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मिसाल: ऐसा अनूठा गांव जहां रंग तो छोड़िये गुलाल भी नहीं उड़ाया जाता, प्रभातफेरी निकालकर करते हैं जनप्रबोधन
- रंगों के बिना होली मनानेवाला वर्धा जिले का सुरगांव अनोखा गांव
- प्रभातफेरी में राष्ट्रसंतों के गीत गाकर जनप्रबोधन करते हैं
- पूरा गांव शामिल होता है प्रभातफेरी में
डिजिटल डेस्क, वर्धा। होली कहते ही आंखों के सामने अलग-अलग प्रकार के रंग सामने आने लगते हैं। रंगों के साथ होली का त्यौहार हर कोई उत्साह के साथ मनाता है। अलग-अलग रंग उधेड़ते हुए, स्पीकर, डीजे की धुन पर होली के गीत, पानी तथा खान-पान के साथ मनाया जाता है। कुल मिलाकर होली का त्योहार रंगों के बिना अधूरा है। लेकिन महाराष्ट्र के वर्धा जिले के सेलू के समीप ऐसा एक गांव है, जहां रंगों से नहीं बल्कि राष्ट्रसंतों के विचारों को एक-दूसरे को बांटकर जनजागरण किया जाता है। हाेली के दिन इस गांव में गुलाल तक नहीं उड़ाया जाता।
रंगों के बिना होली मनानेवाला वर्धा जिले का सुरगांव महाराष्ट्र का अनोखा गांव है। यह गांव वर्धा शहर से लगभग 21 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। होली के दिन सभी ओर रंग खेले जाते हैं। परंतु सुरगांव में राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज के विचार बांटे जाते हंै। गत 27 वर्ष से यही सिलसिला चलता आ रहा है। धूलिवंदन के दिन यहां के लोग श्वेत वस्त्र का परिधान कर राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज के विचारों का प्रसार करते दिखाई देते हैं। यहां सार्वजनिक कार्यक्रम का आयोजन होता है। इसमें सांस्कृतिक कार्यक्रम, भाषण, बच्चों के लिए वकृत्व स्पर्धा आयोजित की जाती है।
सर्वप्रथम सुबह ग्रामीण एकजुट होकर प्रभातफेरी निकालते हैं। इसके पश्चात महापुरुषों की प्रतिमा को माल्यार्पण कर होली का त्यौहार सादगीपूर्ण तरीके से मनाया जाता है। वर्षों से यह परंपरा सुरगांव में चल रही है। गांव में छोटे बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्ग सभी होली के सामूहिक कार्यक्रम में शामिल होते हंै। यही नहीं बाहरगांव से भी गुरुदेव प्रेमी व नागरिक शामिल होते हैं। जिन्हें रंग खेलना पसंद नहीं ऐसे सभी लोग सुरगांव में दाखिल होते हंै। छोटे बच्चे भी सुबह उठकर सफेद कपड़े व भगवे रंग की टोपी परिधान कर प्रभात फेरी में शामिल होते हैं। भजन मंडल प्रभातफेरी में राष्ट्रसंतों के गीत गाकर जनप्रबोधन करते हैं।
गांव की स्वच्छता कर जलायी जाती है कचरे की होली : होली त्यौहार के चलते करीब एक माह पूर्व से ही यहां तैयारी शुरू हो जाती है। होली में लगनेवाली सामग्री जमा करने में ग्रामीण जुट जाते हैं। विशेष बात यह है कि पखवाड़े से पूर्व ही गांव की सफाई शुरू होती है। इसमें अनेक ग्रामीण बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। इसके बाद प्लास्टिक का कचरा व अन्य कचरा जमा कर होली के दिन कचरा जलाकर होली त्योहार मनाया जाता है।
Created On :   23 March 2024 11:52 AM GMT