विश्व आदिवासी दिवस: सीएम कमलनाथ बोले- आदिजन प्रकृति के सेवक

Tribal servant of nature: Kamal Nath (from Chief Ministers blog)
विश्व आदिवासी दिवस: सीएम कमलनाथ बोले- आदिजन प्रकृति के सेवक
विश्व आदिवासी दिवस: सीएम कमलनाथ बोले- आदिजन प्रकृति के सेवक
हाईलाइट
  • मुख्यमंत्री कमलनाथ ने विश्व आदिवासी दिवस की पूर्व संध्या पर जनजाति वर्ग के लोगों को प्रकृति का सेवक बताया

डिजिटल डेस्क, भोपाल। (आईएएनएस)। आज (9 अगस्त) विश्व आदिवासी दिवस मनाया जा रहा है। इस साल संयुक्त राष्ट्र ने "भाषा" को आदिवासी दिवस का थीम बनाया है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने विश्व आदिवासी दिवस की पूर्व संध्या पर जनजाति वर्ग के लोगों को प्रकृति का सेवक बताया है। राज्य सरकार ने आदिजन दिवस पर अवकाश भी घोषित किया है।  विश्व आदिवासी दिवस पर मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने आदिवासियों के हित में कई बड़े फैसले भी लिये हैं।



सरकार के फैसले...

  • सभी आदिवासी विकासखंडो में आदिवासियों ने जो साहूकारों से कर्ज़ लिया है, वह सभी कर्ज माफ होंगे।
  • आदिवासियों को कार्ड दिए जाएंगे, जिससे वो 10 हजार तक जरूरत पढ़ने पर निकाल सकेंगे।
  • साहूकारों के पास आदिवासियों के गिरवी जमीन, ज़ेवर व समान लौटाना होंगे।
  • जनजातीय कार्य विभाग अब आदिवासी विकास विभाग होगा।
  • आदिवासी क्षेत्रों में 7 नये खेल परिसर खोले जायेंगे।
  • आदिवासी परिवार में जन्म लेने पर 50 क्विंटल अनाज मिलेगा।
  • 40 नये एकलव्य स्कूल खोले जायेंगे।
  • आदिवासी महापुरुषों की याद में जबलपुर में संग्रहालय व स्मारक बनाए जाएंगे।
  • वनग्राम की परंपरा ख़त्म कर राजस्व ग्राम कहलाएगी।
  • भोजन के लिये बर्तन भी उपलब्ध कराए जाएंगे।
  • हर हाट बाज़ार में ATM की सुविधा होगी।

सीएम कमलनाथ ने विश्व आदिवासी दिवस पर एक ब्लॉग लिखा है। इस ब्लॉग में उन्होंने कहा, विश्व आदिवासी दिवस पर उन सभी जनजातीय बंधुओं को बधाई, जो प्रकृति के करीब रहते हुए प्रकृति की सेवा कर रहे हैं। हम सब उनका सम्मान करें, जो प्रकृति को हमसे ज्यादा समझते हैं। आदिवासी समाज जंगलों की पूजा करता हैं। उनकी रक्षा करता है। इसी सांस्कृतिक पहचान के साथ समाज में रहते हैं।

उन्होंने लिखा, वह दिन अब दूर नहीं जब हरियाली और वन संपदा अर्थ-व्यवस्थाओं और देशों की पहचान के सबसे प्रमुख मापदंड होंगे। जिसके पास जितनी ज्यादा हरियाली होगी वह उतना ही अमीर कहलाएगा। उस दिन हम आदिजन के योगदान की कीमत समझ पाएंगे।

 

 

आदिवासियों की प्रकृति के प्रेम से जुड़ी परंपराओं का जिक्र करते हुए कमलनाथ ने लिखा, हम जानते हैं कि बैगा लोग स्वयं को धरतीपुत्र मानते हैं। इसलिए कई वर्षों से वे हल चलाकर खेती नहीं करते थे। उनकी मान्यता थी कि धरती माता को इससे दुख होगा। आधुनिक सुख-सुविाधाओं से दूर बिश्नोई समुदाय का वन्य-जीव प्रेम हो या पेड़ों से लिपट कर उन्हें बचाने का उदाहरण हो। जाहिर है कि आदिजन प्रकृति की रक्षक के साथ पृथ्वी पर सबसे पहले बसने वाले लोग हैं। आज हम टंट्या भील, बिरसा मुंडा जैसे उन सभी आदिजन को भी याद करते हैं जिन्होंने विद्रोह करके आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे।

