व्यभिचार से परिवार को होती पीड़ा, सशस्त्र बलों पर कार्रवाई हो : सुप्रीम कोर्ट

Adultery causes pain to family, action should be taken against armed forces: Supreme Court
व्यभिचार से परिवार को होती पीड़ा, सशस्त्र बलों पर कार्रवाई हो : सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली व्यभिचार से परिवार को होती पीड़ा, सशस्त्र बलों पर कार्रवाई हो : सुप्रीम कोर्ट
हाईलाइट
  • जो सशस्त्र बलों में सर्वोपरि है

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि व्यभिचार से परिवार को पीड़ा होती है। सशस्त्र बलों को इस अपराध के लिए अपने अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करनी चाहिए। न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि व्यभिचार अनुशासन को हिला सकता है, जो सशस्त्र बलों में सर्वोपरि है, जबकि परिवार समाज की इकाई है और हर कोई इस पर निर्भर है।

पीठ में शामिल जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सी.टी. रविकुमार की ने कहा, यह आचरण अधिकारियों के जीवन को हिला सकता है। समाज की अखंडता पति-पत्नी की एक-दूसरे के प्रति वफादारी पर आधारित रहती है। पीठ ने यह टिप्पणी तब की, जब केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल माधवी दीवान ने कहा कि दायर याचिका में 2018 के फैसले को स्पष्ट किए जाने की मांग की गई है।

पीठ ने आगे कहा कि व्यभिचार करने वाले अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए सशस्त्र बलों के पास किसी प्रकार का तंत्र होना चाहिए और इस मुद्दे को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि 2018 में एनआरआई जोसेफ शाइन द्वारा दायर एक याचिका पर आईपीसी की धारा 497 के तहत व्यभिचार के अपराध के निपटारे को रोके जाने को असंवैधानिक करार दिया। गुरुवार को सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि दोषियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई को रोकने के लिए 2018 के फैसले का हवाला नहीं दिया जा सकता है। रक्षा मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि 2018 का फैसला व्यभिचार जैसे कृत्यों के लिए दोषी ठहराए गए सशस्त्र बलों के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के रास्ते में बाधा आ सकती है।

शीर्ष अदालत को बताया गया कि सेना में की जाने वाली अनुशासनात्मक कार्रवाई जेंडर न्यूट्रल है। पीठ ने कहा, व्यभिचार परिवार में दर्द पैदा करता है। हमने न्यायाधीशों के रूप में उच्च न्यायालयों में कई सत्र आयोजित किए हैं और कितने परिवारों की पीड़ा देखी है। पीठ ने व्यभिचार से जुड़ी नफरत के पहलू पर जोर देते हुए एक ऐसे मामले का हवाला दिया, जिसमें व्यभिचार करने वाली एक मां ने अपने बच्चों की कस्टडी की मांग करते हुए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की, लेकिन बच्चों ने उससे बात करने से इनकार कर दिया।

पीठ ने आगे कहा कि सशस्त्र बलों को आश्वासन होना चाहिए कि कार्रवाई की जाएगी और ऐसा परिदृश्य नहीं होना चाहिए कि जोसेफ शाइन (2018 के फैसले) का हवाला देते हुए दावा किया जाए कि कुछ भी नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह सूचित किया गया था कि सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) ने फैसले का हवाला देते हुए व्यभिचार के आरोपी सेना के कुछ कर्मियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई को रद्द कर दिया। पीठ ने केंद्र के वकील से कहा कि वह एएफटी के व्यक्तिगत आदेशों को चुनौती दे सकते हैं। शीर्ष अदालत ने दलीलें सुनने के बाद मामले की अगली सुनवाई की तारीख 6 दिसंबर तय की।

(आईएएनएस)

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Created On :   29 Sept 2022 7:30 PM IST

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