झारखंड में बीजेपी की करारी हार, पार्टी हाईकमान ने राज्य प्रभारी से मांगी रिपोर्ट
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डिजिटल डेस्क, रांची। महाराष्ट्र में सत्ता गवाने के बाद अब झारखंड में मिली जबर्दस्त हार से भारतीय जनता पार्टी हाईकमान सकते में है। लिहाजा, हाईकमान ने झारखंड प्रभारी ओम माथुर और सह प्रभारी नित्यानंद राय से इसे लेकर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। माना जा रहा है कि जमीनी हालत से उलट पार्टी ने राष्ट्रीय मुद्दों पर विधानसभा चुनाव लड़ा जिसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ा है।
ओम माथुर ने हालांकि चुनाव की घोषणा से पहले ही हाईकमान को कह दिया था कि उन्हें तैयारी के लिए पर्याप्त समय नहीं मिला है। लिहाजा, पूरा चुनाव प्रचार मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व में ही चला। यानी हार का ठीकरा सिर्फ और सिर्फ रघुवर दास पर ही फोड़ने की तैयारी कर ली गई है। चुनाव प्रचार के दौरान हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष सह केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए नौ रैलियों को संबोधित किया था।
झारखंड भाजपा के एक बड़े नेता ने आईएनएस को बताया कि जमीनी हालत से उलट पार्टी ने राष्ट्रीय मुद्दों पर विधानसभा चुनाव लड़ा। मुख्यमंत्री ने विकास को आधार बनाने के बजाय घर-घर रघुवर जैसे चुनावी नारे दिए। रघुवर की कार्यशैली से जनता तो जनता, पार्टी के कायकर्ता तक नाराज थे। उन्होंने कहा कि भाजपा बागी हुए कद्दावर नेता व मंत्री रहे सरयू राय तक को मना नहीं पाई। कहा जा रहा है कि सरयू फैक्टर से भाजपा की पांच सीटें प्रभावित हुईं। ऊपर से केंद्रीय नेतृत्व धारा 370, राम मंदिर और नागरिकता कानून को चुनावी मुद्दा बनाने में लगी रही।
झारखंड में पांच चरण में मतदान हुए थे। लोकसभा में नागरिकता कानून नौ दिसंबर को पास हो गया था और 12 दिसंबर को इस पर राज्यसभा की भी मुहर लग गई थी। नौ दिसंबर के बाद झारखंड में तीन चरण के चुनाव हुए, जिनमें 48 सीटों पर वोटिंग हुई। इनमें भी बाद के दो चरण की 31 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम आबादी राज्य के औसत से ज्यादा है। इन क्षेत्रों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की ज्यादा सघन रैलियां भी हुईं। आखिरी चरण की 16 सीटों के लिए तो प्रधानमंत्री की दो रैलियां हुईं। जाहिर है कि वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश का खामियाजा भी भाजपा को उठाना पड़ा।
पिछले चुनाव में भी भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। वह 37 सीटों पर अटकी थी। 2014 के चुनाव में भाजपा 18 मौजूदा विधायकों के साथ चुनाव में उतरी थी और संख्या 37 पहुंची थी, यानी दोगुनी हुई थी। इस बार अपने और दूसरी पार्टियों के विधायकों को मिलाकर भाजपा 50 से ज्यादा मौजूदा विधायकों को लेकर मैदान में उतरी और आंकड़ा सबके सामने है।
झारखंड भाजपा के एक और नेता, जिनको चुनाव प्रबंधन के काम में केंद्र की तरफ से लगाया था, का कहना है कि यह चुनाव शुद्ध रूप से मुख्यमंत्री के चेहरे, उनके कामकाज और उनकी राजनीति के तरीके पर हुआ है। राज्य की योजनाओं को तो ठीक से लागू किया गया, पर मुख्यमंत्री निजी खुन्नस में राजनीति करते रहे। अपने नेताओं की बजाय दूसरी पार्टियों से नेताओं को लाकर चुनाव लड़ाने की जिद नहीं करते तो हालात इससे बेहतर हो सकते थे।
चुनाव परिणाम पर नजर डालने पर साफ है कि पार्टी की उत्तरी और दक्षिणी छोटानागपुर, कोलन और संताल परगना में खासा नुकसान हुआ है। उत्तरी और दक्षिणी छोटानागपुर की 40 सीटों में भाजपा को सिर्फ 11 सीटें मिली हैं, जबकि कोलान की 14 सीटों में से भाजपा को सिर्फ 3 सीटें नसीब हुई हैं।
इस चुनाव में भाजपा को भितरघात का भी सामना करना पड़ा। चुनाव से पहले दूसरे दलों से पांच विधायक आए। जाहिर है, वहां के नेता बागी हो गए। सरयू राय समेत कइयों ने निर्दलीय पर्चा भरा। 15 दिसंबर को पार्टी ने 11 बागी नेताओं को बाहर कर दिया। माना जाता है कि इन नेताओं ने पार्टी का जमकर नुकसान किया।
बता दें कि झारखंड में कांग्रेस और जेएमएम की बहुमत वाली सरकार बनने जा रही है। गठबंधन के लिए मुख्यमंत्री के तौर पर पहली और आखिरी पसंद हेमंत सोरेन है। वे अपने राजनीतिक करियर में दूसरी बार मुख्यमंत्री बनेंगे। ऐसे में सीएम कैंडिडेट हेमंत सोरेन पिता शिबू सोरेन से मिलने पहुंचे और उनका आशीर्वाद लिया।
Created On :   23 Dec 2019 8:30 PM IST