MP Election 2023: मध्य प्रदेश में इन चारों विधायकों की राह नहीं दिख रही आसान, भितरघात और तीसरी ताकत बड़ा रोड़ा

मध्य प्रदेश में इन चारों विधायकों की राह नहीं दिख रही आसान, भितरघात और तीसरी ताकत बड़ा रोड़ा
17 नवंबर को मध्य प्रदेश में होंगे विधानसभा चुनाव

डिजिटल डेस्क, सिवनी। जिले की चारों विधानसभा सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय होने के कारण रोचक होता जा रहा है। कांग्रेस और भाजपा ने चुनावी समर में अपने वर्तमान विधायकों को तो उतारा है लेकिन सिवनी के साथ ही बरघाट, केवलारी और लखनादौन विधानसभा में तीसरी ताकत पिछले बार से कहीं अधिक मजबूत होकर मैदान में है। वर्तमान विधायकों द्वारा किए गए विकास वादे पूरे ना होना भी इनकी कमजोरी बनकर सामने आ रही है। वहीं अंसतुष्टों के कारण भी कांग्रेस और भाजपा के अंदर बन रही भितरघात की स्थिति भी इनके लिए खतरे की घंटी है। चारोंं विधायकों में से दो तीसरी बार तथा एक चौथी बार जनता के सामने है। सिवनी से भाजपा के दिनेश राय ‘मुनमुन’ का यह चौथा चुनाव है। 2008 के अपने पहले चुनाव में ये निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस को पीछे धकेलते हुए दूसरे नंबर पर रहे थे। लखनादौन में कांग्रेस के योगेन्द्र सिंह ‘बाबा’ तथा बरघाट में कांग्रेस के अर्जुन सिंह काकोडिय़ा लगातार तीसरी बार चुनाव मैदान हैं। मुनमुन और बाबा लगातार 2 चुनाव जीत हैट्रिक पाइंट पर खड़े हैं, जबकि काकोडिय़ा 2013 का चुनाव हार चुके हैं। केवलारी में भाजपा के राकेश पाल सिंह को जरूर दूसरी बार अवसर मिला है। काकोडिय़ा की तरह पाल पर भी अपनी साख बचाने और सीट जीतने का दबाव है।

जानें कहां किसके सामने क्या चुनौतियां

सिवनी : दिनेश राय ’मुनमुन’ (भाजपा)

- 2013 का निर्दलीय चुनाव जीतने के बाद मुनमुन भाजपा में शामिल हो गए थे। वजह बताई थी क्षेत्र का विकास और लालमाटी क्षेत्र (गोपालगंज) में माचागोरा का पानी लाना। 2018 का चुनाव भी पानी के नाम पर जीता। वादे में एक और क्षेत्र कलारबांकी भी जुड़ गया, लेकिन दोनों स्थानों पर अब तक पानी नहीं पहुंचा।

- इनका विरोध अधिसूचना जारी होने के पहले शुरू हो गया था। एक पूर्व विधायक व पूर्व जिला अध्यक्ष सहित दर्जन भर नेता अंदर ही अंदर खिलाफ में काम कर रहे हैं।

- 2008 में जब पहला चुनाव लड़ा था तब इन्हें 23 प्रतिशत वोट मिले थे। भाजपा का साथ पाने के बाद यह 50 प्रतिशत पर पहुंच गया। इस दरम्यान कांग्रेस का वोट प्रतिशत 14 से बढ़ कर 39 हो चुका है जो परेशानी खड़ी कर सकता है।

- गोंगपा के सशक्त प्रत्याशी सहित गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और 7 निर्दलियों की मौजूदगी भी अपना असर दिखाएगी।

लखनादौन : योगेन्द्र सिंह ‘बाबा’ (कांग्रेस)

- मां उर्मिला सिंह की राजनीतिक विरासत संभाल रहे बाबा की क्षेत्र से दूरी और राजधानी प्रेम बड़ा मुद्दा है। इनके गुमशुदा के पोस्टर लग चुके हैं। ड्राई क्षेत्र माने जाने वाले लखनादौन, धूमा, आदेगांव के लिए बांध बना ना ही पानी पहुंचा। पानी के लिए हुए जनांदोलनों से भी नदारद रहे। घंसौर को नगर पंचायत का दर्जा भी नहीं दिलवा सके।

