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साल में 70 लाख यूनिट रक्त की कमी, 30 से 40% जरूरतमंदों को नहीं मिलता ब्लड
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डिजिटल डेस्क, नागपुर। रक्तदान एक श्रेष्ठ और बड़ा दान ही नहीं, बल्कि एक ऐसा उत्तम कार्य है, जो सहज ही किसी के लिए जीवनदान की वजह बन सकता है। देश में 130 करोड़ आबादी के हिसाब से भारत को 1.5 फीसदी अर्थात 1.8 करोड़ यूनिट रक्त की जरूरत है। पिछले साल सिर्फ 1.1 करोड़ यूनिट रक्त ही जमा किया गया। इससे करीब 30 से 40 फीसदी अर्थात 70 लाख लोगों को रक्त नहीं मिल सका। विकसित देशों में 4 से 7 फीसदी नागरिक हर साल रक्तदान करते हैं। रक्तदान की जरूरत व गंभीरता 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद ध्यान में आया। नागरिकों को रक्तदान के लिए जागरूक करने के लिए इंडियन सोसायटी ऑफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन एंड इम्यूनो हेमेटोलॉजी द्वारा 1 अक्टूबर 1975 से राष्ट्रीय रक्तदान दिवस का आयोजन किया जाता है, हालांकि अब भी रक्तदान करने वालों की संख्या कम है।
इन मरीजों को पड़ती है ब्लड की जरूरत
नागपुर और आस-पास के क्षेत्र में सिकलसेल और थैलेसीमिया के मरीज अधिक मिलते हैं। इन मरीजों को 15 से 20 दिन में रक्त की जरूरत पड़ती है और साल में 10 से 60 यूनिट तक की जरूरत पड़ सकती है। इसके साथ ही दुर्घटना में घायल, ऑपरेशन के दौरान के साथ ही क्रिटीकल केयर, संक्रमित मरीज, प्रसव के दौरान अधिक रक्तस्त्राव होने पर, डेंगू, मलेरिया, पीलिया और कैंसर जैसी बीमारी में रक्त की जरूरत पड़ती है।
ब्लड टेस्ट जरूरी
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 8 अगस्त 2016 को राज्यसभा में रिपोर्ट रखी, जिसमें बताया 16 माह में 2234 मरीजों को संक्रमित रक्त दिया गया। इससे उन्हें एचआईवी हो गया। पिछले 7 साल में 14474 लोगों को संक्रमित रक्त के कारण बीमारी हुई। संक्रमण रोकने रक्त देने से पहले उसकी जांच जरूरी है।
ये हैं फायदे
वैज्ञानिक रिसर्च में साबित हुआ है कि 5 बड़ी बीमारियाें से बचाव होता है। हाईपरटेंशन, मधुमेह, कैंसर, ब्रेन स्ट्रोक जैसी बीमारियों से बचाव होता है। यह प्रमाणित हो चुका है कि 200-250 एमजी आयरन निकलने से रक्त पतला हो जाता है और 88 फीसदी हृदयाघात होने की आशंका कम हो जाती है। खुशी और संतुष्टि मिलती है। एक यूनिट रक्तदान से एनेमिया के मरीज को रेड सेल, रक्तस्त्राव के मरीज को प्लेटलेट और क्लोटिंग के मरीज को प्लाज्मा का एक साथ 3 मरीजों को लाभ मिलता है।
ये कर सकते हैं ब्लड डोनेट
स्वस्थ व्यक्ति 18 से 65 साल का जिसका वजन 45 किलोग्राम से अधिक और हीमोग्लोबिन 12.5 हो। 3 माह के बाद दोबारा रक्तदान किया जा सकता है। शरीर में 5 से 6 लीटर अर्थात 11 से 13 यूनिट रक्त होता है। रक्तदान के समय सिर्फ 350-450 एमएल रक्त लिया जाता है। बोन मेरो लगातार रक्त बनाने का काम करती है और 24 घंटे में दोबारा रक्त बन जाता है। लोगों में भ्रम है कि रक्तदान से कमजोरी आती है। रक्तदाता एक घंटे में सामान्य गतिविधि कर सकता है और नया रक्त शरीर में बनने से नई फीलिंग आती है।
6.5 हजार में 100 यूनिट संक्रमित
भारत में ऐसा देखने में आया है कि 6.5 हजार रक्त यूनिट में से 100 रक्त की यूनिट संक्रमित होती है। दूषित रक्त की जांच न्यूक्लिक एसिड टेस्ट अर्थात नेट टेस्ट से की जाती है। यह भी 3 प्रकार की होती है। इंडिविजुअल डोनर नेट में सबसे अधिक शुद्ध रक्त की संभावना रहती है। एमपी और एचबी नेट में एलिजा आदि की जांच में शुद्ध रक्त मिलने की संभावना अपेक्षाकृत कम होती है।
डाॅ. हरीश वरभे, उपाध्यक्ष, इंडियन सोसायटी ऑफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन एडं इम्यूनो हेमेटोलॉजी, महाराष्ट्र शाखा
Created On :   1 Oct 2019 1:55 PM IST