बजट के बाद सत्ताधारी पार्टियों को फायदा पहुंचता है या नुकसान, क्या कहता है चुनावी गणित?

After the budget, ruling parties gain or lose, what does electoral mathematics say?
बजट के बाद सत्ताधारी पार्टियों को फायदा पहुंचता है या नुकसान, क्या कहता है चुनावी गणित?
बजट का चुनावी असर बजट के बाद सत्ताधारी पार्टियों को फायदा पहुंचता है या नुकसान, क्या कहता है चुनावी गणित?

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आज सदन में दिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण के बाद  से बजट सत्र का आगाज हो गया है। सदन में आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट पेश होने के बाद कल मंगलवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण देश का 2022-23 का आम बजट सदन में पेश करेंगी।  बजट के बाद या पहले चुनाव के नतीजे सत्ता पार्टी को नुकसान पहुंचाते या फायदे इसे लेकर एबीपी ने खबर प्रकाशित की है। एबीपी में छपी खबर के मुताबिक ज्यादातर बजट के बाद चुनावों में सत्ताधारी पार्टी को नुकसान होना बताया गया है। 

फायदा पहुंचा या नुकसान, क्या कहता है चुनावी गणित

आम बजट के बाद जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए, वहां सत्ताधारी पार्टी को पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में कितनी कम या  ज्यादा सीटें मिलीं, यही फायदे और नुकसान का आधार था।

आपको बता दें बजट के बाद साल 2006 में तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव हुए केंद्र में मनमोहन सरकार थी।  कांग्रेस ने 34 सीटों पर जीत हासिल की जबकि साल 2001 में उसे सिर्फ 7 सीटें ही नसीब हुई थीं।  यानी बजट के बाद कांग्रेस को फायदा मिला।

1 फरवरी को हर साल बजट पेश किया जाता है। साल 2017 में पंजाब में 11 फरवरी को चुनाव हुए। केंद्र में बीजेपी की सरकार थी, चुनाव में बीजेपी को पंजाब में  महज 3 सीटें मिलीं, जबकि 2012 में उसने 12 सीट जीती थीं, यानी बीजेपी को नुकसान झेलना पड़ा। 
साल 2021 के अप्रैल में असम में चुनाव थे, फरवरी में बजट पेश किया गया, बीजेपी की एनडीए सरकार ने 60 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि 2017 में भी बीजेपी को इतनी ही सीट मिली थीं, बजट का कोई असर चुनाव परिणामों पर नहीं पड़ा।

पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के चलते केंद्र सरकार इन चुनावी राज्यों को कोई स्पेशल तोहफा दे सकती है। केंद्र की मोदी सरकार से चुनावी राज्यों की जनता भी यही उम्मीद लगाकर बैठी है। आस लगाए बैठी जनता को देखते हुए ये कयास लगाए जा रहे है कि इस आम  बजट में उनके लिए कुछ न कुछ स्पेशल जरूर होगा। दूसरी तरफ सत्ताधारी पार्टियों के लिए भी बजट के जरिए एक मौका होता है ताकि वह चुनावी राज्यों में पार्टी और नेताओं की छवि को लुभावनी योजनाओं से बेहतर कर सकें। और चुनावों में जनता को रिझा सकें। 

लेकिन सवाल ये है कि चुनावी राज्यों के लिए लोकलुभावन घोषणाओं से सत्ताधारी पार्टी को आखिरकार फायदा मिलता भी है या नहीं और अगर मिलता है तो कितना, इसे लेकर एबीपी ने आकलन किया है। एबीपी में छपी इस रिपोर्ट में 14 राज्यों के 42 विधानसभा चुनाव का आकलन किया गया है, जो पिछले डेढ़ दशक में हुए हैं। ये राज्य हैं- अरुणाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, प.बंगाल, उत्तराखंड, पुडुचेरी, असम, केरल, तमिलनाडु, मणिपुर, ओडिशा, गोवा, आंध्र प्रदेश, सिक्किम और पंजाब।

इन राज्यों में चुनाव अकसर बजट से कुछ दिन  पहले या बाद में ही होते हैं। अगर इतिहास के आंकड़ों पर नजर डालें तो बजट से सत्ताधारी पार्टी को अधिक नुकसान  नजर आता है। बजट के बाद 42 चुनाव हुए, जिसमें से 18 में उस पार्टी की सरकार नहीं बनी जो पहले से सत्ता में थी। 13 चुनावों में सत्तासीन पार्टी सत्ता पर बनी रही और 11 चुनाव ऐसे रहे, जहां बजट का चुनाव के परिणामों पर कोई असर दिखाई नहीं दिया। जिन 18 चुनावों में सत्ताधारी पार्टी को नुकसान हुआ, उसमें 15 बार कांग्रेस और तीन बार बीजेपी को जनता का गुस्सा सहना पड़ा।

जबकि13 चुनावों में  9 बार बीजेपी और 4 बार कांग्रेस को फायदा मिला है। वहीं 11 चुनावी मौके ऐसे रहे, जब बजट का चुनाव पर कोई असर नहीं दिखा। इसमें 4 बार कांग्रेस और 7 बार बीजेपी सत्ता में थी।

Created On :   31 Jan 2022 10:15 AM GMT

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story