फैसला: सुनील केदार को बड़ा झटका, अब नहीं लड़ सकेंगे आगामी विधानसभा चुनाव

सुनील केदार को बड़ा झटका, अब नहीं लड़ सकेंगे आगामी विधानसभा चुनाव
  • दोषसिद्धि पर रोक लगाने से हाई कोर्ट का इनकार
  • याचिका बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने की खारिज
  • एनडीसीसी बैंक के 170 करोड़ रुपए घोटाले का मामला

डिजिटल डेस्क, नागपुर। एनडीसीसी बैंक घोटाले के दोषी एवं बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष तथा पूर्व मंत्री सुनील केदार द्वारा दायर दोषसिद्धि पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिका बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने खारिज कर दी। न्या. उर्मिला जोशी-फलके ने यह महत्वपूर्ण फैसला दिया है। कोर्ट के इस फैसले से सुनील केदार को बड़ा झटका लगा है। अब वे आगामी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।

170 करोड़ रुपए का घोटाला : एनडीसीसी बैंक के 170 करोड़ रुपए घोटाले के मामले में अतिरिक्त मुख्य न्याय दंडाधिकारी ने 22 दिसंबर 2023 को बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष सुनील केदार सहित अन्य आरोपियों को दोषी करार देते हुए 5 साल की सजा और 12.50 लाख रुपए का जुर्माना लगाया था। इस कारण केदार की विधायकी रद्द कर दी गई है। इतना ही नहीं, नियमों के मुताबिक वे अगले छह साल तक कोई भी चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। इस साल राज्य में अक्टूबर या नवंबर महीने में विधानसभा चुनाव होने की संभावना है। अगर उनकी दोषसिद्धि पर रोक लगाई जाती, तो उन्हें अपनी विधायक सीट वापस मिल जाती और वह चुनाव भी लड़ सकते थे। केदार ने दोषसिद्धि पर रोक लगाने की मांग करते हुए नागपुर खंडपीठ में याचिका दायर की थी। कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था।

केदार के वकील की दलील : केदार की ओर से पैरवी करते हुए वरिष्ठ विधिज्ञ एस. के. मिश्रा ने कहा था कि यह मामला एक निर्वाचित जन प्रतिनिधि का है। यह किसी पब्लिक सर्वेंट का मामला नहीं है। पब्लिक सर्वेंट अधिनियम लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम से भिन्न है। सुनील केदार 5 बार चुनकर आ चुके हैं। इसलिए उनकी दोषसिद्धि पर रोक लगाने का कोर्ट से अनुरोध किया था। साथ ही एस. के. मिश्रा ने राहुल गांधी, राम नारंग, अफजल अंसारी और नवजोत सिंह सिद्धू के मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया।

आर्थिक अपराध देश के वित्तीय सेहत के लिए खतरा : केदार की अर्जी खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने वाय. एस. जगमोहन रेड्‌डी बनाम सीबीआई मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया है। कहा-आर्थिक अपराध एक अलग श्रेणी में आते हैं और इसमें अलग दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। आर्थिक अपराध जिसमें गहरी साजिशें शामिल हों और जिसमें सार्वजनिक पैसे की भारी हानि शामिल हो, उसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए और इसे गंभीर अपराध माना जाना चाहिए जो पूरे देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है और इस तरह देश की वित्तीय सेहत के लिए गंभीर खतरा पैदा करता है।

केदार कोई अपवाद नहीं : हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह नियम नहीं है कि ऐसे मामलों में राहत दी जाए। ऐसी राहत असाधारण परिस्थितियों में दी जा सकती है। केदार केवल एक निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए उन्हें असाधारण बनाने और राहत देने वाली कोई स्थिति या तथ्य नहीं है। साथ ही, कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जन प्रतिनिधित्व कानून का मूल उद्देश्य अपराध के दोषी लोगों को चुनाव से दूर रखना है और इस मामले का फैसला करते समय उस उद्देश्य को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

सरकार ने जनता के पैसे की बर्बादी का हवाला दिया था : राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ विधिज्ञ सिद्धांत दवे ने दलील देते हुए केदार को राहत देने का विरोध किया था। दवे ने दलील में कहा था कि, केदार को अब सजा से राहत मिलती है तो वह आगामी चुनाव लड़ सकते हैं और उसमें सफल भी हो सकते हैं। हालांकि उन्होंने इस सजा को सेशन कोर्ट में चुनौती दी है। न्यायालय इसे ख़ारिज करने के लिए उसी प्रक्रिया पर वापस लौटेगा। यह कभी न खत्म होने वाली प्रक्रिया है। इससे फिर उपचुनाव करना होगा और फिर से चुनाव लेना मतलब जनता के पैसों की बर्बादी होगी।

Created On :   5 July 2024 11:22 AM IST

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