नागा छात्र संगठन ने नागालैंड में अफस्पा के विस्तार की निंदा की
- ज्यादतियों की निंदा
डिजिटल डेस्क, कोहिमा। नागा स्टूडेंट्स फेडरेशन (एनएसएफ) ने रविवार को सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम, 1958 को और 6 महीने के लिए बढ़ाए जाने की कड़ी निंदा की और लोगों से जब तक कानून लागू है तब तक सशस्त्र बलों का सहयोग न करने का आग्रह किया।
केंद्र सरकार ने शुक्रवार को नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश के 12 जिलों और दो पूर्वोत्तर राज्यों के पांच अन्य जिलों के कुछ हिस्सों में इस विशेषाधिकार कानून की मियाद छह माह के लिए बढ़ा दी थी। उग्रवाद और आतंकवाद पर काबू पाने के लिए सुरक्षा बलों को इस कानून के तहत तमाम तरह के खास अधिकार दिए गए हैं।
नागा छात्र संगठन ने कहा कि, नगालैंड को अराजकता की भूमि के रूप में चित्रित करने के केंद्र सरकार के इस निरंतर प्रयास की निंदा करते हैं। एनएसएफ ने एक बयान में कहा, दुनिया इस बात की गवाह है कि नागालैंड एक खूबसूरत राज्य है जहां शांतिप्रिय नागरिक रहते हैं, जो कि आदेश के विपरीत है। उन्होंने, अफस्पा की आड़ में भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा नागा लोगों पर की गई ज्यादतियों की निंदा की मांग की।
छात्र संगठन ने आरोप लगाया, अफस्पा असंवैधानिक है क्योंकि यह केवल सशस्त्र बलों द्वारा दुर्व्यवहार और गंभीर मानवाधिकारों के उल्लंघन को प्रोत्साहित करता है। एनएसएफ ने केंद्र सरकार से स्थिति का निष्पक्ष रूप से आकलन करने और अपनी विभिन्न एजेंसियों और केंद्रीय गृह मंत्रालय से पक्षपाती रिपोटरें पर कार्रवाई नहीं करने की अपील की ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विवादास्पद कानून पूरे नागा मातृभूमि से निरस्त कर दिया जाए।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 31 मार्च को असम, नागालैंड और मणिपुर में 1 अप्रैल से अफस्पा के संचालन को कम करने की घोषणा की, जबकि इस क्षेत्र के अधिकांश राजनीतिक दल और गैर सरकारी संगठन इसे निरस्त करने की मांग कर रहे हैं। पिछले साल दिसंबर में नागालैंड के मोन जिले में एक मामले में सुरक्षा बलों द्वारा 14 लोगों की मौत और 30 अन्य को घायल करने के बाद मांग तेज हो गई थी।
अफस्पा , जो सेना और अन्य केंद्रीय अर्ध-सैन्य बलों को बिना किसी पूर्व सूचना या गिरफ्तारी वारंट के कहीं भी छापेमारी, अभियान चलाने, किसी को भी गिरफ्तार करने की अनुमति देता है। इम्फाल नगर परिषद क्षेत्र और अरुणाचल के कुछ जिलों को छोड़कर नागालैंड, असम, मणिपुर में लागू है। इसे 2015 में त्रिपुरा से, 2018 में मेघालय में और 1980 के दशक में मिजोरम में हटाया गया था।
आईएएनएस
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Created On :   2 Oct 2022 9:00 PM IST