बॉम्बे हाईकोर्ट: अभिनेत्री हंसिका ने खटखटाया दरवाजा और अलग अलग मामलों में सरकार से जवाब तलब

अभिनेत्री हंसिका ने खटखटाया दरवाजा और अलग अलग मामलों में सरकार से जवाब तलब
  • अभिनेत्री हंसिका मोटवानी ने भाभी द्वारा धारा 498 ए के तहत दर्ज मामले को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया
  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से मानसिक रूप से कमजोर बच्चों (एमडीसी) के लिए 94 बाल गृह चालू नहीं होने पर मांगा जवाब
  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुलिस कांस्टेबल भर्ती में ट्रांसजेंडर से भेदभाव पर राज्य सरकार से दो सप्ताह में मांगा जवाब

Mumbai News. तमिल और तेलगु फिल्मों की अभिनेत्री हंसिका मोटवानी और उनकी मां ज्योति मोटवानी ने हंसिका की भाभी मुस्कान जेम्स द्वारा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498 ए (पत्नी के साथ अत्याचार) के तहत उनके खिलाफ दर्ज अत्याचार के मामले को रद्द करने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। अदालत ने इस मामले में टीवी अभिनेत्री मुस्कान जेम्स और मुंबई पुलिस को नोटिस भेजा है। 3 जुलाई को मामले की अगली सुनवाई रखी गई है। न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल और न्यायमूर्ति एस.एम.मोडक की पीठ ने गुरुवार को हंसिका मोटवानी की याचिका पर उनकी भाभी मुस्कान जेम्स समेत मुंबई पुलिस को नोटिस जारी किया। टीवी अभिनेत्री मुस्कान जेम्स ने दिसंबर 2020 में हंसिका के भाई प्रशांत मोटवानी से शादी की थी। हालांकि इस जोड़े ने दिसंबर 2022 में अलग होने का फैसला किया। 2024 में मुस्कान ने हंसिका, मां ज्योति और प्रशांत मोटवानी के खिलाफ आईपीसी की धारा 498 ए (पत्नी के साथ अत्याचार), 323 (चोट पहुंचाना), 504 और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत एफआईआर दर्ज कराई थी। हंसिका और ज्योति को मार्च 2024 में मुंबई सत्र न्यायालय से अग्रिम जमानत मिल गई। इसके बाद मां-बेटी ने एफआईआर को रद्द करने का अनुरोध करते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हंसिका की वकील दृष्टि खुराना दलील दी कि याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआईआर दुर्भावना से प्रेरित है, क्योंकि उन्होंने जेम्स से 27 लाख रुपए वापस मांगे थे, जो उन्होंने अपने भाई की शादी के दौरान जेम्स को उधार दिए थे। कथित राशि का उपयोग वेडिंग प्लानर्स को भुगतान करने के लिए किया गया था, लेकिन न तो जेम्स और न ही उनके पति (हंसिका के भाई) ने उस पैसे को वापस किए।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से मानसिक रूप से कमजोर बच्चों (एमडीसी) के लिए 94 बाल गृह चालू नहीं होने पर मांगा जवाब