उन्होंने लिखा है, हमारी सांस्कृतिक विविधता में अपनी आदिजन की संस्कृति की भी भागीदारी है। आदि संस्कृति प्रकृति पूजा की संस्कृति है। यह खुशी की बात है कि इस साल अंतर्राष्ट्रीय विश्व आदिजन दिवस को आदिजन की भाषा पर केंद्रित किया गया है।

आदिवासियों के उत्थान और संस्कृति के संदर्भ में लिए गए फैसलों का जिक्र करते हुए कमलनाथ ने लिखा, मध्यप्रदेश में हमने निर्णय लिया कि गोंडी बोली में गोंड समाज के बच्चों के लिए प्राथमिक कक्षाओं का पाठ्यक्रम तैयार करेंगे। संस्कृति बचाने के लिए बोलियों और भाषाओं को बचाना जरूरी है। इसका अर्थ यह नहीं है कि वे आधुनिक ज्ञान और भाषा से दूर रहें। वे अंग्रेजी, हिदी, संस्कृत भी पढ़ें और अपनी बोली को भी बचा कर रखें। अपनी बोली बोलना पिछड़ेपन की निशानी नहीं बल्कि गर्व की बात है।

उन्होंने लिखा है, हमारे प्रदेश में कोल, भील, गोंड, बैगा, भारिया और सहरिया जैसी आदिम जातियां रहती हैं। ये पशु पक्षियों, पेड़-पौधों की रक्षा करते हैं। इन्हीं के चित्रों का गोदना बनवाते हैं। गोदना उनकी उप-जातियों, गोत्र की पहचान होती है जिसके कारण वे अपने समाज में जाने जाते हैं। यह चित्र मोर, मछली, जामुन का पेड़ आदि के होते हैं। जनजातियों के जन्म गीत, शोक गीत, विवाह गीत, नृत्य, संगीत, तीज-त्यौहार, देवी-देवता, पहेलियां, कहावतें, कहानियां, कला-संस्कृति सब विशेष होते हैं। वे विवेक से भरे पूरे लोग है। आधुनिक शिक्षा से थोड़ा दूर रहने के बावजूद उनके पास प्रकृति का दिया ज्ञान भरपूर है।

गोंडी चित्रकला को बचाने के लिए सरकार की ओर से किए जाने वाले प्रयासों का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री ने लिखा है, गोंडी चित्रकला की न सिर्फ मध्यप्रदेश बल्कि पूरे विश्व में पहचान है। गोंड चित्रकला को जीवित रखने वालों को सरकार पूरी मदद करेगी। यह हमारा कर्तव्य है। गोंड और परधान लोग गुदुम बाजा बजाते हैं। हम चाहते हैं कि आदिवासी समुदाय की कला प्रतिभा दुनिया के सामने आए।

कांग्रेस नीति की केंद्र सरकार के वनवासी अधिकार अधिनियम की पहल का जिक्र करते हुए कहा, जब कांग्रेस सरकार ने वनवासी अधिकार अधिनियम बनाया था तो कई संदेह पैदा किए गए थे। आज इसी कानून के कारण वनवासियों को पहचान मिली है। जिन जंगलों में उनके पुरखे रहते थे वहां उनका अधिकार है। उन्हें कोई नहीं हटा सकता। हमने उनके अधिकार को कानूनी मान्यता दी है।

कमलनाथ ने लिखा है, आदिवासी संस्कृति में देव स्थानों के महत्व को देखते हुए हमने देव स्थानों के रखरखाव के लिए सहायता देने का निर्णय लिया है। यह संस्कृति को पहचानने की एक छोटी सी पहल है। हमारी सरकार आदिजन की नई पीढ़ी के विकास और उनकी संस्कृति बचाने में मदद देने के लिए वचनबद्ध है।

 

Created On :   8 Aug 2019 11:30 PM IST

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