- Home
- /
- राज्य
- /
- मध्य प्रदेश
- /
- शहडोल
- /
- तीन दिन में 10 हाथियों की मौत,...
Shahdol News: तीन दिन में 10 हाथियों की मौत, इनमें एक नर और 9 मादा
- प्रारंभिक जांच में मौतों का कारण कोदो की फसल में माइकोटॉक्सिन
- एक साथ इतनी बड़ी संख्या में कहीं नहीं हुई हाथियों की मौत
- बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व प्रबंधन की सुरक्षा प्रयासों पर सावलिया निशान
Shahdol News: उमरिया जिले के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में तीन दिन में दस हाथियों की मौत हो गई। इसमें एक नर और 9 मादा हाथी शामिल हैं। मृत मादा हाथियों में 2 हाथिनी गर्भवती भी थी। एक साथ इतनी बड़ी संख्या में जंगली हाथियों की मौतें पहले कहीं नहीं हुई है। घटना के बाद बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में सुरक्षा प्रयासों पर सावलिया निशान लग गया है। बफर एरिया के सलखनिया गांव में 29 अक्टूबर को 4 हाथियों का शव पहली बार दिखा और 7 बीमार थे।
इनके आनन-फानन में इलाज का दावा तो किया पर सारे प्रयास विफल साबित हुए। इलाज के दौरान ही 30 अक्टूबर को 4 और 31 अक्टूबर को 2 और हाथियों की मौत हो गई। एक स्वस्थ होकर उठा और जंगल की ओर चला गया। एपीसीसीएफ एल कृष्णमूर्ति के मुताबिक 13 हाथियों के झुंड में अब 3 स्वस्थ हैं, जिनकी लगातार निगरानी की जा रही है। पोस्टमार्टम के प्रारंभिक रिपोर्ट में मौतों का कारण कोदो की फसल में माइकोटॉक्सिन है।
हालांकि फोरेंसिक जांच के बाद सही कारणों का पता चलेगा। पीएम के बाद नमूने हिस्टोपैथोलॉजिकल और टॉक्सिकोलॉजिकल जांच के लिए एसडब्लूएफएच जबलपुर और राज्य फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी सागर भेजा गया है। हाथियों की मौतों की जांच के लिए प्रदेश सरकार द्वारा गठित एसआईटी व एसटीएसएफ की टीम बांधवगढ़ में ही है। माइकोटॉक्सिन के बारे में और जानकारी जुटाने के लिए मध्यप्रदेश के वाइल्डलाइफ चिकित्सक लगातार आईवीआरआई बरेली, डब्ल्यूआईआई देहरादून, राज्य फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला सागर व सीसीएमबी हैदराबाद के विशेषज्ञों से संपर्क में हैं। घटनास्थल के आसपास कई एकड़ में कोदो की फसल को नष्ट करवाया गया है।
क्या है माइकोटॉक्सिन
माइकोटॉक्सिन खास तरह की फफूंद (कवक) से बनते हैं। ऐसे फफूंद कुछ विशेष फसलों के साथ ही खाद्य पदार्थों पर उगती है। ये घातक जहर होते हैं।
क्या बीमार हाथियों को उपयुक्त इलाज मिला
बीमार हाथियों के इलाज के दौरान संसाधनों की कमी भी नजर आई। हाथी एक दिन में सौ लीटर पानी पीता है। वहीं बांधवगढ़ में बीमार हाथियों के इलाज के दौरान उन्हे मनुष्यों को लगने वाले बाटल से दवा दी गई। बड़ा सवाल यह है कि हाथी जैसे विशालकाय जंगली जानवर को इलाज की जरूरत पड़ जाए तो क्या यहां उपयुक्त संसाधन हैं।
हाथियों की मौत और जांच के पैटर्न पर सवाल:
- 28 अक्टूबर को हाथियों का मूवमेंट बमेरा डैम के आसपास बमेरा गांव, बडगईहा से बड़वाही के बीच था। यहां से आगे 29 अक्टूबर की सुबह सलखनिया गांव पहुंचे।
- हाथियों की मौत के बाद जांच और नमूने जुटाने का काम सलखनिया गांव के आसपास पांच किलोमीटर दायरे में हुआ। बमेरा, बडगईहा व बड़वाही के आसपास जल स्रोत व अन्य स्थानों की जांच नहीं हुई।
- 11 बीमार हाथी में 10 की मौत हो गई। एक जो स्वस्थ हुआ उसको लेकर भी स्थानीय सूत्र बताते हैं वह स्वयं से ठीक हुआ है।
- जांच टीम प्रारंभिक पीएम रिपोर्ट के आधार पर मौतों का कारण कोदो में फफूंद को बता रही है। कोदो के फसल भी नष्ट करवाए गए हैं। दूसरी ओर हाथियों के मूवमेंट वाले गांव के रहवासियों ने हाथी को कोदो खाते नहीं देखा है। ग्रामीण कह रहे हैं कि कोदो इतना ही नुकसानदायक होता तो वह मनुष्यों के लिए भी हानिकारक होता।
Created On :   2 Nov 2024 9:12 AM GMT