इंदिरा-राजीव को हराने की रणनीति जिस प्रदेश में तैयार हुई, अब वहीं से शुरू होगी राहुल गांधी को पीएम बनाने की मुहिम, समझिए बिहार का ये सियासी गणित

इंदिरा-राजीव को हराने की रणनीति जिस प्रदेश में तैयार हुई, अब वहीं से शुरू होगी राहुल गांधी को पीएम बनाने की मुहिम, समझिए बिहार का ये सियासी गणित
  • पटना में विपक्षी एकता का महाजुटान
  • बिहार से होगी बीजेपी की हार की शुरूआत?

डिजिटल डेस्क, पटना। 'आगाज हुआ बदलाव होगा', पटना में विपक्ष का यह बैनर काफी चर्चा का विषय बना हुआ है। 23 जून को पटना में सीएम नीतीश कुमार के सरकारी आवास पर विपक्षी दलों की बैठक होने जा रही है। जिसमें करीब दो दर्जन गैर एनडीए नेता हिस्सा लेने जा रहे हैं। बिहार में हो रही इस बैठक को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं कि आखिर विपक्षी दलों की बैठक पटना में ही क्यों हो रही है।

बता दें कि, इस बैठक की अगुवाई बिहार के सीएम नीतीश कुमार कर रहे हैं। कुमार कई बार कह चुके हैं कि, उनका लक्ष्य केवल बीजेपी को केंद्र की सत्ता से उखाड़ फेंकना है। बीते कुछ महिनों से नीतीश कुमार देश की सभी प्रमुख पार्टियों के अध्यक्षों के साथ मुलाकात कर उन्हें एक मंच पर लाने की कवायद कर रहे हैं। इस बैठक में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन समेत कई दिग्गज नेता मौजूद रहने वाले हैं।

विपक्षी एकता के लिए बिहार ही क्यों?

नीतीश के नेतृत्व में हो रही विपक्षी दल की बैठक को लेकर चर्चाएं तो चल ही रही हैं। साथ ही सियासी गलियारों में यह भी चर्चा हो रही है कि इस बैठक के लिए बिहार ही क्यों चुना गया। दरअसल, बिहार को लोकतंत्र के प्रयोग की जननी कहा जाता है। बिहार की धरती से ही गैर कांग्रेस की सरकार बनाने की नींव रखी गई थी, जो सफल भी हुई थी। साल 1974-75 में केंद्र से कांग्रेस को उखाड़ फेंकने की शुरूआत बिहार की धरती से ही की गई थी। जयप्रकाश नारायण ने केंद्र की इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ इसी धरती से चुनावी बिगुल फूंका था। जिसका नतीजा साल 1977 के आम चुनाव में देखने को मिला और केंद्र में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनने में कामयाब रही थी।

तब संयुक्त बिहार की 54 लोकसभा सीट में से 52 सीट पर भारतीय लोक दल ने जीत हासिल की थी। जबकि एक पर जनता कांग्रेस और एक निर्दलीय प्रत्याशी को जीत मिली थी। उस समय इंदिरा गांधी को घेरने के लिए भारतीय लोक दल, जनसंघ और कांग्रेस (ओ) ने गठबंधन किया था। जिसका 'रंग' चुनाव में देखने को मिला भी। इस चुनाव में गठबंधन की पार्टियां भारतीय लोक दल के चुनाव चिन्ह पर ही मैदान में उतरे थे।

1989 में भी बिहार की भूमिका रही है खास

साल 1989 के लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी को हराने में बिहार की भूमिका बेहद ही खास रही है। इस आम चुनाव में जनता दल ने बिहार की कुल 54 लोकसभा सीट में से 32 सीटों पर जीत हासिल की थी। जिसमें बीजेपी ने अपने दम पर 8 सीटें जीती थी। जबकि कांग्रेस को 4 सीटों पर ही जीत मिली थी। इस चुनाव में वाम दल ने भी शानदार प्रदर्शन किया था और कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन कर पांच सीटों पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी। जिसने बीपी सिंह सरकार को अपना समर्थन दिया था। 77 और 89 की तरह ही इस बार भी केंद्र की सत्ताधारी पार्टी को घेरने के लिए बिहार की जमीन पर सभी दल एकजुट होते हुए दिखाई दे रहे हैं।

Created On :   22 Jun 2023 3:57 PM IST

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