गणेशोत्सव: बालगंगाधर तिलक ने गणेशोत्सव को दिया था बड़ा स्वरूप, जानिए क्या थी रणनीति और क्यों भयभीत थे अंग्रेज
- देश के कई राज्यों में गणेशोत्सव को बडी धूम धाम से मनाया जाता हैं
- उत्सव को बड़ा स्वरूप देने में लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने बड़ी भूमिका निभाई
- इस उत्सव से अंग्रेज भयभीत थे
डिजिटल डेस्क,नई दिल्ली। गणेशोत्सव हिन्दुओ का एक प्रमुख त्यौहार हैं। इस त्यौहार को सम्पूर्ण भारत में बड़े धूम-धाम से मनाया जाता हैं। वर्तमान में पूरे भारत में मनाये जाने वाले इस पर्व की शुरूआत महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी पुणे से हुई थी। इस उत्सव की शुरूआत शिवाजी महाराज के बाल्यकाल में उनकी मां जीजाबाई द्वारा की गई थी। इस उत्सव को बड़ा स्वरूप देने में लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने बड़ी भूमिका निभाने का काम किया। 10 दिनो तक चलने वाले गणेश उत्सव के दौरान सम्पूर्ण भारत गणेश उत्साव के हर्षोउल्लास में रंगा रहता हैं। देश के कई राज्यों में गणेशोत्सव को बडी धूम धाम से मनाया जाता हैं।भगवान गणेश को सौभाग्य, समृद्धि और ज्ञान का देवता माना जाता है।
हिन्दुओ के अराध्य देव-
हिन्दुओं के अराध्य देवों में से एक है गणपति बप्पा। हिन्दू धर्म में गजानन को एक विशिष्ट स्थान प्राप्त हैं। हिंदू धर्म में परंपरा है कोई भी नये कार्य की शुरूआत करने से पहले गणपति बप्पा की पूजा सबसे पहले की जाती है।
सप्तवाहक शासको के समय से है गणेशोत्सव मनाने की परंपरा-
महराष्ट्र के सात वाहन, राष्ट्र कूट, चालुक्य आदि राजाओं ने गणेशोत्सव की प्रारंभ किया था। भारत में जब पेशवाओं का शासन था, तब से वहां गणेश उत्सव मनाया जा रहा है। पेशेवरो के महलो में बड़े ही धूम-धाम से गणेशोत्सव मनाया जाता था। इस उत्सव के दौरान महाभोज किया जाता था, गरीबो में मिठाईया बांटी जाती थी। भजन कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता था।
पहले नही मनाया जाता था धूम-धाम से गणेशोत्सव-
भारत के आजाद होने से पहले भारत पर ब्रिट्रिश शासन का राज था। ब्रिट्रिश काल में लोग किसी भी उत्सव को सार्वजनिक स्थल पर इकठ्टा होकर धूम-धाम से नही मना सकते थे। 1890 के दशक में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक अक्सर ये सोचते थे कि किस तरह से आमजन को एकजुट किया जाए। इसके लिए उन्होंने धार्मिक मार्ग को चुना और पहली बार सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव को मनाया था। आगे चलकर उनका यह प्रयास एक आंदोलन बन गया और स्वतंत्रता आंदोलन में बडी भूमिका निभाई थी।
आजादी की लडाई में गणेशोत्सव-
आजादी की लडाई में गणेशोत्सव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। गणेशोत्सव के दौरान काफी संख्या में लोग एक साथ एक ही जगह पर एकत्रित होते थे। गणेशोत्सव को दौरान नेताजी सुभाषचंद्र बोस, वीर सावरकर, लोकमान्य तिलक, पंडित मदन मोहन आदि भाषण देते हुए लोगों को संबोधित करने का काम करते थे। धीरे-धीरे गणेशोत्सव स्वधीनता की लडाई का एक मंच बन गया था।
गणेशोत्सव से भयभीत थे अंग्रेज
गणेशोत्सव का बढता स्वरूप अंग्रेजो के लिये भय का कारण बन गया था। गणेशोत्सव के दौरान लोग बडी संख्या में सडको में घूम-घूम कर अंग्रेजी शासन के विरोध के नारे लगाते और विरोधी गीत गाते, उनके खिलाफ हथियार उठाने का आवाह्न किया जाता था।
नतीजा यह हुआ कि इससे लोग अंग्रेजी शासन के विरोध करने के लिये एक साथ एक जुट होकर खडे हुए और अंग्रजी शासन का विरोध करने लगे। कुल मिलाकर उस समय गणेशोत्सव एक ऐसा आंदोलन बन गया था, जिसने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिलाने में बहुत बड़ा योगदान दिया था।
बालगंगाधर तिलक ने 1893 में गणेशोत्सव को बड़े रूप में देश के सामने लाने का प्रयास किया था जिसने अब विराट रुप ले लिया है। महाराष्ट्र से शुरू हुआ गणेशोत्सव अब पूरे देश में बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है। देश में महाराष्ट्र,कर्नाटक, मध्यप्रदेश के अलावा कई राज्यों में इस पर्व को बड़े रूप में मनाया जाता है।
Created On :   21 Sept 2023 6:30 PM IST