गणतंत्र दिवस स्पेशल: देश के संविधान ने महिलाओं को दिए हैं कौन-कौन से अधिकार, जीरो पर एफआईआर दर्ज कराने के अलावा मिले हैं ये हक
- संविधान ने महिलाओं को दिए हैं कई अधिकार
- जीरो पर एफआईआर दर्ज कराने का है अधिकार
- इस साल देश मनाएगा अपना 75वां गणतंत्र दिवस
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत का संविधान देश के हर नागरिक को एक नजर से देखता है फिर चाहें वह स्त्री हो या पुरुष। भारत का संविधान सभी के लिए बराबर है। लेकिन समाज ने जिस प्रकार से महिलाओं के प्रति अपनी धारणा बनाई है उसने लंबे वक्त तक उन्हें कई अधिकारों से वंचित रखा हुआ है। इसी कारण महिलाओं के मन में असुरक्षा का भाव पैदा हुआ है। इस असुरक्षा को खत्म करने के लिए कानून ने महिलाओं के लिए भी अधिकार बनाए हैं। जिससे उन्हें भी समाज में बराबरी का सम्मान मिले और वे भी पुरुष से कदम से कदम मिलाकर चल सकें। इन अधिकारों में गरिमा से जीना यानी ‘राइट्स टू डिगनिटी’ जैसे अधिकार भी शामिल हैं।
आइए जानते हैं संविधान और कानून में महिलाओं के लिए कौन कौन से अधिकार दिए गए हैं-
1. बराबर मेहनताना (ईक्वल रिम्यूनरेशन)
इक्वल रिम्यूनरेशन एक्ट 1976 में दर्ज प्रावधानों के अनुसार जब सैलरी या मेहनताने की बात हो तो लैंगिक आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। इस एक्ट के तहत किसी कामकाजी महिला को पुरुष की बराबरी में सैलेरी लेने का अधिकार है।
2. गरिमा और शालीनता का अधिकार (राइट्स ऑफ डिगनिटी)
राइट्स ऑफ डिगनिटी का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 51क(ङ) में है। इसमें यह प्रावधान है कि किसी मामले में अगर महिला अरोपी है और उसका कोई मेडिकल परीक्षण किया जाना है। तो यह काम किसी दूसरी महिला की मौजूदगी में ही किया जाएगा।
3. ऑफिस या कार्यस्थल पर उत्पीड़न से सुरक्षा का अधिकार (राइट्स ऑफ हरासमेंट)
अगर किसी महिला के खिलाफ ऑफिस या कार्यस्थल में शारिरिक या यौन उत्पीड़न होता है तो भारत का कानून उसे शिकायत दर्ज कराने का अधिकार देता है। इस कानून के तहत महिला 3 महीने के अंदर ब्रांच ऑफिस में इंटरनल कंप्लेंट कमेटी (आईसीसी) को लिखित शिकायत दे सकती है।
4. घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार
भारत के कानून में महिला को घरेलू हिंसा के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने का प्रावधान है। भारतीय दंड संहिता की धारा 498 के तहत पत्नी या महिला लिव इन पार्टनर अपने खिलाफ हो रही हिंसा के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकती है। धारा 498 में उल्लेखित है कि किसी भी महिला के साथ मौखिक, आर्थिक, शारीरिक और मानसिक हिंसा अपराध है। धारा 498 के अनुसार इस अपराध के लिए तीन साल तक की गैर जमानती सजा का प्रावधान है।
5. जीरो पर एफ आई आर का अधिकार (जीरो एफ आई आर)
किसी भी महिला के खिलाफ अगर कोई भी अपराध होता है तो वह महिला कहीं से भी या किसी भी थाने में जाकर एफ आई आर दर्ज करा सकती है। भारत का कानून महिलाओं के मामले में यह छूट देता है, इसलिए महिलाओं के लिए यह जरूरी नहीं कि वे शिकायत उसी पुलिस थाने में दर्ज कराएं जहां घटना हुई है। जीरो एफआईआर के तहत महिला की शिकायत को बाद में उस थाने में भेज दिया जाएगा जहां अपराध हुआ हो।
6. निजता का अधिकार
भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत महिलओं के लिए निजता की सुरक्षा का अधिकार है। इस अधिकार के तहत कोई भी महिला अगर यौन उत्पीड़न का शिकार हुई है तो वह अकेले डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज करा सकती है। महिला चाहे तो किसी महिला पुलिस अधिकारी की मौजूदगी में भी अपना बयान दे सकती है।
7. मुफ्त कानूनी सहायता पाने का अधिकार
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39(अ) व 1987 के लीगल सर्विसेज अथॉरिटीज एक्ट या विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम की धारा 12 के तहत मुफ्त कानूनी सहायता पाने का अधिकार है। महिला की आर्थिक स्थिति चाहे जो भी हो, उनके पास यह अधिकार है कि वह कोर्ट में अपने किसी मामले के लिए सरकारी खर्चे पर किसी एडवोकेट की मांग कर सकती है। इस अधिनियम के तहत बलात्कार की शिकार महिला को मुफ्त कानून पाने का अधिकार है। लीगल सर्विस अथॉरिटी की ओर से किसी महिला का इंतजाम किया जाता है।
8. विवाहित बेटी को अनुकम्पा नियुक्ति का अधिकार
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक बनाम अपूर्वा श्री मामले में बेटी की शादी के बाद दूसरे घर का हो जाने की बात को दकियानूसी करार दिया था। जिसमें कोर्ट ने यह फैसला सुनाया था कि विवाहित बेटी अनुकम्पा नियुक्ति के आधार सरकारी नौकरी प्राप्त करने का अधिकार रखती है।
मध्यप्रदेश की जबलपुर हाई कोर्ट ने भी अनुकम्पा नियुक्ति से संबंधित एक जनहित याचिका के उत्तर में महिलाओं के हक में फैसला सुनाया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि विवाहित बेटी भी अनुकम्पा नियुक्ति पाने की हकदार है। कोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया था कि किसी सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के बाद उसके आश्रितों में अगर बेटे के पास रोजगार है तो बेटी भी आवेदन कर सकती है। कोर्ट के इस फैसले का आधार समानता का अधिकार माना गया।
9. मैटरनिटी लीव या मातृत्व अवकाश का अधिकार
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 42 के तहत सरकारी संस्थान या प्राइवेट संस्थान में काम करने वाली महिलाओं को मैटरनिटी लीव या मातृत्व अवकाश लेने का अधिकार है। मैटरनिटी लीव 12 हफ्तों की होती है जिसे महिलाएं अपने अनुसार ले सकती हैं।
10. भरण पोषण का अधिकार
भरण पोषण के अधिकार का मतलब मेंटेनेंस है। घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम या डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट, 2005 में महिलाओं को कई अधिकार दिए गए हैं। इस अधिनियम की धारा 18 के तहत महिलाओं को अपने पति से जीवन भर भरण-पोषण का अधिकार प्राप्त है। अगर उनका तलाक भी हो जाता है तो भी महिला के पास यह अधिकार धारा 25 तहत सुरक्षित रहता है।
Created On :   25 Jan 2024 12:31 AM IST