बजरंगबली, बुर्का और बवाल- बीजेपी फिर भी नहीं लगी पार, हार का कारण बनी ये 6 गलतियां

बजरंगबली, बुर्का और बवाल- बीजेपी फिर भी नहीं लगी पार, हार का कारण बनी ये 6 गलतियां
38 साल पुराना रिवाज नहीं तोड़ पाई बीजेपी

डिजिटल डेस्क, बेंगलुरू। कर्नाटक में आज विधानसभा चुनाव के नतीजों का दिन है। अभी तक आए आंकड़ों में कांग्रेस एक बड़ी जीत दर्ज कर बहुमत की सरकार बनाते हुए नजर आ रही है। वहीं पिछले चुनाव में 104 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी बीजेपी इस बार 65 सीटों पर सिमटती हुई दिख रही है। इसी के साथ राज्य में 38 सालों से चला आ रहा परिवर्तन का रिवाज इस बार भी बरकरार रहने वाला है। बता दें कि साल 1985 के बाद से कर्नाटक में कोई भी दल सत्ता पर दोबारा काबिज नहीं हुआ।

उम्मीद हुई धराशायी

इस बार के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी को उम्मीद थी कि प्रदेश में सत्ता परिवर्तन वाला 38 साल पुराना रिवाज बदलेगा और वह दोबारा सत्ता में काबिज होंगे। लेकिन इतिहास बदलने की उसकी उम्मीद को आज आ रहे नतीजों से करारा झटका लगा है। राज्य की 224 विधानसभा सीटों में से बीजेपी को एक करारी हार मिलती नजर आ रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में जहां 104 सीटें जीतकर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, वहीं इस बार के चुनावी नतीजों में पार्टी 65 सीटों के आसपास सिमटती दिख रही है।

अभी तक आए चुनाव परिणाम में कांग्रेस की जीत और बीजेपी की हार लगभग तय हो गई है, जिसके बाद इसे लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं। साथ ही सवाल उठ रहे हैं कि आखिर बीजेपी से ऐसी कौन सी गलतियां हो गईं जिनसे पार्टी को इतनी बड़ी हार का सामना करना पड़ा।

इन वजहों से बीजेपी को कर्नाटक में मिली मात

ध्रुवीकरण का दांव रहा असफल

कर्नाटक चुनाव से करीब एक साल पहले से बीजेपी द्वारा धार्मिक ध्रुवीकरण का दांव चला गया। पहले हिजाब और हलाल फिर उसके बाद चुनाव से ठीक पहले बजरंगबली और मुस्लिम आरक्षण समाप्त करने जैसे मुद्दे उछालकर ध्रुवीकरण के जरिए हिंदू वोट बंटोरने की पुरजोर कोशिश की। लेकिन यह कोशिशें पार्टी के काम न आ सकी।

चुनाव से एक साल पहले बीजेपी सरकार ने राज्य के शैक्षणिक परिसरों में हिजाब पहनने पर बैन लगा दिया था। इस मुद्दे पर विपक्षी पार्टियों ने पूरे राज्य में प्रदर्शन किए। वहीं बीजेपी ने इसे सही निर्णय बताया। लेकिन जब चुनाव पास आए तो बीजेपी ने इस मुद्दे से किनारा कर लिया। पार्टी के किसी भी नेता ने चुनाव प्रचार के दौरान हिजाब-हलाल का जिक्र नहीं किया। दरअसल पार्टी को यह पता चल गया था कि इन मुद्दों से पार्टी को नुकसान ही होगा।

इसके अलावा चुनाव से ऐन वक्त पहले 4 फीसदी मुस्लिम आरक्षण खत्म करने का दांव भी असफल रहा। पार्टी को उम्मीद थी कि इस निर्णय के जरिए हिंदू समुदाय का वोट उन्हें मिलेगा लेकिन ऐसा नहीं हो पाया।

वहीं जब कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में बजरंगदल को बैन करने की बात कही तो बीजेपी ने इसे भगवान बजरंगबली से जोड़ दिया। पार्टी ने पूरा मुद्दा ही भगवान हनुमान के अपमान का बना दिया। पीएम मोदी ने अपनी चुनावी रैलियों में इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस को जमकर घेरा। हालांकि पार्टी के इस दांव का कर्नाटक की जनता पर कोई असर नहीं पड़ा।

