पहल: अब न्याय की देवी’ की जगह ले सकते हैं ‘न्याय के देवता’, मुहिम हुई तेज

  • बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा की मुहिम
  • संघ प्रमुख मोहन भागवत से की शुरुआत
  • न्याय के देवता’ की परिकल्पना धार्मिक ग्रंथों से

सुनील हजारी , नागपुर। देश भर में शहरों और मार्गों के नाम बदलने की कवायदें जारी हैं। यहां तक कि शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव के तहत नई शिक्षा नीति लाई गई है। हालांकि इस पर लगातार बहस चल रही है। इसी बीच एक और बड़े बदलाव की सुगबुगाहट शुरू हुई है। न्यायालयों में ‘न्याय की देवी’ की जगह ‘न्याय के देवता’ को प्रतिस्थापित करने और पहचान दिलाने की मुहिम तेजी से आकार ले रही है। इस मुहिम की जिम्मेदारी खुद बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा के मेंबर एवं पूर्व चेयरमैन ने ली। इसकी शुरुआत संघ प्रमुख मोहन भागवत को ‘न्याय के देवता’ का चित्र देकर की गई। मुहिम को संघ से जोड़कर देखा जा रहा है। हालांकि संघ का कोई भी पदाधिकारी इस पर बोलने को तैयार नहीं हैं। वह इस मुहिम से पल्ला झाड़ते नजर आए।

धर्म ग्रंथों से ली ‘न्याय के देवता’ की परिकल्पना : अब जो ‘न्याय के देवता’ की परिकल्पना की गई है, वह धार्मिक ग्रंथों से ली गई है। इसमें न्याय करने वाले को अभय के रूप में शेर के चेहरे का प्रतीक दिया गया है। एक हाथ में दंड है, जिसमें ध्वजा भी लगा हुआ है। दूसरे हाथ में सूत्र (धागा) दिखाया गया है। इसका मतलब न्याय करने वाला शेर की तरह निडर होना चाहिए और सूत्र का मतलब है कि नियम कायदों के हिसाब से चलें और जो दंड है, वह हमेशा से न्याय का प्रतीक रहा है।

सीजेआई और बॉम्बे हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस तक बात पहुंचाई : वर्तमान में जो ‘न्याय की देवी’ का कांसेप्ट है, वह हमारा नहीं है। अंग्रेजों के द्वारा लाया गया था। इसकी जगह हमारे धर्म ग्रंथों में न्याय संहिता के मुताबिक न्याय करने के जो गुण होते हैं, उसके आधार पर न्याय के देवता की परिकल्पना की गई है। संबंधित चित्र और उसकी जानकारी हम लोगों और गणमान्यजनों तक पहुंचा रहे हैं। यह मुहिम शुरू की है। ‘न्याय की देवी’ की मूर्ति हटाकर ‘न्याय के देवता’ को रखा जाए, हम ऐसा नहीं कह रहे हैं। हम केवल अपनी बात रख रहे हैं। ‘न्याय के देवता’ की यह मूर्ति और उसकी अवधारणा चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, बॉम्बे हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और न्याय क्षेत्र के कई दिग्गजाें के पास पहुंचाया गया है। इसके बाद की मुहिम क्या होगी, यह अभी से तय नहीं किया जा सकता है। - पारिजात पांडे, पूर्व चेयरमैन, बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा

अभी रोमन देवी हैं ‘न्याय की मूर्ति’ : भारत के न्यायालयों में ‘न्याय की मूर्ति’ एक रोमन देवी नजर आती हैं। यह अंतरराष्ट्रीय प्रतीक हैं। ‘न्याय की देवी’ को रोमन देवी जस्टीशिया के रूप में भी जाना जाता है। वह एक महिला के रूप में दर्शाई जाती हैं, जिनकी आंखों पर पट्टी बंधी होती है। एक हाथ में तराजू और दूसरे में तलवार होती है। यहां तलवार न्याय और विवेक के संतुलन को व्यक्त करते हैं। वहीं आंखों पर पट्टी का मतलब है कि न्याय करते वक्त यह देखना नहीं चाहिए कि सामने कौन है, अपना या पराया। इसके अलावा यह काम निर्भय होकर किया जाना चाहिए।

Created On :   29 May 2024 4:20 PM IST

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