- क्षेत्र में गैरमौजूदगी का बुरा असर यह हुआ कि 2018 में ये चुनाव तो जीत गए लेकिन इनका वोट प्रतिशत 39 से 34 पर आ गया। इनकी लोकप्रियता में गिरावट व अनुपलब्धियों को ही देखते हुए भाजपा ने यहां अपना प्रत्याशी रिपीट किया है।

-गोंगपा हमेशा से यहां तीसरी ताकत के रूप में सामने आती रही है। उसका वोट शेयर 20 प्रतिशत तक का रहा है। बसपा से गठबंधन के बाद इसकी ताकत और बढ़ी है।

केवलारी : राकेश पाल सिंह (भाजपा)

- अपनों के विरोध के बाद ऐन वक्त पर दिल्ली की दौड़ से टिकट तो बच गई, लेकिन अब भितरघात से खुद को बचाना सबसे बड़ा संकट बना हुआ है। नाराज कार्यकर्ताओं को एकजुट करना भी बड़ी चुनौती है।

- खस्ताहाल नहरों के लाइनिंगकरण का काम प्रारंभ करा पाने में विफल रहे। भीमगढ़ बांध सेे छोड़े गए पानी में ढहे दो बड़े पुलों के मामले से जुड़े सवाल अब तक अनुत्तरित हैं। नए पुलों का निर्माण शुरु न हो पाना, धनौरा में डिग्री कॉलेज न खुल पाना भी इनकी अनुपलब्धि है।

- पहले चुनाव में 43 फीसदी वोट मिले थे लेकिन गोंगपा का बढ़ता वोट प्रतिशत और जनता की अस्वीकार्यता (नोटा वोट एक प्रतिशत से अधिक) परेशानियां खड़ी करेगा। गोंगपा के बागी कार्यवाहक अध्यक्ष सहित 7 निर्दलीय भी रोड़ा अटकाएंगे।

बरघाट : अर्जुन सिंह काकोडिय़ा (कांग्रेस)

- चार फीसदी वोट अंतर से सीट जीतने के बावजूद पिछले साल बरघाट में कांग्रेस की नगर सरकार नहीं बनवा सके। कांग्रेस पार्षदों के समर्थन से भाजपा की नगर सरकार बन जाने के बाद से भांग्रेस (भाजपा-कांग्रेस) का नारा बुलंद है।

- चक्काजाम विधायक की छवि भी बड़ा रोड़ा है। सिवनी-बालाघाट रोड स्थित सेलुआ टोल नाका वाले मामले में यह अब तक अनुत्तरित हैं।

- विवादित बयान व कभी इधर तो कभी उधर वाले रवैये के चलते अपनों से बनती दूरी ने भितरघात का खतरा बढ़ाया।

- लखनादौन और केवलारी की तरह यहां भी तीसरी ताकत जोर दिखाती रही है। यहां गोंगपा के साथ गठबंधन में बसपा ने अपना प्रत्याशी उतारा है, जो बड़ी चुनौती है।

प्रतिद्वंदी पर भी भारी दबाव

- सिवनी में आनंद पंजवानी कांग्रेस से नया चेहरा है, इसलिए भितरघात और कांग्रेस शासित नगर पालिका के फ्लॉप शो का भी इन पर असर पड़ेगा।

- केवलारी से 2018 का चुनाव हारे रजनीश सिंह को रिपीट किया है, जो न तो 2013 का चुनाव जीतने के बाद क्षेत्र में सक्रिय रहे और न ही पिछला चुनाव हारने के बाद।

- बरघाट में भाजपा ने 2013 में काकोडिय़ा को चुनाव हराने वाले कमल मर्सकोले पर दांव खेला है। पिछली बार इन्हें टिकट नहीं मिलने के बाद से पिक्चर से गायब रहे।

- लखनादौन में भाजपा ने 2018 हारे प्रत्याशी विजय उईके को इस उम्मीद में फिर अवसर दिया है कि वे ‘मुनमुन’ के सहयोग से सफल हो जाएंगे लेकिन मुनमुन कितना समय देते हैं और गोंगपा के तिलस्म को कैसे तोड़ते हैं, सब कुछ इस पर निर्भर करेगा।

Created On :   8 Nov 2023 10:52 AM GMT

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