इसके अलावा बॉम्बे हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से मानसिक रूप से कमजोर बच्चों (एमडीसी) के लिए 94 बाल गृह चालू नहीं होने पर जवाब मांगा है। अदालत ने सरकार से पूछा कि राज्य में 94 बाल गृह क्यों चालू नहीं हैं, उनके पुनरुद्धार के लिए क्या उपाय किए गए? अदालत ने राज्य सरकार को एमडीसी गृहों की स्थिति, उपयोग समिति, प्रदान किए गए अनुदान और स्वास्थ्य बीमा योजना से संबंधित कार्यों का विवरण देते हुए हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और एम.एस.कार्णिक की पीठ कार्यकर्ता संगीता पुणेकर द्वारा 2014 में दायर जनहित याचिका पर कहा कि क्या उसने राज्य में एमडीसी गृहों की उचित संख्या का पता लगाया है और क्या बाल संरक्षण के लिए समन्वय समिति सहित विशेषज्ञों से परामर्श करने का अभ्यास किया गया था? पीठ ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 54 (संस्थाओं का निरीक्षण) के तहत गठित निरीक्षण समिति का विवरण मांगा, साथ ही सर्व शिक्षा अभियान के तहत कैदियों को दिए जाने वाले लाभों का भी विवरण मांगा है। पीठ ने 17 फरवरी 2018 के सरकारी संकल्प (जीआर) द्वारा स्थापित उपयोगिता समिति की वर्तमान स्थिति का विवरण भी मांगा और सरकार से संशोधित किशोर न्याय नियमों की एक प्रति रिकॉर्ड में रखने को कहा। पीठ ने सरकार से प्रत्येक एमडीसी गृह को दिए जाने वाले अनुदान की राशि का खुलासा करने के लिए कहा, जिसका भुगतान प्रोटेम उपाय के रूप में किया जा रहा है। इसने निरामया स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत क्या कार्रवाई की है? उस गृहों के कैदियों को दिए जाने वाले व्यावसायिक प्रशिक्षण का विवरण भी मांगा। जनहित याचिका में 31 दिसंबर 2012 को नए साल की पूर्व संध्या पर मुंबई के मानखुर्द में एमडीसी होम्स में आयोजित एक कथित पार्टी की खबरों का हवाला देते हुए चौंकाने वाली स्थिति को उजागर किया गया था, जिसमें 265 कैदी थे। राज्य के अतिरिक्त सरकारी वकील (एजीपी) अभय पटकी ने कहा कि वह बच्चों के कल्याण के लिए आवश्यक उपाय करने के लिए तैयार और इच्छुक है। इसके बाद पीठ ने कई निर्देश पारित किए और राज्य के दिव्यांग कल्याण विभाग के आयुक्त को चार सप्ताह के भीतर एक व्यापक हलफनामा दायर करने को कहा।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुलिस कांस्टेबल भर्ती में ट्रांसजेंडर से भेदभाव पर राज्य सरकार से दो सप्ताह में मांगा जवाब

इसके अलावा बॉम्बे हाईकोर्ट ने पुलिस कांस्टेबल भर्ती में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से भेदभाव को लेकर राज्य सरकार से जवाब मांगा है। इसको लेकर दायर याचिका में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) बनाम भारत संघ (2014) में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 के प्रावधानों का सख्ती से पालन करने का अनुरोध किया गया है। न्यायमूर्ति जी.एस.कुलकर्णी और न्यायमूर्ति अद्वैत एम.सेथना की पीठ ने ट्रांसजेंडर समुदाय को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के रूप में वर्गीकृत करने, शिक्षा, सार्वजनिक रोजगार और आवास में आरक्षण का लाभ बढ़ाने को लेकर राज्य सरकार को दो सप्ताह में हलफनामा दाखिल कर जवाब देने को कहा है। याचिका में दावा किया गया है कि महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम और भर्ती नियम 2011 के तहत पुलिस कांस्टेबल के पद पर भर्ती में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ भेदभाव हो रहा है। याचिका में अनुरोध किया गया है कि केंद्र और राज्य सरकार ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े नागरिकों के रूप में मानने के लिए कदम उठाएं। इसके साथ शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और सार्वजनिक रोजगार और नियुक्तियों के मामलों में सभी प्रकार के आरक्षण का विस्तार की जाए। याचिका में यह भी दावा किया गया है कि सुप्रिम कोर्ट और हाई कोर्ट द्वारा पारित आदेश का पालन न करने और उस अधिनियम और विनियमों के प्रावधानों के में लापरवाही बरतने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ धारा 2005 के तहत कार्रवाई की जाए। वकील हेमंत घाडीगांवकर के माध्यम से दायर याचिका में अनुरोध किया गया है कि सरकार को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए पर्याप्त आरक्षण सुनिश्चित करके नालसा बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने का निर्देश दें। याचिका में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए सार्वजनिक रोजगार में ऊपरी आयु सीमा में छूट की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है। इसमें दलील दी गई है कि समय पर आरक्षण लागू करने में सरकार की विफलता के कारण कई ट्रांसजेंडर उम्मीदवार सरकारी नौकरियों के लिए पात्र आयु सीमा पार कर चुके हैं।

Created On :   3 April 2025 8:42 PM IST

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