बात सुरक्षा की: चुनावी सीजन में बुलेटप्रूफ गाड़ियों की मांग में बढ़ोतरी, पांच साल में हुई दोगुनी

चुनावी सीजन में बुलेटप्रूफ गाड़ियों की मांग में बढ़ोतरी, पांच साल में हुई दोगुनी
  • चुनाव के पहले गाड़ियों को बुलटप्रूफ करने बढ़ी एनक्वायरी
  • पिछले पांच साल में मांगबढ़कर हुई दोगुनी

डिजिटल डेस्क, मुंबई शैलेश तिवारी। पिछले पांच वर्षो में बुलेटप्रूफ गाड़ियों की मांग में दोगुनी बढ़ोतरी हुई है। चुनावी सीजन में यह मांग तीन से चार प्रतिशत बढ़ जाती है। राजनीतिक दल चुनावी यात्राओं के लिए बुलेटप्रूफ कार और बसों की मांग करते हैं। इसके अलावा फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोग, पुलिस, पैरा मिलिट्री और सेना के लिए भी बुलेटप्रूफ गाड़ियों और बसों की मांग बढ़ी है। नक्सल प्रभावित इलाकों में यात्राओं के समय सुरक्षा के मद्देनजर बुलेटप्रूफ आवश्यकता बनती जा रही है।

देश में मौजूदा समय में चुनावी सीजन में बुलेटप्रूफ गाड़ियों की मांग में तेजी से बढ़ोतरी देखी जारी रही है। नेता महीनों तक यात्राएं करते रहते हैं। ऐसे में सुरक्षा के मद्दनेजर बुल्टप्रूफ गाड़ियों का उपयोग बढ़ रहा है। चुनावी सीजन में इसके लिए एनक्वायरी और मांग में तीन से चार फीसदी की बढ़ोतरी देखी जा रही है। फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों में भी अब बुलेटप्रूफ कारों के उपयोग की मांग बढ़ी है। इसके पीछे कारण हालिया समय में मिली धमकियों को माना जा रहा है।

पुलिस एनओसी जरूरी

पूर्व अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक पीके जैन के अनुसार गाड़ी को मॉडिफाई करने की अनुमति आरटीओ से मिलती है, जो पुलिस विभाग के जरिये व्यक्ति की सुरक्षा जरूरतों का अध्ययन करके दिया जाता है। बुलेटप्रूफ के बड़े खर्च के कारण अधिकतर वही लोग इसे अपनाते हैं, जिन्हें वाकई में खतरा होता है।

हथौड़े से कांच टूटने का भ्रम

बुलेटप्रूफ गाड़ियों के संबंध में भ्रम है कि ऐसी गाड़ियों पर गोली, धमाकों से कुछ नहीं होता परन्तु हथोड़े से गाड़ी के कांच को तोड़ा जा सकता है। तकनीकी विशेषज्ञ इसे निराधार बताते हैं। मौजूदा समय में महंगी गाड़ियों को बुलेटप्रूफ कराने का चलन बढ़ा है।

45 दिन में तैयार होती है एक गाड़ी

गाड़ियों को बुलेटप्रूफ करने वाली कंपनी जेसीबीएल आर्मरिंग सॉल्यूशंस के सीईओ रुशांक दोशी ने बताया कि उनकी कंपनी ने अभी तक 800 से 900 गाड़ियों को बुलेटप्रूफ बनाया है। एक गाड़ी तैयार करने में 30 से 45 दिन का समय लगता है। इसमें स्टील, ग्लास, सप्रेशन, ब्रेक जैसे कई सामग्री का उपयोग होता है, जिसे केवल प्रमाणित आपूर्तिकर्ताओं से ही खरीदा जाता है।

गाड़ियों पर आनेवाला अनुमानित खर्च

एक गाड़ी को बुलेटप्रूफ करने के लिए सामान्यतः 25 लाख से लेकर 1.5 करोड़ रुपए तक का खर्च आ सकता है, जबकि बसों के लिए यह खर्च 8 से 10 करोड़ रुपए तक हो सकता है। सेना और पैरा मिलिट्री के लिए माइंस रेसिस्टेंट गाड़ियों की जरूरत होती है, जबकि सिविलियन के लिए डिफेंसिव गाड़ियां बनाई जाती हैं, जो बेसिक ब्लास्ट प्रूफ और बुलेट रेसिस्टेंस सुविधाओं से लैस होती हैं। रुशांक बताते है कि सरकार द्वारा तय मानक के अनुसार परीक्षण के बाद ही ग्राहक को बुलेटप्रूफ गाड़ी की डिलीवरी की जाती है। बुलेटप्रूफ के लिए टायर से लेकर रूफ तक गाड़ी को मोडिफाई किया जाता है।

Created On :   4 Sept 2024 5:14 PM GMT

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