बॉम्बे हाई कोर्ट: कुणाल कामरा ने लगाई याचिका, बदलापुर मामले में एसआईटी गठित कर जांच का आदेश, मालेगांव मामले में जज का तबादला नहीं

कुणाल कामरा ने लगाई याचिका, बदलापुर मामले में एसआईटी गठित कर जांच का आदेश, मालेगांव मामले में जज का तबादला नहीं
  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने 5 पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने और एसआईटी गठित कर जांच का दिया आदेश
  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने मालेगांव विस्फोट मामले के ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश के तबादले पर लगाई रोक
  • कुणाल कामरा ने अपने ऊपर दर्ज एफआईआर को रद्द करने के लिए हाई कोर्ट में याचिका किया दाखिल

Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को बदलापुर स्कूल बच्चियों से दुराचार के आरोपी अक्षय शिंदे की एनकाउंटर में हुई मौत के लिए जिम्मेदार पांच पुलिस कर्मियों के खिलाफ दो दिनों में एफआईआर दर्ज करने और मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन का आदेश दिया। एसआईटी मुंबई पुलिस के संयुक्त पुलिस आयुक्त लखमी गौतम की निगरानी में होगी। उन्हें एसआईटी गठित करने के लिए अपनी पसंद के अधिकारियों का चयन करने की स्वतंत्रता दी गई है और टीम का नेतृत्व पुलिस उपायुक्त करेंगे। अदालत का यह आदेश राज्य सरकार द्वारा प्राथमिकी दर्ज करने में अनिच्छा को देखते हुए आया है। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-डेरे और न्यायमूर्ति डॉ. नीला गोखले की पीठ ने कहा कि अपराध की जांच करने से इनकार करना कानून के शासन को कमजोर करता है, न्याय में लोगों का विश्वास खत्म करता है और अपराधियों को सजा से बच निकलने देता है। एफआईआर दर्ज करने में राज्य सरकार की अनिच्छा ने याचिकाकर्ता और उनकी पत्नी को असहाय महसूस कराया है, जिससे उन्हें अपने बेटे की असामयिक मौत पर मामले को बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इस तरह की लापरवाही संस्थानों में लोगों के विश्वास को कमजोर करती है और राज्य की वैधता से समझौता करती है। पीठ ने यह भी कहा कि एक संवैधानिक अदालत के रूप में हम इसकी अनुमति नहीं दे सकते और मूकदर्शक बने रह सकते हैं। अक्षय के पिता अन्ना शिंदे ने वकील अमित कटरनवरे के माध्यम से अदालत का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन कुछ सुनवाई के बाद उन्होंने याचिका वापस लेने की मांग की थी। उनकी अनुपस्थिति में मामले को बंद करना आसान होता, लेकिन एक संवैधानिक अदालत राज्य द्वारा अपने दायित्वों को पूरा करने में विफलता को नजरअंदाज नहीं कर सकती। पीठ ने राज्य सीआईडी को दो दिनों के भीतर सभी कागजात एसआईटी को सौंपने का निर्देश दिया। पीठ ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता आगे नहीं आता है, तो पुलिस सहित कोई भी व्यक्ति आपराधिक कानून लागू कर सकता है। इससे न्याय प्रणाली में जनता का विश्वास बना रहेगा। राज्य की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील अमित देसाई ने अदालत के आदेश पर रोक लगाने की मांग की, जिसे पीठ ने खारिज कर दिया। अक्षय शिंदे पर बदलापुर के एक स्कूल में दो नाबालिग बच्चियों के साथ दुराचार का आरोप था। इस घटना से बड़े पैमाने पर लोगों का गुस्सा फैल गया था। पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया। कथित तौर पर पुलिस ने उसे तब गोली मार दी थी, जब उसने सितंबर में एक पुलिसकर्मी नीलेश मोरे से बंदूक छीन ली थी और उस पर गोली चला दिया था। उस समय उसे तलोजा जेल से कल्याण ले जाया जा रहा था। मजिस्ट्रेट की जांच रिपोर्ट में पांच पुलिसकर्मियों को शिंदे की हिरासत में हुई मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने मालेगांव विस्फोट मामले के ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश के तबादले पर लगाई रोक

