आईआईटी बॉम्बे ने खोजी समुद्री पानी से मीठा जल प्राप्त करने की बेहतर तकनीक

आईआईटी बॉम्बे ने खोजी समुद्री पानी से मीठा जल प्राप्त करने की बेहतर तकनीक
  • मेंब्रेन आधारित तकनीक से बेहतर है डीएसएलआईजी, बिजली और सौर ऊर्जा दोनों से चलती है
  • ग्राफीन आधारित जल-अपकर्ष पदार्थ से दूर हो सकती है पानी की परेशानी

Mumbai News. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मुंबई के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा पदार्थ विकसित किया है जिससे खारे पानी को तेज गति से वाष्पीकृत करके इस्तेमाल योग्य पानी (मीठा पानी) हासिल किया जा सकता है। ड्यूल-साइडेड सुपर हाइड्रोफोबिक लेजर इंड्यूस्ड ग्राफीन (डीएसएलआईजी) नामक यह तकनीक पानी के वाष्पीकरण (इवोपोरेटर) करनेवाले पहले से मौजूद तकनीकों से काफी बेहतर है और इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा सकता है। आईआईटी मुंबई के प्राध्यापकों स्वतंत्र प्रताप सिंह और ऐश्वर्या सीएल ने अपने शोध के दौरान यह सफलता हासिल की है। प्राध्यापक सिंह ने बताया कि इस तकनीक की खासियत यह है कि इसे बिजली और सौर ऊर्जा दोनों के इस्तेमाल से चलाया जा सकता है। खारे पानी को साफ करने के लिए खाड़ी देशों और इजरायल जैसे देश जो तकनीक इस्तेमाल करते हैं वह मेंब्रेन आधारित हैं। इसमें समस्या यह है कि साफ पानी निकालने के बाद जो पानी रह जाता है वह और खारा होता है। इस ज्यादा खारे पानी को मेंब्रेन की मदद से साफ करना बेहद मुश्किल हो जाता है लेकिन हमारी तकनीक इससे भी ज्यादा खारे पानी को वाष्पीकृत करके साफ पानी हासिल करने में मददगार है।

बड़े पैमाने पर प्रयोग की तैयारी

प्राध्यापक सिंह ने कहा कि हमने छोटे स्तर पर सफल प्रयोग किया है लेकिन बड़े पैमाने पर इसके इस्तेमाल के लिए बड़े प्रयोग की जरूरत है। हम इसकी तैयार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वाष्पीकरण के जरिए पानी साफ करने की मौजूदा तकनीकें सौर ऊर्जा पर निर्भर करतीं हैं इसलिए उनकी सीमाएं हैं इसीलिए हमने ऐसी तकनीक विकसित की है जिसमें वाष्पीकरण के लिए विद्युत आधारित तापमान का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

कमल के पत्ते की तरह करता है काम

सिंह ने कहा कि इस तरह के प्लांट में समस्या यह होती है कि नमक के कण ऊपरी हिस्से पर चिपक जाते हैं जिससे वाष्पीकरण की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। हमने डीएसएलआईजी के जरिए इस समस्या का समाधान खोजा जिसके तहत इसके ऊपरी सतह पर खास पदार्थ का लेप किया जाता है जिससे पानी और उसमें मौजूद नमक सतह पर नहीं चिपकता। इसकी बनावट कमल के पत्ते की तरह है जिस पर पानी की बूंदे तैरती रहती हैं लेकिन उसके छिद्र बंद नहीं होते।

आर ओ तकनीक से अलग तकनीक

प्रोफेसर सिंह ने कहा कि इसका इस्तेमाल कर बड़े पैमाने पर पानी साफ किया जा सकता है जो छोटी बस्तियों के लिए उपयोगी हो सकता है लेकिन इसका मुकाबला आर ओ तकनीक से नहीं हो सकता। बड़े शहरों में बड़े पैमाने पर तेजी से पानी साफ करने वाले यंत्र चाहिए होते हैं इसलिए वहां मेंब्रेन तकनीक ही कारगर होगी। लेकिन नमक की मात्रा 10 फीसदी से ज्यादा होने पर मेंब्रेन काम नहीं करता ऐसे में हमारी तकनीक वहां कारगर साबित होगी। इसके अलावा कारखानों से निकलने वाले दूषित पानी को साफ करने के लिए भी इसका इस्तेमाल हो सकता है।

Created On :   17 April 2025 5:34 PM IST

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