बॉम्बे हाईकोर्ट: विशेषाधिकार अवकाश के नकदीकरण से वंचित करना संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन

विशेषाधिकार अवकाश के नकदीकरण से वंचित करना संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन
  • अदालत ने सावंत दंपत्ति की याचिकाओं को किया स्वीकार
  • बॉम्बे हाईकोर्ट से आजीवन कारावास की सजा पाने वाले व्यक्ति को बड़ी राहत

डिजिटल डेस्क, मुंबई. बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि छुट्टियों का नकदीकरण वेतन के समान है। किसी व्यक्ति को अवकाश नकदीकरण से वंचित करना संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन होगा। अदालत ने बैंक को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता को नकदीकरण के लिए देय राशि की 6 फीसदी प्रति वर्ष की दर से ब्याज सहित छह सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ताओं को उसका भुगतान करे। न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति एम.एम. सथाये की खंडपीठ ने दत्ता राम सावंत और सीमा दत्ता राम सावंत की वकील शैलेन्द्र कनेतकर और वकील यश धवल की याचिकाओं पर अपने फैसले में कहा कि छुट्टियों का नकदीकरण वेतन के समान संपत्ति है। किसी व्यक्ति को बिना किसी वैध वैधानिक प्रावधान के उसकी संपत्ति से वंचित करना भारत के संविधान के अनुच्छेद 300(ए) का उल्लंघन होगा। अवकाश के कारण भुगतान अवकाश नकदीकरण कोई इनाम नहीं है। यदि किसी कर्मचारी ने इसे अर्जित किया है और अपने अर्जित अवकाश को अपने खाते में जमा करने का विकल्प चुना है, तो नकदीकरण पर उसका अधिकार बन जाता है। अदालत में दो कर्मचारियों दत्ता राम सावंत और सीमा सावंत ने विशेषाधिकार अवकाश के नकदीकरण की मांग की थी, जिसे उनके नियोक्ता, विदर्भ कोंकण ग्रामीण बैंक ने अस्वीकार कर दिया था। दोनों ने इस्तीफा देने से पहले बैंक में 30 से अधिक वर्षों तक काम किया था। उनके वरिष्ठों ने इस्तीफा स्वीकार कर लिया और दोनों को अनुभव प्रमाण पत्र जारी किया। बैंक के नियमों के अनुसार कर्मचारियों को ड्यूटी पर सेवा के प्रत्येक 11 दिनों के लिए एक दिन के हिसाब से विशेषाधिकार अवकाश दिया जाता है। दत्ता राम सावंत के पास 250 दिन का विशेषाधिकार अवकाश था और उनके अनुसार यह राशि 6 लाख 57 हजार 554 रुपए थी। सीमा सावंत ने 210 दिन का विशेषाधिकार अवकाश होने का दावा किया, जिसमें यह राशि 4 लाख 66 हजार 830 रुपए थी। जब दोनों याचिकाकर्ताओं ने अपने विशेषाधिकार अवकाश के नकदीकरण का अनुरोध किया, तो बैंक ने एक पत्र लिखकर मसूचित किया कि त्यागपत्र देने वालों के लिए विशेषाधिकार अवकाश के नकदीकरण की सुविधा 14 सितंबर, 2015 को अस्तित्व में आई, जब याचिकाकर्ताओं ने सेवा से त्यागपत्र दे दिया था। इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर बैंक को निर्देश देने की मांग की कि वह उनके खाते में जमा विशेषाधिकार अवकाश की राशि का भुगतान 8 फीसदी प्रतिवर्ष की दर से ब्याज देने का अनुरोध किया।

बॉम्बे हाईकोर्ट से आजीवन कारावास की सजा पाने वाले व्यक्ति को बड़ी राहत

वहीं दूसरे मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट से आजीवन कारावास की सजा पाने वाले सतारा निवासी कोंडीराम मधु पवार को बड़ी राहत मिली है। अदालत ने पवार के खिलाफ बारामती सेशन कोर्ट के आजीवन कारावास की सजा को रद्द करते हुए उन्हें पत्नी की हत्या के मामले में बरी कर दिया। न्यायाधीश ए.एस.गडकरी और न्यायाधीश श्याम सी.चांडक की खंडपीठ ने कोंडीराम मधु पवार की बारामती सेशन कोर्ट के आजीवन कारावास की सजा के खिलाफ दायर याचिका पर अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि घटना के समय याचिकाकर्ता नशे में था। याचिकाकर्ता और सारिका के बीच इस कारण अचानक झगड़ा हो गया था, क्योंकि याचिकाकर्ता को सारिका के चरित्र पर शक किया और उस पर उसने सवाल किया। घटना अचानक झगड़े के दौरान हुई और याचिकाकर्ता की ओर से इसके लिए पहले से कोई योजना नहीं थी।खंडपीठ ने कहा कि मृतक को आग लगाने के बाद याचिकाकर्ता ने उसकी आग बुझाने की कोशिश की और इस प्रक्रिया में वह भी 40 फीसदी जल गया। इसलिए याचिकाकर्ता का कृत्य आईपीसी की धारा 304 (दो) के अंतर्गत आता है। इसलिए और मामले के अन्य तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए याचिकाकर्ता को आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। खंडपीठ ने 31 जुलाई 2009 को याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध के लिए पुणे के जिला स्थित बारामती सेशन कोर्ट के न्यायाधीश द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर दिया। याचिकाकर्ता को आईपीसी की धारा 304 (भाग I) के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है। उसे 10 साल की कठोर कारावास और 2000 रुपए का जुर्माना भरने की सजा सुनाई गई। वह पुणे के यरवडा सेंट्रल जेल में 10 साल से अधिक समय से बंद था। अदालत ने कहा कि यदि किसी अन्य मामले में हिरासत में लेने की आवश्यकता नहीं है, तो जुर्माना राशि का भुगतान करने पर उसे तुरंत रिहा किया जाए।

Created On :   20 May 2024 4:47 PM GMT

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