Film Review: वूमेन एम्पावरमेंट पर एक इमोशनल और असरदार फिल्म है "आयुष्मती गीता मैट्रिक पास"
- फिल्म समीक्षा : आयुष्मती गीता मैट्रिक पास
- बैनर: गुड आइडीया फिल्म्स और स्पंक प्रोडक्शन
- कलाकार : कशिका कपूर, अनुज सैनी, अतुल श्रीवास्तव, अलका अमीन , प्रणय दीक्षित
- निर्देशक : प्रदीप खैरवार
- निर्माता : प्रदीप खैरवार, शानू सिंह
- सह निर्माता - जेके एंटरटेनमेंट और पेंटेक इंटरनेशनल
- अवधि : 2 घंटे 19 मिनट
- रिलीज़ डेट: 18 अक्टूबर
- रेटिंग: ⭐⭐⭐⭐
महिला शिक्षा और वूमेन इंपावरमेंट पर बॉलीवुड में कई फ़िल्में बनी हैं परंतु आजादी के 70 वर्षों बाद भी महिलाओं और बेटियों के हालात में कुछ खास सुधार देखने को नहीं मिला। अब निर्देशक प्रदीप खैरवार एक बहुत ही इमोशनल फ़िल्म “आयुष्मती गीता मैट्रिक पास” लेकर आए हैं जो दर्शकों के मन मस्तिष्क पर एक गहरी छाप छोड़ती है और समाज को झकझोरने का दम रखती है।
फिल्म की कहानी की शुरुआत ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ’ लिखे हुए बोर्ड से होती है जिसका ग्राम प्रधान सहित बाकी के गाँव वाले मज़ाक उड़ा रहे हैं लेकिन पंडित विद्याधर त्रिपाठी (अतुल श्रीवास्तव) इस सरकारी प्रचार की तारीफ कर रहे हैं, उनकी यही बात गाँव वालों के पसंद नहीं है उनको लगता है पंडितजी पगला गए हैं। बस यहीं से फिल्म का टोन सेट हो जाता है, पूरा गाँव एक तरफ और पंडितजी और उनकी प्रग्रेसिव सोच दूसरी तरफ, और इन्ही दोनों पक्षों की खींच तान से आगे बढ़ती है फिल्म "आयुष्मती गीता मैट्रिक पास" की कहानी. फिल्म की कहानी में पहला मोड़ तब आता है जब कुंदन (अनुज सैनी) अपनी माँ (अल्का अमीन) के साथ गीता ( कशिका कपूर) का हाथ मांगने उसके घर आता है और उसी समय गीता का मैट्रिक का रिजल्ट आ जाता है जिसमें गीता फेल हो जाती है, इस बात से गीता और पंडितजी इतने दुखी होते हैं कि उन्होंने कुंदन और उसकी माँ को यह बोल के वापिस लौट दिया कि जब तक गीता मैट्रिक पास नहीं कर लेती वो गीता के विवाह के बारे में सोच भी नहीं सकते । पंडितजी की भीष्म प्रतिज्ञा क्या गीता पूरी कर पाएगी ये जानने के लिए आपको फिल्म देखना पड़ेगा।
फिल्म के अगले भाग में गीता और कुंदन की रोमांटिक लव स्टोरी परवान चढ़ती है। फ़िल्म की कहानी में कुछ ऐसे मोड़ आते हैं और ऐसा बवाल मचता है कि उस वजह से गीता, कुंदन और पंडितजी की जिंदगी में बवंडर खड़ा हो जाता है। सिंपल की कहानी बेहद ही नाटकीय घटनाक्रम के साथ इमोशनली दर्शको को अंत तक बाँधे रखती हैं ।
अभिनय की बात करें तो फिल्म में सभी कलाकारों ने अपने किरदार के साथ भरपूर न्याय किया है। गीता के रोल में कशिका कपूर ने बहुत ही शानदार डेब्यू किया है फ़िल्म में उनका अभिनय शानदार हैं। उन्होंने एक ग्रामीण लड़की के किरदार को जिस सुंदर ढंग से परदे पर उतारा है वो वाकई सराहनीय है।
