मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023: चुनाव लड़ने से क्यों कतरा रहे हैं कांग्रेस के दिग्गज नेता, किसी की इमेज पर लगा है बट्टा तो कोई है आलाकमान से नाराज!

चुनाव लड़ने से क्यों कतरा रहे हैं कांग्रेस के दिग्गज नेता, किसी की इमेज पर लगा है बट्टा तो कोई है आलाकमान से नाराज!
  • एमपी में चुनाव को लेकर मचा सियासी घमासान
  • विस चुनाव नवंबर या दिसंबर में संभव

डिजिटल डेस्क, भोपाल। मध्य प्रदेश में सत्ता वापसी के लिए कांग्रेस पार्टी जी तोड़ मेहनत कर रही है। कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में रैलियों और जनसभा को संबोधित कर रहे हैं ताकि आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत की रथ यात्रा को रोका जा सके। एमपी में अगले महीने नवंबर या दिसंबर में ही चुनाव होने वाले हैं। लेकिन कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता चुनाव लड़ने से कतरा रहे हैं। हाल ही में राजधानी दिल्ली में स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक हुई थी। जिसमें एमपी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव भी शामिल हुए थे। जिन्होंने पार्टी हाईकमान से इशारों-इशारों में ही यह कहने की कोशिश की थी कि वो चुनाव नहीं लड़ेंगे।

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष के अलावा राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा, दिग्विजय सिंह जैसे कई वरिष्ठ नेताओं के नाम भी सामने आ रहे हैं जो चुनाव लड़ने के मूड में नहीं हैं। कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता नितिन दुबे इन मामलों पर कहा कि, टिकट की घोषणा के बाद ही यह तय होगा कि कौन चुनाव लड़ेगा और कौन नहीं? राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा से जब पत्रकारों ने उनके चुनाव लड़ने को लेकर सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि,वे फुलटाइम पॉलिटिशियन नहीं हैं, इसलिए चुनाव लड़ने की बात ही नहीं उठती है। जबकि राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने अब तक खुलकर चुनाव लड़ने पर कुछ नहीं कहा है। तो आइए बताते हैं कि आखिर ये नेता एमपी विधानसभा चुनाव में जनता के सामने क्यों नहीं जाना चाहते हैं इनकी क्या मजबूरी है।

पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह

सबसे पहले दिग्विजय सिंह की बात करते हैं, मौजूदा समय में दिग्गी कांग्रेस पार्टी की ओर से राज्यसभा सांसद हैं। कांग्रेस की ओर से दो बार एमपी का कमान बतौर सीएम रहकर संभाल चुके हैं। जानकारी के मुताबिक, पूर्व सीएम चुनाव लड़ना नहीं चाहते हैं क्योंकि फिलहाल इनके घर से ही तीन विधायक हैं।

दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह राघोगढ़ सीट से विधायक हैं, जो खुद टिकट के प्रबल दावेदार हैं। पूरी संभावना है कि सिंह के बेटे को इस बार भी पार्टी चुनाव में खड़ा कर सकती है। इसके अलावा दिग्विजय के भाई लक्ष्मण सिंह चाचौड़ा से तो इनके भतीजे प्रियव्रत सिंह खिलचीपुर सीट से विधायक हैं। एक ही परिवार से तीन लोग टिकट के प्रबल दावेदार हैं। सूत्रों के मुताबिक, पार्टी हाईकमान तीनों को फिर से चुनावी मैदान में उतार सकती है। दिग्गी इसलिए भी चुनाव नहीं लड़ रहे हैं क्योंकि पार्टी के अंदर पहले ही एक परिवार में तीन विधायक को लेकर घमासान है और खुद चुनाव लड़ कर इस मामले को और तूल नहीं देना चाहते हैं। एक कारण मिस्टर बंटाधार वाला जुमला भी है। जिसके जरिए बीजेपी उनकी इमेज को धुमिल करती रही है। खुद चुनाव लड़ कर बीजेपी के इस मुद्दे को और हवा नहीं देना चाहते हैं।

चुनाव न लड़ने का दूसरा सबसे बड़ा कारण कमलनाथ द्वारा दी गई जिम्मेदारी, जो दिग्विजय सिंह पूरी करने में लगे हुए हैं। पूर्व सीएम और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने दिग्गी को मालवा, विंध्य और नर्मदांचल की करीब 66 सीटों की जिम्मेदारी दी हुई है ताकि वो पार्टी को ज्यादा से ज्यादा सीटों पर जीत दिला सके।

राज्यसभा सासंद विवेक तन्खा

मध्य प्रदेश में कांग्रेस के लिए विवेक तन्खा अच्छा खासा प्रभाव रखते हैं लेकिन बीते दिन पत्रकारों से यह कह कर की वो आगामी विधानसभा चुनाव में खड़े नहीं होंगे, प्रदेश की सियासत गरमा दी है। विवेद तन्खा कांग्रेस के कद्दावर नेता हैं, लेकिन साल 2014 और 19 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। तन्खा चुनाव लड़ने को लेकर कहते हैं कि अगर पार्टी चाहेगी भी तो मैं चुनाव नहीं लड़ूगा, चाहे पार्टी कितनी भी प्रयास कर लें।

तन्खा कांग्रेस के उन 23 नेताओं में शामिल रहे हैं जो कांग्रेस पार्टी की नीतियों के खिलाफ समय-समय पर बोलते रहे हैं। जबलपुर में कांग्रेस काफी मजबूत है। मौजूदा समय में जबलपूर की आठ सीटों में से कांग्रेस के पास चार सीट मौजूद हैं। साथ ही जबलपुर के नगर निगम पर 18 साल से कब्जा कर बैठी बीजेपी को बीते वर्ष चुनाव के दौरान हार का सामना करना पड़ा था। अब जबलपुर निगम पर भी कांग्रेस का ही कब्जा है।

पूर्व एमपी कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव

कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेताओं में अरुण यादव का नाम भी आता है। साल 2018 से पहले ये एमपी के प्रदेश अध्यक्ष के पद पर रहते हुए कांग्रेस की कमान संभाल चुके हैं। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में ये बुधनी सीट से खड़े हुए थे। जिन्हें करारी हार शिवराज सिंह चौहान से मिली थी। इस हार को लेकर कांग्रेस आलाकमान से काफी खफा भी रहे थे। कहा जाता है कि, यादव उसी वक्त खफा हुए थे जिस समय उन्हें शिवराज के आगे चुनाव लड़ने को लेकर कहा गया था। अरुण यादव ने पार्टी से निमाड़ के किसी भी सीट से चुनाव लड़ने को कहा था लेकिन उन्हें बुदनी से खड़ा करके ये आश्वसन दिया गया था कि अगर उनकी हार होती है तो उन्हें प्रदेश सरकार या केंद्र में उचित पद दिया जाएगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। जिसकी वजह से अरुण यादव समय-समय पर कांग्रेस पार्टी को घेरते रहे हैं।

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ को लेकर हमेशा से अरुण यादव मुखर रहे हैं। चाहें वो मुख्यमंत्री बनने को लेकर हो या अध्यक्ष पद और नेता प्रतिपक्ष का पद संभालने को लेकर, यादव कमलनाथ को घेरते रहे हैं। कांग्रेस पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर एक भी प्रत्याशियों की लिस्ट जारी नहीं किया है। जबकि बीजेपी एमपी चुनाव को देखते हुए 79 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर चुकी है।

Created On :   7 Oct 2023 4:15 PM IST

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