Satna News: द बिगनिंग से क्षितिज के उस पार, 8 साल में गृहिणी ने लिखे 3 उपन्यास

द बिगनिंग से क्षितिज के उस पार, 8 साल में गृहिणी ने लिखे 3 उपन्यास
  • तकरीबन 8 साल में उनके 3 उपन्यास प्रकाशित हुए
  • दो वर्ष बाद 2019 में उनके क्षितिज के उस पार ने पाठकों का जमकर प्यार समेटा।
  • लॉकडाउन के साथ कलम आगे बढ़ती रही।

Satna News: आम धारणा है कि कामकाजी महिलाओं के मुकाबले गृहणियों की जिंदगी अंतत: चूल्हे-चौके तक ही सीमित रहती है, मगर इस मिथक को तोडक़र यहां की एक विशुद्ध गृहिणी संगीता पांडेय ने अन्य घरेलू महिलाओं के सामने कुछ अलग कर दिखाने की नजीर पेश की है। समाज शास्त्र से एमए संगीता के 8 साल में 3 उपन्यास प्रकाशित हुए। जिले के छोटे से गांव रिमार (बेला) के ठेठ ग्रामीण परिवेश से शहरी जीवन में आईं संगीता समाजशास्त्र से एमए हैं। तकरीबन 8 साल में उनके 3 उपन्यास प्रकाशित हुए। उनका पहला उपन्यास...द बिगनिंग अंग्रेजी में है।

कौन हो तुम, बस गए सांसों में

इसके दो वर्ष बाद 2019 में उनके क्षितिज के उस पार ने पाठकों का जमकर प्यार समेटा। सदी की सबसे भयावह त्रासदी कोविड-19 के रहस्य-रोमांच, सामाजिक दूरी की बाध्यता, प्राणलेवा बीमारी के भय, अलगाव, तनाव और अकेलेपन के ताने-बाने में बुनी इस कथा वस्तु ने समस्याओं के समाधान को भी नई राह दी। उनका यह उपन्यास पेंडमिक 2019–20 के कोरोना वॉरियर्स को समर्पित है। संगीता का हाल ही में प्रकाशित तीसरा उपन्यास कौन हो तुम बस गए सांसों में वस्तुत: प्रेम संबंधों की अनुभूतियों पर आधारित है।

महज संयोग है लेखन कार्य

संगीता पांडेय बताती हैं कि बचपन से ही पढ़ने का शौक था, लेकिन लेखन के बारे में कभी सोचा नहीं था। उपन्यास लेखन को वह महज एक संयोग मानती हैं। उन्होंने माना कि कोरोना जैसी त्रासदी पर लिखना उनके लिए किसी त्रासदी से कम नहीं था। मगर, पिता कामता प्रसाद शुक्ल, मां मालती, पति प्रमोद पांडेय के संबल और बेटी अदिति और बेटे ऋषभ के सहयोग से वह इस मुकाम पर पहुंचीं। बकौल संगीता, घर-परिवार के साथ अध्ययन-लेखन में तालमेल के दौरान उन्होंने सीखा कि जिंदगी असल में जीवन की जरूरतों के हिसाब से ढालनी होती है।

तब तो बहुत दूर था कल

कोरोना जैसी भयावह वैश्विक महामारी पर कलम चलाने के चुनौती पूर्ण दुस्साहस से जुड़े प्रश्न पर संगीता पांडेय कहती हैं कि स्वभावत: मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, मगर सामाजिक दूरी बनाए रखने की विडंबना थी। नई जीवन शैली से समझौते का संघर्ष था। लॉकडाउन ही महामारी से बचाव का एकमात्र उपाय था। जनजीवन में अभूतपूर्व उथल-पुथल थी। इंसान जिन्हें व्यवस्थाएं समझता था, वो सब अव्यवस्था बन चुकी थी। कोई अछूता नहीं था। एक-एक पल बहुत भारी था। कल तो बहुत ही दूर था। इसी लॉकडाउन के साथ कलम आगे बढ़ती रही। संगीता कहती हैं, कई बार ऐसा नहीं होता जैसा हम चाहते हैं। समय की अपनी योजना होती है।

Created On :   17 Feb 2025 5:22 PM IST

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