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बॉम्बे हाईकोर्ट: क्रिकेट टीम के वर्ल्ड कप जीतने पर खिलाड़ियों को 11 करोड़ देने को चुनौती
- जनहित याचिका (पीआईएल) में प्राथमिक विद्यालयों और अस्पतालों में संसाधनों के अभाव का दावा
- प्राथमिक विद्यालयों और अस्पतालों पर 11 करोड़ खर्च किए जाने का अनुरोध
- केवल एक मामले (सी.आर.) के आधार पर व्यक्ति को एमपीडीए अधिनियम के तहत 'खतरनाक व्यक्ति' घोषित नहीं किया जा सकता
डिजिटल डेस्क, मुंबई. राज्य सरकार द्वारा भारतीय क्रिकेट टीम के वर्ल्ड कप जीतने पर खिलाड़ियों को 11 करोड़ रुपए देने को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है। दादर निवासी प्रोफेसर डा. पंकज फडनीस ने जनहित याचिका (पीआईएल) में सरकार के 11 करोड़ रुपए क्रिकेट खिलाड़ों को देने पर रोक लगाने और उस पैसे को प्राथमिक विद्यालय एवं सरकारी अस्पतालों पर खर्च किए जाने का अनुरोध किया है। पीआईएल में दावा किया गया है कि राज्य के प्राथमिक विद्यालयों में सुविधाओं के अभाव और सरकारी अस्पतालों में संसाधनों की कमी पर पैसे खर्च किए जाने की जरूरत है। राज्य सरकार और मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी)समेत महानगर पालिकाओं और नगर पालिकाओं के प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य पर पर्याप्त फंड का अभाव है। ऐसे में राज्य सरकार द्वारा 6 जुलाई को बीसीसीआई को भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाडियों के लिए 11 करोड़ रुपए देने की घोषणा की है। पिछले साल कलवा के शिवाजी महाराज सरकारी अस्पताल में पैदा हुए 21 नवजात बच्चों की देखभाल और सुविधाओं के अभाव में मौत हो गयी थी। इस तरह से राज्य में हर छह महीने में किसी न किसी अस्पताल में नवजात बच्चों की मौत होती है। पिछले साल दिसंबर में 24 घंटे में एक सरकारी अस्पताल में 18 मरीजों की मौत हुई थी। राज्य में अक्टूबर 2023 को नांदेड के सरकारी अस्पताल में 24 लोगों की मौत हो गयी, जिसमें 12 लोगों की 24 घंटे के अंदर मौत हुए थी। राज्य में आर्थिक अभाव कारण प्राथमिक विद्यालयों और अस्पतालों की हालत ठीक नहीं है। देश के संपन्न राज्यों में से महाराष्ट्र एक है। इसके बावजूद राज्य के 2023-2024 का स्वास्थ्य पर बजट 4.6 फीसदी था। जबकि नेशनल हेल्थ पालिसी के हिसाब से राज्य का स्वास्थ्य केयर पर बजट 8 फीसदी होना चाहिए। प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य पर राज्य सरकार को खर्च करने के लिए बजट का अभाव है, तो वह (सरकार)11 करोड़ रुपए क्रिकेट खिलाड़ियों को क्यों दे रही है? वैसे भी बीसीसीआई द्वारा क्रिकेट खिलाड़ियों को 125 करोड़ रुपए देने की घोषणा की है। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की पीठ के समक्ष प्रोफेसर डॉ.पंकज फडनवीस की दायर पीआईएल में दावा किया गया है कि राज्य के बीएमसी समेत महानगर पालिकाओं और नगर पालिकाओं के प्राथमिक विद्यालयों में छात्र एवं छात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालय और स्वच्छ पीने के पानी की व्यवस्था का अभाव है। विद्यालयों में इंफ्राटेक्चर के साथ शिक्षकों की कमी से बच्चे प्राथमिक शिक्षा से वंचित हैं। राज्य सरकार द्वारा प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य पर अधिक से अधिक पैसे खर्च करने के बजाय 11 करोड़ रुपए क्रिकेट खिलाड़ियों को देने खर्च किया जा रहा है। याचिका में सरकार द्वारा इस तरह से पैसे खर्च पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया है।
केवल एक मामले (सी.आर.) के आधार पर व्यक्ति को एमपीडीए अधिनियम के तहत 'खतरनाक व्यक्ति' घोषित नहीं किया जा सकता
उधर दूसरे मामले में भी अदालत ने सुनवाई की। जिसमें बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि केवल एक मामले (सी.आर.) के आधार पर व्यक्ति को खतरनाक गतिविधियों की रोकथाम (एमपीडीए) अधिनियम 1981 के तहत खतरनाक व्यक्ति घोषित नहीं किया जा सकता है। अदालत ने पुणे पुलिस आयुक्त के 20 वर्षीय गौरव संतोष अडसुल के खिलाफ एमपीडीए एक्ट के तहत हिरासत में लेने के आदेश को रद्द कर दिया और उसे रिहा करने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की पीठ के समक्ष गौरव संतोष अडसुल की ओर से वकील शैलेश खरात की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। पीठ ने कहा कि इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए हिरासत प्राधिकरण द्वारा केवल एक अपराध पर विचार किया गया है। जबकि इसमें सार्वजनिक व्यवस्था में व्यवधान का कोई तत्व नहीं है। हम इस बात से संतुष्ट हैं कि याचिकाकर्ता के खिलाफ प्राधिकरण द्वारा पारित आदेश बिना पूर्ण विचार किए जारी किया गया। इसलिए इस आदेश को रद्द किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता के वकील शैलेश खरात ने दलील दी कि पुणे के हडपसर पुलिस स्टेशन के अधिकारियों ने बंद कमरे में दिए गए दो बयानों और केवल एक सी.आर. के आधार पर याचिकाकर्ता को खतरनाक व्यक्ति बताया। पुलिस आयुक्त के आदेश पर महाराष्ट्र झुग्गी-झोपड़ियों, शराब तस्करों, ड्रग अपराधियों, खतरनाक व्यक्तियों, वीडियो समुद्री डाकुओं, रेत तस्करों और आवश्यक वस्तुओं की कालाबाजारी में लिप्त व्यक्तियों पर खतरनाक गतिविधियों की रोकथाम (एमपीडीए)अधिनियम की धारा 3(2) के तहत उसे हिरासत में ले लिया गया। याचिकाकर्ता को हिरासत में लेने वाले पुलिस अधिकारी ने केवल एक सी.आर. पर भरोसा किया है, जो एक आदत अपराधी नहीं है। वह एमपीडीए अधिनियम के तहत एक खतरनाक व्यक्ति नहीं हो सकता है। याचिकाकर्ता के खिलाफ अपराध और घटना व्यक्तिगत प्रकृति की है, क्योंकि यह हिरासत में लिए गए व्यक्ति के परिवार के सदस्यों के बीच विवाद था। इसका सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव, इलाके की शांति और सौहार्द पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। आरोप है कि याचिकाकर्ता पिछले साल 26 अक्टूबर अपने काम से घर लौटा, तो उसने अपनी मां कविता अडसुल को किसी पुरानी बात पर पीटना शुरू कर दिया। जब शिकायतकर्ता ने हस्तक्षेप किया, तो वह ने अपने दादा पर स्टील के टिफिन से हमला किया, जिससे उनके सिर पर चोट लग गई और खून बहने लगा। शिकायतकर्ता ने 112 डायल करके पुलिस को बुलाया। जब पुलिस वहां पहुंची, तो वह भाग गया।
Created On :   4 Aug 2024 8:32 PM IST