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पिछड़ापन: अमरावती जिले को है आईटी पार्क, एम्स व फसल आधारित उद्योगों का बेसब्री से इंतजार
- चुनाव में जनहित के मुद्दों पर नहीं किसी का ध्यान
- हजारों हेक्टेयर जमीन वीरान पड़ी
- सिविल सोसाइटी ऑफ अमरावती ने उठाए कई मुद्दे
डिजिटल डेस्क, अमरावती। विदर्भ की सांस्कृतिक नगरी अमरावती का नाम भले ही देश की पहली महिला राष्ट्रपति और पहले केंद्रीय कृषि मंत्री के रूप में बड़ा चर्चित है, लेकिन रोजगाराेन्मुख परियोजनाओं का स्वतंत्रता काल से ही अकाल पड़ा है। जिसके कारण अमरावती शहर व जिला के युवा उच्च शिक्षा के बाद पुणे, मुंबई, बैंगलुरु जैसे महानगरों में स्थलांतरित होने विवश हैं। परिणाम स्वरूप अमरावती केवल बुजुर्गों की आश्रय स्थली बनकर रह गया है। यह कड़वा सच सभी भलीभांति जानते हैं।
सिविल सोसाइटी की अच्छी पहल फिर भी टेक्सटाइल पार्क छोड़ कोई बड़ा उद्योग लाने जनप्रतिनिधि अब तक दबाव बनाने में नाकाम रहे है। आईटी पार्क की नितांत जरूरत है। जिससे अमरावती जिले से सालाना इंजीनियरिंग करने वाले हजारों विद्यार्थियों को अपना पैतृक शहर व जिला छोड़कर रोजगार के लिए पुणे, मुंबई, बैंगलुरु के साथ ही विदेश जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। जिले की प्रत्येक तहसील मुख्यालयों में एमआईडीसी के लिए हजारों हेक्टेयर जगह उपलब्ध है। जो बरसों से वीरान पड़ी एक अदद उद्योग को तरस रही है।
महिला आईटी पार्क, सेंट्रल यूनिवर्सिटी का था प्रस्ताव : देश को पहली महिला राष्ट्रपति देने वाले अमरावती जिले में कम से कम एक महिला आईटी पार्क के प्रस्ताव को भी कभी किसी ने लोकसभा में जोर-शोर से नहीं उठाया। केंद्रीय विश्वविद्यालय का भी प्रस्ताव राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील के समय प्रस्तुत किया गया था। उसका भी किसी ने फॉलोअप लेना जरूरी नहीं समझा। कृषि पर निर्भर अमरावती जिले में सोयाबीन, संतरा प्रक्रिया उद्योग के लिए कौन पहल करेगा। इस दिशा में अमरावती शहर के ज्येष्ठ चिकित्सक डा. बबन बेलसरे, किसान धनंजय धवड़, शिक्षा क्षेत्र से अनंत मराठे, सामाजिक क्षेत्र से डॉ. अविनाश सावजी, उद्योग क्षेत्र से सुनील झोंबाडे ने सिविल सोसाइटी ऑफ अमरावती के माध्यम से एक सराहनीय अभियान छेड़ा है। चुनाव मैदान में उतरे प्रमुख उम्मीदवारों को बुलाकर उनसे विजन जानने का प्रयास किया जा रहा है।
Created On :   23 April 2024 10:39 AM GMT