अमेरिका भारतीय निर्वासित मामला: 'हाथ-पैर बांध दिए थे, दूर भेजने पर होता है पछतावा', अमेरिका से भारत लौटे अवैध प्रवासियों के परिजनों ने सुनाई आपबीती

हाथ-पैर बांध दिए थे, दूर भेजने पर होता है पछतावा, अमेरिका से भारत लौटे अवैध प्रवासियों के परिजनों ने सुनाई आपबीती

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अमेरिका से शनिवार देर रात 116 अवैध प्रवासियों के जत्थे से सवार प्लेन अमृतसर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर लैंड हुआ। इस दौरान इन लोगों के अमेरिका में उज्जवल भविष्य सवारने का सपना चूर-चूर हो गया।

    दरअसल, अमेरिका में अपने भविष्य के सपनों को साकार करने के लिए ये लोग पहाडियों, जंगलों और समुद्र जैसे खतरनाक रास्तों से जाते थे। लेकिन, सीमा पर ही पुलिस ने पकड़ लिया था। इसके बाद इन लोगों को अमेरिका से निष्कासित कर दिया गया था। इसके बाद जब ये लोग भारत तब उन्होंने अपनी आपबीती पर बात की थी।

    अवैध प्रवासियों के परिजनों ने सुनाई आपबीती

    इस बारे में एनडीटीवी ने खबर पब्लिश की है। जिसके मुताबिक, नवांकोट के निवासी मंगल सिंह थिंड अपने पोते जसनूर सिंह को एयरपोर्ट पर लेने पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा, "जेंट ने हमें बताया कि हमारे बच्चे को सीधे अमेरिका ले जाया जाएगा, लेकिन उसे कोलंबिया ले जाया गया और 3.5 महीने तक वहीं रहने को कहा गया, फिर जहाज से पनामा ले जाया गया, जहां उसे घने जंगलों को पार करना पड़ा। वह हमसे रोजाना दो बार बात करता था। हमने उसे चोट में और थके हुए देखा है। उसे दूर भेजने पर पछतावा हो रहा है।"

    इसके अलावा फिरोजपुर के निवासी सौरव ने बताया कि पहाड़ी इलाके से अमेरिका में घुसने के दो से तीन घंटे के भीतर ही उसे पकड़ लिया गया। उसकी परेशानी 17 जनवरी को शुरू हुई, जब एक एजेंट ने उसे अमेरिका भेजने के लिए 45 लाख रुपये लिए। इसके बदले उसे एक हफ्ते के लिए मलेशिया ले जाया गया, फिर 10 दिनों के लिए मुंबई, फिर एम्स्टर्डम, पनामा, तापचूला और मैक्सिको सिटी। वहां से वे 3-4 दिनों की यात्रा करके अमेरिका पहुंचे।

    अमेरिका से लौटे 116 अवैध प्रवासी

    आखिरकार सीमा पार करने के बाद भी उनकी परेशानी खत्म नहीं हुई। इसके बाद उन्हें पुलिस स्टेशन ले जाया गया। फिर उन्हें एक शिविर में भेज दिया गया। यहां पर उन्हें 15-18 दिन तक रोका गया। उन्होंने बताया, "किसी ने हमारा बयान नहीं लिया, किसी ने हमारी अपील नहीं सुनी। हमारे हाथ-पैर बांध दिए गए, हमारे फोन जब्त कर लिए गए और जब हम विमान में सवार हुए, तभी हमें बताया गया कि हमें निर्वासित किया जा रहा है।"

    इसके अलावा एक अन्य निर्वासित गुरबचन सिंह के पिता जतिंदर पाल सिंह ने भी अपनी बात रखी। उन्होंने बताया कि वह अपने बेटे को अमेरिका भेजने के लिए 50 लाख रुपये का भुगतान कर चुके हैं। लेकिन वह इस बात से अंजान थे कि उन्हें डंकी रूट से ले जाया गया था। उन्होंने बताया कि उनके पास अपने बेटे को विदेश भेजने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। क्योंकि उन्हें भारत में नौकरी नहीं मिल पा रही थी।

    Created On :   16 Feb 2025 9:08 PM IST

    Tags

    और पढ़ेंकम पढ़ें
    Next Story