कशिका ने संवाद और पहनावे के साथ ही गीता के किरदार की बारीकियों को अपने अभिनय से जीवंत कर दिया हैं। फ़िल्म के पहले दृश्य में चहकने वाली गीता की बदलती जिंदगी की परिस्थितियों में भावुक क्षणों को कशिका ने बहुत स्वाभाविक तरीके से पर्दे पर निभाया हैं
गीता के पिता के रोल मे अतुल श्रीवास्तव ने अपना पूरा अनुभव उड़ेल दिया है। अपने अनोखे अंदाज, फेशियल एक्सप्रेशन और डायलॉग डेलीवेरी से वो दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। अनुज सैनी का क्यूट लुक दर्शकों को बहुत पसंद आने वाला है। फिल्म में उनके किरदार की मांग के हिसाब से उनका इनोसेन्ट फेस मैच करता हैं जिसका उनको भरपूर लाभ मिला है।
वरिष्ठ अभिनेत्री अलका अमीन ने कुंदन की माँ के रोल में बहुत ही शानदार अभिनय किया हैं फ़िल्म में सबसे ज़्यादा प्रणय दीक्षित चौंकाते हैं जो फिल्म मे कुंदन के दोस्त का किरदार निभा रहे हैं। प्रणय अपनी कॉमिक टाइमिंग से सबको हंसा हंसा के लोटपोट कर देते हैं। सपोर्टिंग कास्ट भी अच्छी रही है।
निर्देशक प्रदीप खैरवार की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने बिना किसी फूहड़ता और मेलोड्रामा के गीता और कुंदन के बीच बहुत ही सादगी से रोमांस फ़िल्माया है। प्रदीप खैरवार फ़िल्म की कहानी की गंभीरता को अच्छे से समझते हैं इसलिए दर्शकों की रुचि बनाए रखने के लिए नाटकीयता और रियलिटी में संतुलन बनाने में सफल रहे हैं। उन्होंने पूर्वी उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र का माहौल, भाषा शैली, बॉडी लैंग्वेज का अच्छा ध्यान रखा है। फ़िल्म की कहानी को पर्दे पर असरदार तरीके से दर्शाने में रियल लोकेशन्स की भी महत्वपूर्ण भूमिका हैं।
सामाजिक संदेश देने वाली यह फ़िल्म एक सादगी से भरी लव स्टोरी भी हैं जिसमे संगीत निर्देशक संजीव आनंद झा ने बहुत ही मधुर और रोमांटिक गाने बनाए हैं। फ़िल्म के गीत कहानी का हिस्सा हैं। फिल्म के सभी गाने बहुत सुरीले हैं लेकिन ‘अखियों से मुझे जो तू छू के गया’ दर्शकों के दिल को छू लेता है।
फ़िल्म के संवाद बहुत ही असरदार हैं ग्राम प्रधान के द्वारा कही गई बात "लड़किया पतंग की तरह होती हैं, इनको उड़ाया तो जाता है लेकिन डोर में बांध कर" इस बात का संकेत हैं कि फिल्म में गीता का संघर्ष कितना बड़ा होने वाला है. लेखक नवनितेश सिंह ने बहुत ही स्वाभाविक और प्रभावशाली संवाद लिखे हैं।
कुल मिलाकर "आयुष्मती गीता मैट्रिक पास" एक सादगी से भरी इमोशनल लव स्टोरी हैं जो सशक्त अभिनय, रोमांटिक संगीत और सधे हुए डायरेक्शन के साथ एक बढ़िया पारिवारिक फ़िल्म बन पड़ी है जो मनोरंजन के साथ ही महिला सशक्तिकरण पर असरदार तरीके से बात करती हैं। "आयुष्मती गीता मैट्रिक पास" सामाजिक सरोकार की बात बहुत ही मनोरंजक तरीके से करती है। यह फिल्म लापता लेडीज, पैडमैन, टॉयलेट एक प्रेम कथा, सरीखी बॉलीवुड फिल्मों की तरह ही अपने अंदर गांव की मिट्टी की खुशबू समेटे हुए हैं जो लंबे समय तक दर्शकों को याद रहेगी।
Created On :   16 Oct 2024 3:00 PM IST