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Pune News: महाराष्ट्र में संतों का बाल भी बांका नहीं होने दूंगा, शिंदे ने दिया भरोसा

- उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने सुरक्षा का भरोसा दिया
- संतों का बाल भी बांका नहीं होने दूंगा
Pune News. जगद्गुरू संत तुकाराम महाराज के 375वें वैकुंठगमन पर राज्य के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को श्री संत तुकाराम महाराज पुरस्कार से सम्मानित गया। शिंदे ने कहा कि देहू संस्थान ने मुझे पुरस्कार के लिए चुना, यह मेरे लिए गर्व की बात है। वारकरी संप्रदाय के प्रति मेरा आदर पहले भी था और अब यह और बढ़ गया है। यह पुरस्कार केवल मेरा नहीं, बल्कि वारकरी, धारकरी, किसान का सम्मान है। इससे मेरी जिम्मेदारी और बढ़ गई है। महाराष्ट्र संतों और शूर-वीरों की भूमि है। मैं वचन देता हूं कि महाराष्ट्र की भूमि पर संतों का बाल भी बांका नहीं होने दूंगा।
देहूनगरी स्थित संत तुकाराम मंदिर परिसर में हुए कार्यक्रम में शिंदे बोले कि देहू की पवित्र भूमि पर छत्रपति शिवाजी महाराज संत तुकाराम महाराज से मिलने आए थे। उन्हें संत तुकाराम महाराज का मार्गदर्शन और आशीर्वाद प्राप्त था। धर्म और आध्यात्म का आधार हमेशा राज्य के आधार से बड़ा और सर्वोपरि होता है। जिस तरह धर्म की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है, उसी तरह नदियों को प्रदूषणमुक्त करना भी हमारा काम है। नदियां हमारी रक्त वाहिनियां हैं। संतों ने संपूर्ण जीवन नदियों के किनारे बिताया, लेकिन आज इंद्रायणि, चंद्रभागा, गोदावरी जैसी नदियों की स्थिति अच्छी नहीं है। नदियों के पुनरुद्धार के लिए केंद्र सरकार को 2,200 करोड़ रुपए की डीपीआर (विस्तृत परियोजना रिपोर्ट) प्रस्तुत किया गया है, लेकिन इस काम की सफलता के लिए जनसहभागिता अनिवार्य है। उन्होंने यह भी घोषणा की कि वारकरी संप्रदाय को हरसंभव सहायता दी जाएगी और सभी स्कूलों में 'तुकाराम गाथा' उपलब्ध कराई जाएगी ताकि विद्यार्थी उसे पढ़ सकें।
संतों की रचनाएं अनंतकाल तक रहेंगी प्रासंगिक
शिंदे ने कहा कि देहू की भूमि पर 375 साल में हजारों वारकरी संतों ने 'विठ्ठल नाम' का जप किया। संत ज्ञानेश्वर महाराज महाराष्ट्र की श्वास हैं, तो संत तुकाराम महाराज प्राण हैं। तुकाराम महाराज की 'अभंगगाथा' को पांचवां वेद माना जाता है। उनके लिए स्वयं परमेश्वर ने पुष्पक विमान भेजा था और वे सशरीर वैकुंठ गए थे। इस दैवी घटना को 375 साल पूरे हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि तुकाराम महाराज की रचनाएं हमारे जीवन पर सीधा प्रभाव डालती हैं। आज की तरह उनकी शिक्षा 3,375 साल तक भी प्रासंगिक रहेगी। उन्होंने 400 साल पहले जटिल आध्यात्मिक ज्ञान को सरल मराठी भाषा में व्यक्त किया। यही मराठी भाषा की महानता को दर्शाता है।
Created On :   16 March 2025 7:54 PM IST