मैं क्षेत्रीय भाषा से शब्द और रूपक उधार लेता हूं : प्रसून जोशी
डिजिटल डेस्क, पणजी। जाने-माने कवि और गीतकार प्रसून जोशी का कहना है कि उनके पालन-पोषण और संस्कृति का उनके लेखन पर गहरा प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण वे अधिकांश शब्द और रूपक क्षेत्रीय भाषा और संस्कृति से उधार लेते हैं।
गोवा में चल रहे इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया में बुधवार को आर्ट एंड क्राफ्ट ऑफ लिरिक्स राइटिंग पर इंटरैक्टिव सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, हमारी क्षेत्रीय भाषा के शब्द कभी विलुप्त न हों। हमारी परवरिश और संस्कृति का हमारे लेखन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। मैं अपने अधिकांश शब्द और रूपक हमारी क्षेत्रीय भाषा और संस्कृति से उधार लेता हूं। हमारी क्षेत्रीय भाषा के शब्द कभी विलुप्त न हों।
अपने लेखन के सार के बारे में बोलते हुए, प्रसून ने कहा कि उनके अधिकांश शब्द उनकी अपनी मिट्टी और संस्कृति से निकले हैं। उन्होंने कहा कि एक गीतकार और संगीतकार के बीच हमेशा सहजीवी संबंध होता है और दोनों को हमेशा एक दूसरे का पूरक होना चाहिए।
आगे अपनी बात समझाते हुए प्रसून ने आज के अश्लील गीतों पर विचार करते हुए कहा कि बाजार की फिलॉस्फी के मुताबिक अगर कोई चीज बिकती नहीं है तो बनती नहीं है। पाठकों और दर्शकों को रचनाकारों की तरह समान रूप से जिम्मेदार होना चाहिए।
प्रसून जोशी एक प्रसिद्ध कवि, लेखक, गीतकार, पटकथा लेखक और संचार विशेषज्ञ हैं, जिनके हिंदी सिनेमा में काम ने उन्हें आलोचकों और लोकप्रिय प्रशंसा दोनों से नवाजा है। उन्होंने कहा, प्रामाणिकता एक गीतकार की सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक है। आपके जैसा कोई नहीं है। आप अद्वितीय हैं। एक गीतकार को हमेशा अपने शब्दों का उपयोग करते हुए अपनी शैली में लिखने का प्रयास करना चाहिए।
एक गीतकार के रूप में, जोशी ने फिल्म तारे जमीन पर (2007) और चटगांव (2012) में काम किया और सर्वश्रेष्ठ गीत के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता। प्रसून जोशी को केंद्र सरकार द्वारा पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया था।
(आईएएनएस)
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Created On :   23 Nov 2022 12:30 PM IST