुंबई पुलिस ने मकोका मामले में याचिकाकर्ता को गिरफ्तार किया गया था। बाद में ट्रायल कोर्ट ने उनके खिलाफ दर्ज मामले को रद्द कर दिया था। राज्य सरकार ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। इस बीच छोटा राजन के बैंकाक से प्रत्यर्पण के बाद राजन और उसकी पत्नी से जुड़े सभी मामलों की जांच सीबीआई को सौंप दी गयी थी। सुजाता के खिलाफ दर्ज मामले विचाराधिन हैं। पीठ ने सुजाता की याचिका पर सीबीआई और राज्य सरकार को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। चेंबूर के तिलक नगर की रहने वाली सुजाता निकालजे अपनी सबसे छोटी बेटी के नाम पर खुशी डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड कंस्ट्रक्शन कंपनी चलाती हैं। मुंबई पुलिस ने 14 दिसंबर 2005 को निकालजे को गिरफ्तार किया था। एक व्यक्ति ने उनके जबरन वसूली का मामला दर्ज कराया था।

Created On :   24 July 2024 5:07 PM GMT

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story