अजब गजब: एक दूसरे को लगा दिया रंग तो बज जाएगा शादी का बैंड, जानें इस अलग तरह के रिवाज के बारे में, रह जाएंगे दंग!

एक दूसरे को लगा दिया रंग तो बज जाएगा शादी का बैंड, जानें इस अलग तरह के रिवाज के बारे में, रह जाएंगे दंग!
  • होली का त्योहार होने वाला है जल्द ही शुरू
  • देश में अलग-अलग तरह से मनती है होली
  • एक दूसरे को लगा दिया रंग तो करनी होगी शादी

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश में होली का उत्सव शुरू होने वाला है। इस दिन सभी लोग एक दूसरे को रंग लगाते हैं और शुभकामनाएं देते हैं। होली को मनाने के लिए अलग-अलग रिती रिवाज होते हैं, कहीं फूलों से तो कहीं लट्ठमार होली खेली जाती है, ऐसा ही एक रिवाज है मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल इलाकों में, यहां पर भगोरिया होली खेली जाती है। ये खेली जाने वाली अनोखी होली में अविवाहित युवक-युवतियां एक दुसरे को रंग लगाकर या पान खिलाकर विवाह प्रस्ताव रखते हैं।

आदिवासी बहुल इलाकों में आयोजित होता है यह मेला

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक,मध्यप्रदेश के खरगोन, झाबुआ, बड़वानी, धार,अलीराजपुर जैसे अनुसूचित बहूल इलाकों में होली के मौके मनाये जाने वाले इस पर्व का नाम भोंगर्या या भगोरिया लोक पर्व है। इस पर्व पर होली के सात दिन पहले भगोरिया मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले की तैयारी कई दिन पूर्व ही शुरू कर दी जाती है और सभी उम्र के लोग इस मेले में भाग लेते हैं।

जीवनसाथी चुनने की अनोखी परंपरा

भगोरिया लोक पर्व को उत्साह और सदभावना के अलावा प्रेम के लिए भी जाने जाता ,है क्योंकि यहां आयोजित मेले में गांव के युवक-युवतिंया अपने जीवनसाथी को चुनते हैं। इस दिन सभी अविवाहित आदिवासी महिलांए पूरे शृंगार के साथ मेले में प्रवेश करती हैं। अगर मेले में रहते हुए कोई भी अविवाहित लड़का उसे पान देता है और वह खा लेती है तो इसका मतलब उसने विवाह के लिए हां कर दी है। इसके बाद दोनों भगोरिया मेले से भागकर शादी कर लेते हैं।

इसके अलावा कुछ मेलों में जीवनसाथी चुनने के लिए रंग लगाने की प्रथा का भी पालन किया जाता है। जहां युवक युवति को गुलाबी रंग लगाकर जीवनभर का साथ मांगता है और अगर लड़की को भी विवाह प्रस्ताव मंजूर हो तो वह भी लड़के को रंग लगाती है। इसी तरीके से दोनों की शादी तय होती है।

कब शुरू हुआ था भगोरिया मेला?

मान्यता है कि भगोरिया पर्व की शुरुआत राजा भोज के दौरान दो भीम राजाओं कासूमार और बालून ने भगोर में की थी। जिसके बाद से इसे हाट या मेले के रूप में मनाया जाने लगा। इसी पर्व से जूड़ी एक दूसरी मान्यता भी है। बताया जाता है कि माताजी के श्राप से जब भगोर नामक गांव उजड़ गया था तो इसे वापिस बसाने के बाद से यहां वार्षिक मेला आयोजित किया जाने लगा।

Created On :   13 March 2025 11:35 PM IST

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