Remembering: बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी थी इंदिरा गांधी, पिता और पति की वजह से संघर्षमय रहा जीवन
डिजिटल डेस्क, मुम्बई। भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने बहुरंगी और बहुआयामी व्यक्तित्व के लिए जानी जाती है। उनका जन्म 19 नवम्बर 1917 को इलाहाबाद (प्रयागराज) में हुआ था। उनका नाम "इंदिरा" उनके दादा मोतीलाल नेहरु ने रखा था। लेकिन जब उनके पिता ने उनका चेहरा देखा तो उनका नाम प्रियदर्शिनी रखा। देशसेवा उनके खून में थी। इसलिए उन्होंने राजनीति का रास्ता चुना। वे 16 साल देश की प्रधानमंत्री रही। उस दौरान उनके लिए गए फैसलों को काफी सराहा गया। देश की अर्थव्यवस्था हो या फिर राष्ट्रपति शासन ! उन्होंने हर जगह अपनी सूझ-बूझ से काम किया। आज उनके जन्मदिन पर जानते हैं उनके बारे में कुछ खास बातें।
अगले दिन 31 अक्टूबर को वह सुबह करीब 9 बजे इंदिरा गांधी तेजी में 1 अकबर रोड की ओर बढ़ीं। कुछ दूर चलने पर इंदिरा गेट के पास पहुंची और गेट के पास ही सब इंस्पेक्टर बेअंत सिंह ड्यूटी में तैनात थे, उसने गोली चला दी और इंदिरा गांधी ने अंतिम सांस ली। इस तरह हमने देश की आयरल लेडी को खो दिया। आज भी उनकी खूबसूरत तस्वीरें इंटरनेट पर आसानी से देखने मिल जाती है, जिसे काफी पसंद किया जाता है।
31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी ने ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में हुई एक चुनावी जनसभा में अलग अंदाज में भाषण दिया था। इस भाषण को लिखा था उनके सूचना सलाहकार एचवाई शारदा ने। उस दिन कुछ अलग हुआ था अचानक से इंदिरा गांधी अपना लिखा भाषण बीच में ही छोड़कर खुद से ही बोलने लगीं थी। उस दिन उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि 'मैं आज यहां हूं। कल शायद यहां न रहूं। मुझे चिंता नहीं मैं रहूं या न रहूं। मेरा लंबा जीवन रहा है और मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने अपना पूरा जीवन अपने लोगों की सेवा में बिताया है। मैं अपनी आखिरी सांस तक ऐसा करती रहूंगी और जब मैं मरूंगी तो मेरे ख़ून का एक-एक क़तरा भारत को मजबूत करने में लगेगा।'
इंदिरा गांधी 18 मार्च, 1971 को देश की पहली प्रधानमंत्री बनीं। तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरी ने उनको प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई। इंदिरा को आयरन लेडी भी बोला गया। वो मजबूत इरादों की महिला थी, मगर भीतर से बहुत संवेदनशील भी, अपने परिवार को अपने राजनैतिक जीवन के साथ एक सूत्र में बांधकर रखती थी। वे पूरा प्रयास करती थी कि अपना वक्त परिवार के साथ गुजार सकें।
इंदिरा गांधी का जीवन काफी संघर्षमय रहा। फिरोज खान से शादी के बाद परिवार में झगड़ों की स्थिति बनी रही। क्योंकि पिता और पति की बिल्कुल नहीं बनती थी। इसके बावजूद इंदिरा ने हर पल अपने पिता का साथ दिया। वे अपने बच्चों को लेकर पिता के साथ ही रहा करती थीं।
प्रेम विवाह होने के बाद भी इंदिरा और फिरोज के रिश्ते कभी सहज नहीं रहे। पिता और पति के बीच अक्सर कश्मकश चलती रहती, जिससे घर में झगड़ों का माहौल बना रहता। फिरोज जवाहर लाल के साथ उनके घर रहना नहीं चाहते थे और इंदिरा को राजनीति के लिए जवाहर के साथ रहना पड़ता था। ऐसे में इंदिरा के बच्चों संजय और राजीव का समय ज्यादातर नाना के घर में ही गुजरा।
इस शादी को सफल बनाने में गांधी ने उनका साथ दिया। उन्होंने फिरोज को गोद लिया और तब कही जाकर लम्बें संघर्ष के बाद 26 मार्च 1942 को इंदिरा ने अपनी पसंद से फिरोज गांधी से इलाहाबाद में शादी कर ली। शादी के बाद इंदिरा कश्मीर घूमने गई और जब वहां से लौटकर आयीं तो उनको और फिरोज गांधी को अंग्रेज हुकूमत ने गिरफ्तार कर लिया और नैनी जेल में डाल दिया।
साल 1937 में इंदिरा अपनी पढ़ाई के लिए ऑक्सफोर्ड चली गईं और 1941 में अपनी पढ़ाई पूरी कर भारत आई। इंदिरा जब भारत आईं तो नेहरु को उम्मीद थी कि वे राजनीति के सफर में उनका साथ देंगी। लेकिन भारत आते ही उन्होंने अपने पिता नेहरु के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया। उन्होंने नेहरु जी को बताया था कि वे फिरोज खान से शादी करना चाहती हैं। जवाहरलाल नेहरु ने इस बात का विरोध किया।
इंदिरा गांधी शुरु से ही महात्मा गांधी के काफी करीब रही हैं। वे अपनी हर परेशानी महात्मा गांधी से ही शेयर करती थी और गांधी जी भी इंदिरा की हर परेशानी का हल निकालते थे। उन्हें समझाते थे और समझते भी थे। दोनों की कई सारी तस्वीरें भी मौजूद हैं। जिसमें इंदिरा गांधी जी के साथ हंसते मुस्कुराते नजर आ रही हैं।
इंदिरा गांधी का जब जन्म हुआ तो परिवार के लोग बहुत निराश थे। क्योंकि उस दौर में बेटियों को लेकर लोगों धारणा थोड़ी अलग थी। लेकिन जवाहरलाल नेहरु के लिए उनकी बेटी इंदिरा उनके सपने की तरह थी। जिस वक्त स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था, उस वक्त इंदिरा 12 साल की थी। इंदिरा ने उस दौर में बच्चों की एक 'वानर सेना' बनाई और इस बात का ख्याल उन्हें रामायण से आया।
Created On :   19 Nov 2019 9:33 AM IST