सियासी मैदान में फिर दिखा लालू का पुराना अंदाज, विरोधियों की जमकर बखिया उधेड़ी

Lalu entered the fray in the Bihar by-election, returned to the old style in the election campaign
सियासी मैदान में फिर दिखा लालू का पुराना अंदाज, विरोधियों की जमकर बखिया उधेड़ी
बिहार सियासत सियासी मैदान में फिर दिखा लालू का पुराना अंदाज, विरोधियों की जमकर बखिया उधेड़ी

डिजिटल डेस्क, पटना। बिहार उपचुनाव को लेकर एक बार फिर लालू प्रसाद यादव की लंबे समय बाद चुनावी प्रचार में एंट्री हुई है। आपको बता दें कि तारापुर की चुनावी रैली में बड़े दिनों के बाद लालू अपने पुराने अंदाज में दिखे, जिसके लिए वह जाने जाते हैं। लालू अपने चिर परिचित अंदाज में भीड़ को डांटने साथ अपने पक्ष में नारा भी लगवाया। लालू अपने मजाकिया अंदाज में चुनाव प्रचार के लिए जानें जाते हैं। लालू यादव के चुनाव प्रचार में उतरने पर RJD की उम्मीदें काफी बढ़ गईं हैं। आइए जानते है कि लालू ने कब-कब बिहार के राजनीति में अपना लोहा मनवा के दम लिया।

जब जनता दल से नाता तोड़ा

आपको बता दें कि आर एस बोम्मई का नाम हवाला कांड में आया था और उन्होंने जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। लालू प्रसाद यादव साल 1977 में जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनें थे। उस समय लालू ने कहा था कि हवाला ने जनता दल को मेरे हवाले कर दिया। इसी बीच चारा घोटाले को लेकर तत्कालीन राज्यपाल ए आर किदवई ने जून 1997 में लालू के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने की इजाजत दे दी। इधर जनता दल के साथी भी लालू से दूरी बना लिए थे। खैर, लालू को मालूम हो गया था कि अब अपने पद पर ज्यादा दिन तक नहीं बनें रह सकते हैं। फिर उन्होंने नई चाल चल दी। और 5 जुलाई 1997 को जनता दल से अलग एक नई राष्ट्रीय पार्टी बनाने का एलान कर सियासत में हलचल मचा दिया था। लालू प्रसाद उसी समय एक साक्षात्कार में बोले कि जनता दल ही अब रियल जनता दल है। लालू यादव ने बड़ी चाल चली और जनता दल के 22 में से 16 सांसदों ने RJD का दामन थाम लिया। गौरतलब है कि 6 राज्यसभा सांसदों ने भी अपना पाला बदलकर लालू की लालटेन थाम ली थी। और इस तरह से लालू ने हारी हुई बाजी को अपने पक्ष में पलट डाला। लालू की ये सबसे बड़ी राजनीतिक जीत मानी जाती है। 


पत्नी को सीएम बना, लालू बने रहे सत्ता में

गौरतलब है कि जब लालू यादव को चारा घोटाला में जेल जानें की नौबत आई और 25 जुलाई 1997 को जेल जा रहे थे। तब लालू को लगा कि अब उनकी राजनीतिक बुनियाद कमजोर होने वाली है और सत्ता पर भारी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। फिर उन्होंने नया दांव चला और अपनी पत्नी राबड़ी देवी को पहली महिला सीएम बना दिया और जेल से ही सत्ता चलाते रहे और रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में रखा। लालू के इस सियासी चाल से विरोधियों के होश उड़ गए। लालू ने जेल को ही मिनी सीएम ऑफिस बना दिया था। लालू इसलिए सियासत के धुरंधर खिलाड़ी माने जाते हैं। 

नीतीश को गले लगाकर लालू ने चला था दांव

गौरतलब है कि NDA से नाता तोड़ नीतीश कुमार लालू के साथ हाथ मिला बैठे थे। फिलहाल नीतीश को माहौल देखकर ये अंदाजा हो गया था कि सत्ता की राह आसान नहीं दिख रही है। लालू की पार्टी के ऊपर पहले से ही जंगलराज की मोहर लगी थी। लालू की पार्टी भी 10 साल से सत्ता से बाहर थी। फिर लग यही रहा थी कि जोड़ी तो बन गई लेकिन जीत नामुमकिन सी दिखने लगी थी। उधर बीजेपी पीएम मोदी के सहारे सत्ता में वापसी का ख्वाब देख रही थी। उसी बीच मोहन भागवत ने एक बयान दे दिया, भागवत ने अपने इंटरव्यू में कहा कि देश हित में एक कमेटी बनाई जानी चाहिए जो आरक्षण पर समीक्षा कर ये बताए कि कौन से कौन से क्षेत्र में और कितने समय के लिए आरक्षण दिए जाने की जरूरत है। उस समय बीजेपी को ये पता नहीं था कि इस बयान के बाद चुनावों पर कितना भारी असर पड़ेगा।  

भागवत के बयान पर लालू बनें किंग मेकर 

आपको बता दें कि मोहन भागवत के आरक्षण वाले बयान पर लालू ने चुनावी मुद्दा बनाकर सियासत में नई चाल चली। उन्होंने भागवत के बयान पर कहा कि अबकी बार अगड़ा बनाम पिछड़ा की लड़ाई है। सियासत में माहिर खिलाड़ी लालू ने इस मौके के हाथों-हाथ ले लिया। इसके बाद गठबंधन में इस मुद्दे को सबसे आगे रखा। नतीजा क्या आया, इसे बताने के लिए 2015 के विधानसभा चुनाव के परिणाम ही अपने में काफी हैं। लालू यादव राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी हैं और ऐसे ही बाजी पलटने के लिए माहिर भी है।

Created On :   27 Oct 2021 6:02 PM IST

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