उत्तराखंड में लंपी स्किन डिजीज रोग ने पसारे पैर, सरकार ने पशुओं के परिवहन पर रोक लगाई
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- उत्तराखंड में लंपी स्किन डिजीज रोग ने पसारे पैर
- सरकार ने पशुओं के परिवहन पर रोक लगाई
डिजिटल डेस्क, देहरादून। देश के कई राज्यों के बाद अब उत्तराखंड में भी लंपी स्किन डिजीज तेजी से पैर पसार रहा है। तेजी से फैल रहे इस डिजीज ने पशुपालन विभाग की चिंताओं को और अधिक बढ़ा दिया है। उत्तराखंड में गाय एवं भैंसों में लंपी त्वचा रोग के लगातार पैर पसारने से चिंता भी बढ़ने लगी है। इसे देखते हुए शासन ने राज्य में पशुओं के परिवहन पर रोक लगा दी है। इसके साथ ही इस रोग की रोकथाम के लिए रोग प्रभावित क्षेत्र के 1 किमी परिधि के क्षेत्र को इंफेक्टेड जोन और 1 किमी से 10 किमी परिधि वाले क्षेत्र को सर्विलांस जोन घोषित किया गया है। इसी क्रम में 10 किमी परिधि से दूर के क्षेत्र को डिसीज फ्री जोन घोषित किया गया है।
पशुओं में लंपी त्वचा रोग के मामले अभी तक चार जिलों में सामने आए हैं। इनमें हरिद्वार जिले में सर्वाधिक 3354 पशु इस रोग की चपेट में आए हैं। जिनमें से 67 की मृत्यु हो चुकी है। इसके अलावा देहरादून जिले में 370, पौड़ी में 26 और टिहरी में 4 पशु लंपी की गिरफ्त में आए हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए टीकाकरण शुरू कर दिया है। हरिद्वार में 8428 और देहरादून में 1047 पशुओं का टीकाकरण अब तक किया जा चुका है। वहीं, पशुपालन मंत्री सौरभ बहुगुणा ने कहा कि 70 हजार वैक्सीन डोज को मंगाकर वैक्सीनेशन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसके साथ ही केंद्र सरकार से डेढ़ करोड़ वैक्सीन की मांग की है। ताकि, वैक्सीनेशन ड्राइव तेजी से शुरू की जा सके।
डोईवाला चिकित्सालय में बढ़ी दवाईयों की डिमांड :
भारत के कई राज्यों में लंपी स्किन डिजीज बीमारी फैली हुई है। उत्तराखंड में भी बीमारी से पशुओं की मौत के मामले सामने आए हैं। अब यह बीमारी देहरादून के डोईवाला तक पहुंच गई है। जहां सैकड़ों पशु इस बीमारी की चपेट में आ गए हैं। रानीपोखरी के पशु चिकित्साधिकारी राजेश कुमार दुबे के मुताबिक लंपी स्किन डिजीज बीमारी से दो दर्जन से अधिक पशु बीमार हैं। डोईवाला में रोजाना आधा दर्जन पशुपालक इस बीमारी की दवाई लेने पहुंच रहे हैं।
पशु चिकित्सा अधिकारी राजेश कुमार ने बताया कि यह वायरस से होने वाली बीमारी है। यह बीमारी मच्छर, मख्खी से एक पशु से दूसरे पशु में फैल रही है। बीमारी से पशुओं में तेज बुखार, शरीर में दाने और शरीर पर गांठ पड़ जाती है। पशु खाना पीना छोड़ देते हैं। इसके बाद शरीर पर पड़े दाने घाव का रूप ले लेते हैं।
पशु चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि जिस क्षेत्र में बीमारी नहीं फैली है, वहां वैक्सीनेशन किया जा रहा है। पशु चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि अभी इसका कोई विशेष उपचार नहीं है। बचाव ही इसका उपचार है और जिन पशुओं में बीमारी लगी है, उन पशुओं को अलग रखे जाने की सलाह दी जा रही है।
पशुपालक उम्मेद बोरा ने बीमारी को लेकर चिंता जाहिर करते हुए बताया कि बीमारी को लेकर पशुपालक चिंता में है। पशुपालन विभाग बीमारी को लेकर गंभीर नहीं है। उनका कहना है कि ना तो पशुओं का वैक्सीनेशन किया जा रहा है और ना किसानों को जागरूक करने के लिए जागरूकता शिविर लगाया जा रहा है। पशु पालकों ने एसडीएम को ज्ञापन भी सौंपा है।
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Created On :   25 Aug 2022 11:30 PM IST