इसके अलावा बॉम्बे हाई कोर्ट ने मालेगांव विस्फोट मामले के ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश ए.के. लाहोटी के तबादले पर रोक लगा दी है। अदालत ने माना कि हाई-प्रोफाइल मामले में लंबे समय से लंबित सुनवाई में विशेष न्यायाधीश लाहोटी के तबादले से देरी होने का खतरा है। 5 अप्रैल को विशेष न्यायाधीश लाहोटी ने मालेगांव विस्फोट मामले में अभियोजन और बचाव पक्ष दोनों को 15 अप्रैल तक अपनी अंतिम दलीलें पूरी करने का निर्देश दिया था। उसी दिन हाई कोर्ट ने 222 न्यायाधीशों के तबादले की की सूची जारी की, जिसमें न्यायाधीश लाहोटी का भी नाम था। अंतिम दलीलें पूरी करने का निर्देश दिया। पीड़ितों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ट्रांसफर आदेश पर रोक लगाने और लाहोटी को फैसला सुनाने के लिए समय बढ़ाने की मांग करते हुए हाई कोर्ट पहुंचे। उन्होंने दलील दी कि एक नए न्यायाधीश को भारी-भरकम चार्जशीट, गवाहों के बयान और एनआईए द्वारा पेश किए गए सबूतों को देखने में समय लगेगा, जिससे ट्रायल के समापन में देरी होगी। हालांकि तबादले के आदेश में कहा गया है कि स्थानांतरित किए जा रहे न्यायिक अधिकारियों को निर्देश दिया जाता है कि उन सभी मामलों में निर्णय पूरा करें, जिनमें सुनवाई पूरी हो चुकी है। तबादले के आदेश में कहा गया है कि लाहोटी को कार्यभार सौंपने से पहले मामले का निपटारा करना चाहिए। 2008 में मालेगांव बम विस्फोट में छह लोग मारे गए थे और 100 घायल हुए थे। महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने दावा किया था कि उसके द्वारा एकत्र किए गए साक्ष्य हिंदुत्व आतंकवादियों की संलिप्तता की ओर इशारा करते हैं। एटीएस ने प्रज्ञा सिंह ठाकुर समेत हाई-प्रोफाइल आरोपियों के साथ गिरफ्तार किया था।

कुणाल कामरा ने अपने ऊपर दर्ज एफआईआर को रद्द करने के लिए हाई कोर्ट में याचिका किया दाखिल

उधर कुणाल कामरा ने स्टैंड-अप शो के दौरान एकनाथ शिंदे को गद्दार कहने के मामले में अपने ऊपर दर्ज एफआईआर को रद्द करने के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दाखिल किया है। याचिका में पुलिस की कार्रवाई को दुर्भावनापूर्ण बताया है। 24 मार्च को खार पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर गई है। 8 अप्रैल को मामले की अगली सुनवाई होगी। न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल और न्यायमूर्ति एस.एम. मोडक की पीठ के समक्ष वकील नवरोज सीरवई ने सोमवार को कुणाल कामरा की याचिका पर शीघ्र सुनवाई का अनुरोध किया। उन्होंने कामरा की जान को खतरा होने के बावजूद पुलिस ने उन्हें वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए पूछताछ के लिए पेश होने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। याचिका में जान को खतरा होने के बावजूद पुलिस द्वारा उनकी शारीरिक उपस्थिति की मांग को अनुचित बताया गया। याचिका में जांच पर रोक लगाने और कामरा के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने की मांग की गई। सीरवई ने पीठ को बताया कि उन्हें खार पुलिस की एक टीम के पुडुचेरी में होने की जानकारी मिली है, जहां कामरा रहते हैं। पीठ ने कहा कि कामरा को अग्रिम जमानत याचिका दायर करने पर विचार करना चाहिए। वह केवल एफआईआर को रद्द करने के पहलू पर सुनवाई करेंगे। गिरफ्तारी से सुरक्षा के लिए कामरा की याचिका मद्रास हाई कोर्ट के समक्ष सूचीबद्ध है। वकील सीरवई ने दलील दी कि वह अग्रिम जमानत के पहलू पर विचार करेंगे, लेकिन अदालत को जल्दी सुनवाई करने पर विचार करना चाहिए। मुंबई पुलिस यह जानते हुए भी रात 11 बजे समन भेज रही थी कि वह अपने माता-पिता के साथ नहीं रह रहे हैं। वे वरिष्ठ नागरिक हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे अन्य लोग प्रभावित होते हैं और उसकी जान को खतरा है। पीठ ने 8 अप्रैल को कामरा की याचिका पर सुनवाई करने पर सहमति जताई।शिवसेना विधायक मुरजी पटेल ने खार पुलिस स्टेशन में शिकायत किया कि कामरा ने खार के हैबिटेट स्टूडियो में एक शो के दौरान शिंदे के नैतिक आचरण के बारे में अपमानजनक बयान देकर उनकी मानहानि की। पटेल ने दावा किया कि कामरा ने हमारी पार्टी और हमारे प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों की भावनाओं को एक-दूसरे के प्रति आहत करके दो राजनीतिक दलों के बीच नफरत भी पैदा की। पुलिस ने कामरा पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 353(1)(बी) और 353(2) (सार्वजनिक रूप से नुकसान पहुंचाने वाले बयान) के साथ-साथ 356(2) (मानहानि) के तहत मामला दर्ज किया है। एक सप्ताह पहले मुंबई पुलिस कामरा के मुंबई स्थित आवास पर पूछताछ के लिए उपस्थित नहीं होने पर उन्हें समन देने पहुंची थी। तमिलनाडु के निवासी कामरा ने कहा कि ऐसी जगह जाना समय और सार्वजनिक संसाधनों की बर्बादी है, जहां वे पिछले 10 वर्षों से नहीं रहे हैं। इस घटना का भी याचिका में उल्लेख किया गया है। याचिका में कहा गया है कि पुलिस ने याचिकाकर्ता के वरिष्ठ नागरिक माता-पिता को भी समन भेजने की आड़ में रात 10:30 बजे परेशान किया।

Created On :   7 April 2025 10:00 PM IST

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