निर्भया गैंगरेप केस: दोषी अक्षय कुमार सिंह की दया याचिका राष्ट्रपति ने की खारिज
- अक्षय ने कुछ दिन पहले राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर की थी
- दोषी अक्षय सिंह की दया याचिका को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने किया खारिज
- ह मंत्रालय के अधिकारियों ने बुधवार को इसकी जानकारी दी
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। निर्भया गैंगरेप मामले के एक दोषी अक्षय कुमार सिंह की दया याचिका को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने खारिज कर दिया है। गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने बुधवार को इसकी जानकारी दी। अक्षय ने कुछ दिन पहले राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर की थी। इससे पहले राष्ट्रपति मुकेश सिंह और विनय कुमार शर्मा की क्षमादान याचिका को खारिज कर चुके हैं।
एक फरवरी को दी जानी थी फांसी
दोषियों को एक फरवरी को सुबह छह बजे फांसी दी जाने वाली थी, लेकिन दोषी मुकेश ने दिल्ली हाईकोर्ट में यह तर्क देते हुए एक आवेदन किया कि अन्य दोषियों ने अभी कानूनी उपाय नहीं अपनाए हैं और उन्हें अलग-अलग फांसी नहीं दी जा सकती। जिसके बाद फांसी को दूसरी बार टाल दिया गया। मुकेश और विनय के सभी कानूनी हथकंडे समाप्त हो चुके हैं। अक्षय की दया याचिका भी अब राष्ट्रपति ने खारिज कर दी है। पवन ने अभी तक दया याचिका दायर नहीं की है, जो उसका अंतिम संवैधानिक उपाय है।
16 दिसंबर 2012 की घटना
बता दें कि दिल्ली की छात्रा निर्भया के साथ चलती बस के अंदर बर्बर तरीके से 16 दिसंबर 2012 को रेप किया गया था। इसके बाद वह उसे सड़क पर छोड़कर चले गए थे। गंभीर हालत में निर्भया को दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बाद में उसे सिंगापुर इलाज के लिए भेजा गया था लेकिन उसने दम तोड़ दिया। इस मामले ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक जन आक्रोश उत्पन्न किया था।
केंद्र ने किया सुप्रीम कोर्ट का रुख
बार-बार फांसी टलने की वजह से केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट का रुख किया था। हालांकि बुधवार को हाई कोर्ट ने केंद्र की याचिका को खारिज कर दिया । याचिका खारिज होने के बाद केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। बुधवार को दिन में दिल्ली हाई कोर्ट ने जेल प्रशासन और केंद्रीय गृह मंत्रालय की याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि दोषियों को अलग-अलग फांसी नहीं दी जा सकती है। ऐसा करना असंवैधानिक होगा। याचिका पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस सुरेश कुमार कैत ने दोषियों को अपने सभी कानूनी विकल्प 7 दिन के भीतर उपयोग करने का समय दिया।
दिल्ली हाई कोर्ट ने रविवार को जस्टिस सुरेश कैत ने इस मामले की सुनवाई की थी। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हाई कोर्ट में पक्ष रखा था। मेहता ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि मृत्युदंड के दोषी कानून के तहत मिली सजा के अमल पर विलंब करने की सुनियोजित चाल चल रहे हैं। दोषी न्यायिक मशीनरी से खेल रहे हैं और देश के धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं।
Created On :   5 Feb 2020 3:29 PM GMT