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यहां पानी ही पानी था कभी, चंद्रपुर में मिले 10 करोड़ वर्ष पुराने स्ट्रोमटोलाइट्स जीवाश्म
डिजिटल डेस्क, चंद्रपुर। चंद्रपुर की धरती कभी गहरे समुद्र का हिस्सा हुआ करती थी, जी हां यह जानकर आश्चर्य होगा लेकिन एक शोध में इसकी पुष्टि हुई है। निओ प्रोटेरोजोइक काल में समुद्र मध्यप्रदेश तक फैला हुआ था। वैसे तो पृथ्वी पर प्रथम जीव का निर्माण करीब तीन अरब वर्ष पूर्व हुआ माना जाता है, लेकिन समूचे विश्व में दुर्लभ माने जाने वाले और कुछ करोड़ वर्ष पूर्व मौजूद रहे सायनो बैक्टेरिया से युक्त जीवाश्म चंद्रपुर की इरई नदी परिसर में प्राप्त हुए हैं। इसकी पुष्टि प्रसिद्ध पर्यावरण व जीवाश्म अनुसंधानकर्ता प्रा. सुरेश चोपणे ने की है। चोपणे ने चंद्रपुर परिसर में पहली बार स्ट्रोमटोलाइट्स जीवाश्म खोजकर निकाला है। यह पृथ्वी पर करोड़ों वर्ष पूर्व पाए जाते थे। विश्व में बमुश्किल पाए जाने वाले सायनो बैक्टेरिया के जीवाश्मों को दुर्लभ माना जाता है। प्रा. चोपणे का दावा है कि पृथ्वी पर करीब 3 अरब वर्ष पूर्व यह सूक्ष्म जीव विकसित हुए थे। आज भी इनका अस्तित्व पृथ्वी पर है।
समुद्र के उफनते पानी में सूक्ष्म जीव हुए विकसित
चंद्रपुर का भौगोलिक क्षेत्र बेहद प्राचीन है। यहां 10 करोड़ वर्ष पूर्व के जीवाश्म पाए जाते हैं। यह पहली बार चंद्रपुर शहर के सटे इरई नदी परिसर में देखे गए। समुद्र के उफनते व गर्म पानी में सूक्ष्म जीव विकसित हुए थे। चंद्रपुर और यवतमाल जिले में चांदा ग्रुप के बिल्लारी व पैनगंगा ग्रुप के चूना पत्थरों में यह स्ट्रोमटोलाइट्स नामक जीवाश्म पाया जाता है। इसे वैज्ञानिक भाषा में कृकोकल्स, ओस्कीटोरी इल्स कहा जाता है।
7 करोड़ वर्ष पूर्व विदर्भ में था समुद्र
विदर्भ में करीब 7 करोड़ वर्ष पहले तक समुद्र फैला हुआ था। इस समुद्र में निओ प्रोटेरोजोइक नामक सूक्ष्म जीव विकसित होते रहे। चंद्रपुर जिले के सेल और चूने के पत्थरों में यह तैयार हुए और इनका रूपांतरण कोयले में हुआ। जब 6 करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी पर भयावह ज्वालामुखी ने हाहाकार मचाया तो यह भूपृष्ठ पर आ गए और समुद्र दक्षिण की ओर खिसकता चला गया। ज्वालामुखी के प्रवाह में चंद्रपुर ही नहीं बल्कि और आसपास के सभी जीव मारे गए। इसमें डायनोसॉर जैसे विशालकाय जीव भी शामिल थे। आज भी चंद्रपुर की भूमि पर डायनोसॉर जैसे जीवों के अवशेष पाए जाते हैं।
जैविक इतिहास में मील का पत्थर
स्ट्रोमटोलाइट्स नामक जीवाश्म का मिलना अनुसंधान करने वालों के लिए मील का पत्थर साबित होगा। नई पीढ़ी के लिए जैविक इतिहास समझने में यह कारगर साबित होगा। आने वाली पीढ़ी को अनुसंधान करने में यह जीवाश्म मददगार होंगे।
- प्रा. सुरेश चोपणे, पर्यावरण व जीवाश्म संशोधक, चंद्रपुर
Created On :   26 Feb 2020 12:56 PM IST