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सिंचाई घोटाला : ईडी, सीबीआई व अन्य को प्रतिवादी बनाना गैर-जरूरी , याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट से झटका
डिजिटल डेस्क, नागपुर। बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) की नागपुर खंडपीठ(Nagpur bench) ने सिंचाई घोटाले(Irrigation Scam) पर केंद्रित अतुल जगताप की जनहित याचिका पर हुई सुनवाई में सीबीआई, ईडी, आयकर आयुक्त और सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस को प्रतिवादी बनाने से साफ इंकार कर दिया। सुनवाई न्यायमूर्ति आर.वी.घुगे और न्यायमूर्ति श्रीराम मोडक की खंडपीठ में हुई। दरअसल, याचिकाकर्ता जगताप ने हाईकोर्ट में अर्जी दायर कर मामले में सीबीआई, ईडी व अन्य को प्रतिवादी बनाने की प्रार्थना की थी, लेकिन मामले में सभी पक्षों को सुनकर कोर्ट ने इसे गैरजरूरी माना और याचिका खारिज कर दी। इस मामले में अब 13 मार्च को सुनवाई रखी गई है।
भूमिका बदल दी थी
सिंचाई घोटाले में एसीबी बार-बार अपनी भूमिका बदल रही है। 26 नवंबर 2018 को एसबी के तत्कालीन महासंचालक संजय बर्वे ने कोर्ट में शपथ-पत्र दायर कर, सिंचाई घोटाले में अजित पवार की लिप्तता होने का अंदेशा जताया था। इस पर हाईकोर्ट ने एसीबी को जांच जारी रखने के आदेश दिए थे। इसके एक वर्ष बाद 27 नवंबर 2019 को एसीबी ने हाईकोर्ट में शपथ-पत्र प्रस्तुत किया और सिंचाई घोटाले के तहत 12 प्रकल्पों की जांच में अजित पवार को क्लीन चिट दे दी।
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मौजूदा महासंचालक परमबीर सिंह ने कहा कि, अजित पवार की इस प्रकरण में कोई लिप्तता सिद्ध नहीं हो सकी है। बर्वे ने जब पवार को लिप्त बताया, तब उनके पास कोई जांच रिपोर्ट या ठोस तथ्य नहीं थे। मामले ने तूल पकड़ा, तो एसीबी महासंचालक सिंह ने फिर अपनी भूमिका बदली। कोर्ट से माफी मांगते हुए शपथपत्र दायर किया और बर्वे पर की गई टिप्पणी के लिए माफी मांगी।
जांच एजेंसियों पर अविश्वास
दरअसल, इस मामले में दोनों याचिकाकर्ता अतुल जगताप और जनमंच सामाजिक संस्था ने एसीबी पर अविश्वास जताया है। जगताप ने मामला दूसरी जांच एजेंसी को सौंपने का अनुरोध किया था। वहीं, जनमंच ने हाईकोर्ट मंे अर्जी दायर कर घोटाले की जांच के लिए स्वतंत्र न्यायिक आयोग गठित करने की प्रार्थना की है। याचिकाकर्ता के अनुसार प्रकरण की जांच कर रही एसीबी का शपथपत्र विरोधाभासी और अविश्वसनीय है। सिंचाई घोटाले में अजित पवार मुख्य आरोपी है। प्रदेश में मौजूदा समय में उभरे राजनीतिक समीकरणों में पवार की अहम भूमिका रही है। ऐसे में अब उनके उप-मुख्यमंत्री बनने के बाद जांच एजेंसियों पर नियंत्रण से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में मामले की जांच एक स्वतंत्र न्यायिक आयोग द्वारा की जानी चाहिए। याचिकाकर्ताओं की ओर से एड.अतुल जगताप और एड. फिरदौस मिर्जा काम-काज देख रहे हैं। मध्यस्थी अर्जदार की ओर से एड. श्रीरंग भंडारकर काम-काज देख रहे हैं।
Created On :   14 Feb 2020 7:40 AM GMT