बुद्ध जयंती विशेष :: करीब 2500 साल पुराने कुएं में ध्यानस्थ बुद्ध की प्रतिमा, साधना के लिए 20 खोलियां भी

करीब 2500 साल पुराने कुएं में ध्यानस्थ बुद्ध की प्रतिमा, साधना के लिए 20 खोलियां भी
  • वेडाहरी गांव में मौर्य कालीन कुआं उपेक्षा के आंसू रो रहा है
  • गौतम बुद्ध की भूमि स्पर्श मुद्रावाली बुद्ध मूर्ति आज भी कायम
  • कुएं को पुरातत्व का दर्जा दिए जाने की मांग

रीता हाडके , बेसा(नागपुर)। बेसा ग्रामीण के वेडाहरी गांव में खुली जगह पर एक बड़ा सा कुआं है। इस कुएं में नीचे उतरने के लिए सीढ़ियां हैं। कुएं का निरीक्षण करने पर पता चला कि इसकी दीवार पर बुद्ध की भूमि स्पर्श मुद्रा में मूर्ति को उकेरा गया है। इसका पता खामला निवासी नागमित्र धर्मेश पाटील ने 2010 में लगाया। निरीक्षण में यह भी पाया गया कि इस बावड़ी कुएं से लगकर 20 खोलियां हैं। गौरतलब है कि कुएं के बीचों बीच बुद्ध की ध्यानस्थ मुद्रा में मूर्ति बनाई गई। ठीक उसके सामने जो बीस खोलियां है, वहां बैठकर ध्यान साधना करने पर बुद्ध मूर्ति का साक्षात्कार होता है। इस उद्देश्य से बुद्ध मूर्ति बावड़ी कुएं के केंद्र स्थान में उकेरी गई है। इस कुएं को पुरातत्व का दर्जा दिए जाने की मांग नागपुर के पुरातत्व विभाग को नागमित्र पाटील और उनका रिसर्च ग्रुप कर रहा है।

बुद्ध कालीन धरोहर को संजोए रखने का कार्य : पाटील देश, महानगर और शहर में मौजूद प्राचीन पुरातत्व विरासत को बचाए रखने का कार्य 2002 से समूह में कर रहे हैं। उन्होंने 2010 में वेडाहरी गांव में मौजूद बावड़ी कुएं की दीवार पर बुद्ध मूर्ति होने की खोज की। मानेवाड़ा से वेडाहरी गांव रिंग रोड से लगकर डुंडा मारोति पर्यटन स्थल के पहले यह बावड़ी कुआं है। इस बावड़ी कुएं में 20 ध्यान साधना के कमरे थे, वर्तमान में 18 ही खोलियां बची हैं। केंद्र स्थान पर तथागत भगवान गौतम बुद्ध की भूमि स्पर्श मुद्रावाली बुद्ध मूर्ति आज भी कायम है। हालांकि प्राचीन काल में बनाया गया कुआं और बुद्ध मूर्ति रख-रखाव के अभाव में उपेक्षा की शिकार बनी हुई है।

कुआं साबूत, लेकिन उपेक्षित : वेडाहरी गांव के इस बावड़ी कुएं का संबंध सातवाहन, वाकाटक और नागराजा हर्षवर्धन (हरिचंद्र राजा) काल से भी जोड़ा जाता है। इतिहास है कि वेडाहरी गांव का मार्ग बड़ा मार्ग था। इसी रास्ते से व्यापारी और अनेक धर्मावलंबी आना जाना करते थे। उनकी सुविधा के लिए मौर्य काल में सातवाहन राजा सार्वजनिक कुएं बनाना, छांव के लिए स्तूप का निर्माण, विशालकाय पेड़ लगाना, सड़कों का निर्माण आदि सुविधा लोगों को मिल सके, ठंड, बारिश और धूप से उनकी सुरक्षा हो सके, इस उद्देश्य से राजा कार्य करते थे। आज भी यह बावड़ी कुआं साबूत है, लेकिन सरकार के उदासीन रवैये के कारण उपेक्षित है। पाटील ने पुरातत्व इतिहास रिसर्च ग्रुप बनाकर साल 2010 से करीब बीस से पच्चीस पुरातत्व स्थलों को खोज निकला। इसी के माध्यम से विरासत बचाओ अभियान चला रहे हैं। धम्म प्रचार के लिए बौद्ध भिक्षु, जैन मुनि और व्यापारी लोगों के लिए मार्ग पर ऐसे कुएं पाए जा रहे हैं, जिसमें इतिहास छिपा होने का खुलासा हो रहा है।

वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज : पाटील हमेशा बुद्धकालीन धरोहर बचाने के लिए कार्यरत रहते हैं। इस दौरान उन्होंने प्राचीन विरासत शासन उसे ब्राह्मी लिपि कहता है, वह अशोका धम्मलिपि है। इस पर 50,000 से ज्यादा पाली, मराठी, हिंदी शब्दों की धम्म लिपि की है। इस कार्य के लिए 1 दिसंबर 2023 को इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड और हाल ही में इंटरनेशनल वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड 2024 में नाम दर्ज हो चुका है।

बावड़ी कुएं को मिले पुरातत्व का दर्जा : वेडाहरी गांव मे मौजूद मौर्य कालीन पुरातत्व बावड़ी कुएं को पुरातत्व का दर्जा दिए जाने की मांग नागपुर के राज्य और केंद्र सरकार के पुरातत्व विभाग को पिछले 14 साल से कर रहे हैं। इसके लिए हर स्तर पर पत्र व्यवहार भी किए जा रहे हैं। इस प्राचीन कुआं को देखने के लिए दूर-दराज और विदेशी पर्यटक भी आ रहे हैं। नागमित्र धर्मेश पाटील, संयोजक, पुरातत्व इतिहास रिसर्च ग्रुप नागपुर


Created On :   23 May 2024 1:09 PM IST

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