भ्रष्टाचार के आरोप

राज्य में बीजेपी की हार का सबसे बड़ा कारण भ्रष्टाचार का मुद्दा रहा। इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस ने बीते एक साल से बीजेपी सरकार को घेरना शुरू कर दिया था जो कि चुनाव नजदीक आने तक एक बड़ा मुद्दा बन गया था। कांग्रेस ने बीजेपी सरकार पर सरकारी ठेकों में 40 फीसदी कमीशन खाने का आरोप लगाया और उसे 40 पर्सेंट कमिशन वाली सरकार के तौर पर प्रचार किया। चुनाव के दौरान अपनी रैलियों में कांग्रेस नेता राहुल गांधी समेत अन्य राष्ट्रीय और क्षेत्रीय नेताओं ने भी भ्रष्टाचार के मुद्दे को ही केंद्र में रखकर बीजेपी पर जमकर हमला किया। अपनी रैलियों में राहुल ने कहा था, 'कर्नाटक में बीजेपी के विधायक का बेटा 8 करोड़ के साथ पकड़ा जाता है तो वहीं बीजेपी विधायक का कहना है कि 2500 करोड़ रुपये में मुख्यमंत्री की कुर्सी खरीदी जा सकती है।' वहीं एक अन्य रैली में राहुल ने कहा था, 'कर्नाटक में जो भ्रष्टाचार हुआ, वह 6 साल के बच्चे को पता है। यहां पिछले 3 साल से बीजेपी की सरकार है और पीएम मोदी को कर्नाटक में भ्रष्टाचार के बारे में भी पता होगा।'

लोकल लीडर्स की जगह सेंट्रल लीडर्स को प्रमुखता देना

बीजेपी की हार का एक बड़ा कारण यह भी है कि उसने चुनाव प्रचार के लिए अपने स्टार प्रचारकों की सूची में लोकल लीडर्स की जगह सेंट्रल लीडर्स को प्रमुखता दी। पार्टी ने सीएम बसवराज बोम्मई और लोकल नेताओं की जगह पीएम नरेंद्र मोदी, अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ, स्मृति ईरानी जैसे नेताओं को चुनाव प्रचार में ज्यादा अहमियत दी। पार्टी का यह निर्णय उनके लिए गलत साबित हुआ। कांग्रेस की तरफ से भी इसे कन्नड़ बनाम बाहरी के रूप में जमकर प्रचारित किया।

महंगाई और बेरोजगारी

महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों की जगह बीजेपी ने अपने चुनाव केंपेन में ध्रुवीकरण जैसे मुद्दों को अधिक प्रमुखता दी, जिसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ा। जबकि चुनाव से कई चुनावी सर्वों में प्रदेश की जनता ने महंगाई और बेरोजगारी को सबसे बड़ा मुद्दा बनाया था। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने इसे अपना सबसे बड़ा मुद्दा बनाया। जिससे हुआ यह कि मध्यम व निम्न वर्ग का वह तबका जो कि बीजेपी को वोट देता था वह उससे दूर होकर कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हो गया। वहीं कांग्रेस ने भी मुफ्त गैस सिलेंडर जैसे ऐलान करके चुनाव का माहौल अपनी तरफ कर लिया।

येदियुरप्पा को साइडलाइन करना

कर्नाटक में बीजेपी को मजबूती देने वाले पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा को इस चुनाव में साइडलाइन करना पार्टी के खिलाफ गया। वहीं पूर्व सीएम जगदीश शेट्टार और पूर्व उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी जैसे बड़े नेताओं की टिकट काटने से भी पार्टी को नुकसान पहुंचा, क्योंकि ये दोनों नेताओं ही कांग्रेस में शामिल हो गए। खास बात ये है कि येदियुरप्पा, शेट्टार और सावदी तीनों ही लिंगायत समुदाय से आते हैं जोकि राज्य का सबसे बड़ा समुदाय है। इन नेताओं को नजर अंदाज करना बीजेपी के विपक्ष में गया।

प्रभावी चेहरे का न होना

इन सभी कारणों के अलावा कर्नाटक में येदियुरप्पा के अलावा बीजेपी के पास कोई प्रभावी चेहरा नहीं था। बसवराज बोम्मई जरूर सीएम थे लेकिन वो इस दौरान कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ पाए। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के पास डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया जैसे मजबूत नेता थे।

Created On :   13 May 2023 10:50 AM GMT

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