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सिकलसेल व थैलेसीमिया के मरीजों को मिलेगा जीवनदान,ऑर्गन डोनेशन के लिए शुरू किया जागरूकता अभियान
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डिजिटल डेस्क, नागपुर । देश में हर वर्ष विभिन्न बीमारियों के कारण दो लाख मरीजों का बोन मैरो ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन एक फीसदी मामलों में ही ट्रांसप्लाट संभव होता है। बोन मैराे ट्रांसप्लांट के बारे में जागरूकता की कमी के कारण काफी कम लोग बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए पंजीयन करवाते हैं। नागपुर सहित विदर्भ में सिकलसेल और थैलेसीमिया के मरीजों के उपचार में बोन मैरो ट्रांसप्लांट जीवनदान मिल सकता है। यह जानकारी डॉ. सुनील भट ने दी। बंगलुरु के नारायणा हेल्थ के पीडियाट्रिक हेमेटो ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. भट बुधवार को ऑर्गनडोनेशन के लिए जागरूकता बढ़ाने आयोजित इंटरेक्टिव साइंटिफिक सेशन में बोल रहे थे। सेशन में नारायण हेल्थ के हार्ट एंड लंग ट्रांसप्लांट हेड डॉ. जूलियस पुन्नेन, लिवर ट्रांसप्लांट हेड डॉ. राजीव रंजन सिन्हा और लंग ट्रांसप्लांट हेड डॉ. बाशा जे खान उपस्थित थे।
लिवर ट्रांसप्लांट में महाराष्ट्र अव्वल
डॉ. राजीव रंजन सिन्हा ने कहा कि महाराष्ट्र लिवर ट्रांसप्लांट के क्षेत्र में तेजी से प्रगति कर रहा है। पिछले दो वर्ष से महाराष्ट्र लिवर ट्रांसप्लांट के मामले में सबसे आगे है।
बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए पंजीयन
बोन मैरो ट्रांसप्लांट में मरीज और डोनर के बीएम मैच जरूरी है। 25 से 30 फीसदी मामलों में बीएम परिजनों के मैच करता है और शेष में डोनर की जरूरत होती है। बीएम मैच वाले डोनर की पहचान के लिए पंजीयन की व्यवस्था फिलहाल केवल चेन्नई में है। अब तक 4 लाख लोगों ने वहां पंजीयन कराया है। डॉ. भट के अनुसार बोन मैरो डोनेट करने वाले के स्वास्थ्य को कोई हानि नहीं होती है। डोनेशन के अगले दिन से सामान्य दिनचर्या अपनाई जा सकती है।
हार्ट और लंग ट्रांसप्लांट सबसे जटिल
डॉ. जूलियस पुन्नेन ने बताया कि हार्ट और लंग ट्रांसप्लांट जटिल है। इस प्रकार के मामले में डोनर की मौत हो चुकी होती है और ऑर्गनको तीन से चार घंटे के अंदर प्रक्रिया पूरी करनी जरूरी होती है। हृदयरोग के मामले में हार्ट ट्रांसप्लांट के विकल्प के बारे में जन जागरूकता काफी कम है। डॉ. खान ने कहा कि प्रदूषण और धूम्रपान के कारण श्वसन संबंधी बीमारियां जैसे सीओपीडी, अस्थमा तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसी बीमारियों में लंग ट्रांसप्लांट का विकल्प है।
Created On :   9 Jan 2020 10:30 AM IST