बॉम्बे हाई कोर्ट का अदार पूनावाला के खिलाफ अपमानजनक वीडियो हटाने का आदेश

बॉम्बे हाई कोर्ट का अदार पूनावाला के खिलाफ अपमानजनक वीडियो हटाने का आदेश
  • पूनावाला के खिलाफ अपमानजनक वीडियो हटाने का आदेश
  • सीरम इंस्टीट्यूट और सीईओ के खिलाफ मीडिया पर पोस्ट की थी सामग्री
  • दो लोगों ने सोशल पर किया था पोस्ट

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को दो व्यक्तियों को सोशल मीडिया से कोविशील्ड वैक्सीन निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और उसके सीईओ अदार पूनावाला के खिलाफ मानहानिकारक सामग्री हटाने का निर्देश दिया। पूनावाला ने अदालत में उनके खिलाफ 100 करोड़ रुपए की मानहानि का मुकदमा दायर किया था। अदालत ने उन्हें पूनावाला के खिलाफ मानहानिकारक सामग्री प्रसारित करने से रोक दिया है।

न्यायमूर्ति रियाज छागला ने सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर योहान टेंगरा और अंबर कोरी के खिलाफ एसआईआई और अदार पूनावाला की दायर याचिका को समाप्त करते हुए कहा कि विषय वस्तु पर विचार करने के बाद बयान प्रथम दृष्टया मानहानिकारक हैं। इसका कोई औचित्य नहीं है।

पूनावाला ने आरोप लगाया कि प्रतिवादियों ने कोविशील्ड वैक्सीन के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में मानहानिकारक पोस्ट, लेख और वीडियो की एक सीरीज पोस्ट की थी। इसलिए दोनों से स्थायी निषेधाज्ञा और माफी मांगी गई है।

दी गई दलील

वरिष्ठ अधिवक्ता एस्पी चिनॉय ने तर्क दिया कि जिन लोगों ने 40 लाख लोगों की जान बचाई, उन्हें अब सामूहिक हत्यारा बता कर प्रसारित किया जा रहा है। आपके अपने विचार हो सकते हैं, लेकिन आप इसे इस तरह से प्रसारित नहीं कर सकते। आंकड़ों के मुताबिक, कोविशील्ड के दो करोड़ उन्नीस लाख टीके लगाए जाने के बाद कथित तौर पर 12 लोगों की मौत की सूचना मिली है। चिनॉय ने तर्क दिया कि टीके के लाभ संभावित प्रतिकूल प्रभावों से कहीं अधिक हैं।

चिनॉय ने बताया कि प्रतिवादी योहान टेंगरा ने अपने यूट्यूब चैनल पर मानहानिकारक बयान दिए थे। उन्होंने प्रस्तुत किया कि पुणे के एक डॉक्टर द्वारा बॉम्बे हाईकोर्ट में दायर एक याचिका, जिसने अपनी बेटी को खो दिया, सुप्रीम कोर्ट में एक और केरल हाईकोर्ट में दायर दो अन्य याचिकाओं का इस्तेमाल प्रतिवादियों द्वारा कैंपेन शुरू करने के लिए किया जा रहा था।

मानहानिकारक सामग्री भी पढ़ी गई, जिसमें वादी को हत्यारे और अपराधी के रूप में बताया गया था, जबकि किसी भी याचिका में कोई प्रतिकूल आदेश पारित नहीं किया गया था। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर गैरजिम्मेदाराना बयान दिए जा रहे हैं।

बचाव पक्ष ने क्या कहा

बचाव पक्ष के वकील नीलेश ओझा और अभिषेक मिश्रा ने कहा कि उनके मुवक्किल सच्चाई को बयां कर रहे थे। उन्होंने मुकदमे में छिपाने का आरोप लगाते हुए दो काउंटर आवेदन दायर किए थे।

ओझा ने दावा किया कि एक स्टडी के मुताबिक, वैक्सीन से मौत और कैंसर का खतरा बढ़ गया है। उन्होंने तर्क दिया कि एक मौत (वैक्सीन द्वारा) के कारण यूरोप के 21 देशों ने उत्पाद पर प्रतिबंध लगा दिया और यहां मेरे दोस्त इसे महिमामंडित करना चाहते हैं।

न्यायमूर्ति छागला की इस टिप्पणी के जवाब में कि टीका स्वेच्छा से लगाया गया था, ओझा ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने लोकल ट्रेनों में नागरिकों के लिए टीके को अनिवार्य कर दिया था।ओझा ने तर्क दिया कि जब पुणे के डॉक्टर ने अपनी बेटी की जान जाने से पहले कंपनी से दवा के लिए कहा, तो एसआईआई ने खुद को पूरी तरह से उससे दूर कर लिया।

गूगल ने दिए तर्क

गूगल एलएलसी के वकील चंगेज केसवानी ने तर्क दिया कि सक्रिय रूप से यूट्यूब निगरानी नहीं कर सकता है और वीडियो को मानहानिकारक साबित करने के लिए न्यायालय के आदेश की आवश्यकता होगी। पहली बार लेखकों को वीडियो हटाने का निर्देश देना होगा। वीडियो वापस लेने में उनकी विफलता पर ही गुगल एलएलसी द्वारा मानहानिकारक वीडियो वाले पोस्ट को हटाने का निर्देश जारी कर सकता है।

Created On :   5 Jun 2023 7:58 PM IST

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