सिलक्यारा टनल हादसा: 'बचने की उम्मीदें छोड़ दी थी हम सभी ने..' मजदूरों ने सुनाई अपनी आपबीती, जानें कैसे रहे टनल के अंदर शुरुआती दस दिन
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। उत्तराखंड के उत्तरकाशी में मौजूद सिलक्यारा टनल में फंसे सभी 41 मजदूरों को मंगलवार रात को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। ये सभी मजदूर बीते 17 दिनों से टनल के अंदर फंसे हुए थे। 399 घंटे से अधिक समय तक ये लोग मौत से जिंदगी के बीच जंग से लड़ते रहे। इनके हौसले ने हर किसी का दिल जीत लिया। इन्हीं श्रमिकों में से एक झारखंड के अनिल बेदिया ने बताया कि कैसे 10 दिनों तक टनल के अंदर फंसे श्रमिकों ने भूख और प्यास से जंग लड़ी। अनिल ने बताया कि 6 इंज की पाइप लगने तक हम सभी ने अपने साथ काम के दौरान टनल के अंदर ले गए मूरी(भुने हुए चावल, मुरमुरे) खाए और जब हमे प्यास लगी तो पत्थरों से रिसते पानी को चाटकर प्यास शांत किया।
'अब हम नहीं बचेंगे'- मजदूर
22 साल के अनिल बेदिया झारखंड से उत्तराखंड में काम की तलाश में आए थे। दिवाली के दिन वे भी उन 41 मजदूरों के साथ टनल के अंदर काम कर रहे थे। इसी दिन सिलक्यारा गांव के पास बने इस टनल में शाम 5.30 बजे अचानक हजारों टन का मलबा गिर गया। अनिल बताते हैं कि जब वे टनल के अंदर काम कर रहे थे, तभी अचानक जोरदार आवाज के साथ मलबा टनल के अंदर गिरा और जिसके चलते बाहर निकालने का रास्ता बंद हो गया। उस वक्त हम सभी मजदूर बेहद डर गए थे। उन्हें लगा कि अब हम सभी लोग अंदर ही दफन हो जाएंगे। बुधवार को जब अनिल अपने परिजन से बात कर रहे थे, तब उन्होंने अपनी आपबीती परिवार के सदस्यों को सुनाया। उन्होंने कहा, 'टनल में मलबा गिरने के दौरान तेज आवाज आ रही थी। उस वक्त हम सभी को लगा कि अब वे मलबे में दब जाएंगे। शुरुआत के कुछ दिनों तक हम सभी ने उम्मीद छोड़ दी थीं।'
उत्तरकाशी में फंसे मजदूर की आपबीती
उत्तरकाशी सुरंग से सफलतापूर्वक बचाए गए 41 श्रमिकों में से एक श्रमिक सुबोध कुमार वर्मा ने बताया, "हमें वहां(सुरंग) पर 24 घंटों तक खान-पान और हवा से संबंधित परेशानी हुई। इसके बाद पाइप के द्वारा खाने-पीने की चीज़ें भेजी गईं। मैं स्वस्थ हूं, कोई परेशानी नहीं है। केंद्र और राज्य सरकार की मेहनत थी जिस वजह से मैं निकल पाया।"
एक अन्य श्रमिक विश्वजीत कुमार वर्मा ने कहा, "जब मलबा गिरा तो हमें पता चल गया कि हम फंस गए हैं। सभी हमें निकालने के प्रयास में लगे रहे। हर तरह की व्यवस्था की गई। ऑक्सीजन की, खाने-पीने की व्यवस्था की गई। पहले 10-15 घंटे हमें दिक्कत का सामना करना पड़ा, बाद में पाइप के द्वारा खाना उपलब्ध कराया गया। बाद में माइक लगाया गया था और परिवार से बात हो रही थी। अब मैं खुश हूं।"
Created On :   29 Nov 2023 4:58 PM IST