- Home
- /
- राज्य
- /
- महाराष्ट्र
- /
- मुंबई
- /
- लिखित माफी स्वीकार कानून तोड़ने...
बॉम्बे हाई कोर्ट: लिखित माफी स्वीकार कानून तोड़ने वालों को बढ़ावा देना है, हवाई अड्डों पर किसी को परेशानी न होने की हिदायत

- न्यायालय द्वारा लिखित माफी स्वीकार करना गलत काम करने वाले और कानून तोड़ने वालों को बढ़ावा देना है
- अदालत ने दो सप्ताह के अंदर अवैध निर्माण को तोड़ने का दिया आदेश
Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) अधिकारी के अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने को लेकर कड़ा रुख अपनाया है। अदालत ने बीएमसी आयुक्त को अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई में लापरवाही बरतने वाले बीएमसी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करने और दो सप्ताह के अंदर अवैध निर्माण को तोड़ने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि न्यायालय द्वारा लिखित माफी स्वीकार करना आमतौर पर उसकी कमजोरी के रूप में देखा जाता है। यह गलत काम करने वाले और कानून तोड़ने वालों को बढ़ावा देना है। बीएमसी के पश्चिमी उपनगर के अतिरिक्त आयुक्त विपिन शर्मा ने 13 फरवरी 2025 का हलफनामा दायर कर अपने अधिकारी के बचाव में कहा कि संबंधित वार्डों के कर्मचारी गणपति उत्सव के कारण ड्यूटी पर थे और उसके बाद विधानसभा चुनाव ड्यूटी पर थे, जिसके कारण अधिकारी मामले से अनभिज्ञ हो गए। यह गलती अनजाने में हुई थी और यह आदेश का जानबूझकर पालन न करने या इस न्यायालय के आदेशों की जानबूझकर अवज्ञा करने का इरादा नहीं था। उन्होंने हलफनामे में यह भी कहा गया कि जूनियर इंजीनियर सुनील कटरे और सब-इंजीनियर कौशर खान एम.पठान को 25 फरवरी 2025 को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है, क्योंकि वे प्रभारी अधिकारी थे और न्यायालय द्वारा 29 अगस्त 2024 के आदेश द्वारा जारी निर्देशों पर उचित कार्रवाई करने के लिए जिम्मेदार थे। उन्होंने अदालत से लिखित में माफी मांगी। न्यायमूर्ति अजय गडकरी और न्यायमूर्ति कमल खाता की पीठ ने कहा कि हम बीएमसी के आयुक्त से कौशर खान पठान और अन्य दोषी अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने का निर्देश देते है, जो मामले में जांच करने के बाद अनधिकृत निर्माण को जारी रखने की अनुमति देने के लिए जिम्मेदार थे। पीठ ने अवैध निर्माण को दो सप्ताह में तोड़ने का आदेश दिया। याचिकाकर्ता के वकील महेश राजपोपट ने पीठ को बताया कि साल 2021 में अंधेरी (पूर्व) के मरोल गांव में लोटस अपार्टमेंट के बगल और लोकभारती बिल्डिंग के सामने स्थित खुले मैदान में अवैध निर्माण किया गया था। मानव सेवा धाम चैरिटेबल ट्रस्ट के सदस्य ने 2 मार्च 2021 को बीएमसी अधिकारियों से लिखित में शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसके बाद याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने 29 अगस्त 2024 और 3 फरवरी 2025 को अवैध निर्माण को तोड़ने का आदेश दिया, लेकिन बीएमसी अधिकारियों ने अदालत के आदेश के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की।
हवाई अड्डों पर किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए...बॉम्बे हाई कोर्ट
इसके अलावा बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को देश के हवाई अड्डों पर वरिष्ठ नागरिकों और विशेष रूप से दिव्यांग व्यक्तियों के लिए व्हीलचेयर सहित उचित सुविधाओं की कमी पर चिंता व्यक्त की और कहा कि हवाई अड्डों पर किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए। अदालत ने नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) को लापरवाही के लिए एयरलाइन कंपनियों पर भारी जुर्माना लगाने का सुझाव दिया है। न्यायमूर्ति जी.एस.कुलकर्णी और अद्वैत सेथना की पीठ ने कहा कि व्हीलचेयर जैसी सुविधाएं समय पर उपलब्ध होनी चाहिए, जिससे यात्रियों को परेशानियों का सामना नहीं करना पड़े। पीठ ने कहा कि सभी सुविधाएं डीजीसीए और एयरलाइन कंपनियों द्वारा स्वप्रेरणा से प्रदान की जानी चाहिए। उन्हें यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि भारत उदाहरण प्रस्तुत करे। पीठ ने यह भी कहा कि हमें मानव जीवन की चिंता है। किसी को भी तकलीफ नहीं होनी चाहिए। एयरपोर्ट प्रबंधन प्राधिकरण और सभी एयरलाइनों से संवेदनशीलता की आवश्यकता है। हमें इन मुद्दों के प्रति बहुत संवेदनशील होना चाहिए। हम चाहते हैं कि भारत में सभी एयरलाइनों द्वारा उच्चतम अंतरराष्ट्रीय मानकों को लागू किया जाए। एक वरिष्ठ नागरिक की बेटी और 53 वर्षीय व्यक्ति द्वारा दायर याचिका में मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर व्हीलचेयर और अन्य सुविधाओं की अनुपलब्धता का मुद्दा उठाया गया था। मां-बेटी की जोड़ी ने अपनी याचिका में कहा कि 81 वर्षीय महिला को अपनी बेटी के लिए व्हीलचेयर छोड़नी पड़ी, जो तीव्र गठिया से पीड़ित थी, क्योंकि सितंबर 2023 में मुंबई में उतरने पर उन्हें केवल एक व्हीलचेयर सहायता दी गई थी। सोमवार को पीठ को सौंपे गए हलफनामे में डीजीसीए ने कहा कि ओवर-बुकिंग सहित कई कारणों से हवाई अड्डे पर व्हीलचेयर की कमी थी। इस पर पीठ ने कहा कि वह इस तरह के बहाने को स्वीकार नहीं कर सकती। इस तरह की कमियों के दूर करने के उपाय किए जाने चाहिए। पीठ ने कहा कि यह मुद्दा हजारों यात्रियों से जुड़ा है, जो पूरे देश में हर रोज इस समस्या का सामना करते हैं। विदेशों में बच्चों, वरिष्ठ नागरिकों और विशेष रूप से अक्षम व्यक्तियों को बुनियादी अधिकारों से ऊपर माना जाता है और उन्हें सर्वोच्च सम्मान दिया जाता है। पीठ ने कहा कि दुर्भाग्य से हमारे देश में ऐसा नहीं हो रहा है। अदालत ने कहा कि ये सभी सुविधाएं डीजीसीए और एयरलाइन कंपनियों को स्वप्रेरणा से प्रदान करनी चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि भारत उदाहरण पेश करे।
Created On :   21 April 2025 9:11 PM IST