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हेल्थ: राज्य में दुर्लभ बॉम्बे ब्लड ग्रुप के 300, नागपुर में केवल 5 लोग
- मुंबई की एनआईआईएच लैब में जांच के बाद होती है पुष्टि
- देश के अनेक राज्य दुर्लभ रक्त समूह के प्रति नहीं गंभीर
- ब्लड ग्रुप के लोगों की सही संख्या का पता नहीं चल पा रहा
चंद्रकांत चावरे , नागपुर । सितंबर 2021 में यहां की डॉ. हेडगेवार ब्लड बैंक द्वारा आयोजित रक्तदान शिविर में पिता-पुत्र का रक्त दुर्लभ पाया गया। रक्त जांच मुंबई में एनआईआईएच (राष्ट्रीय इम्यूनोहेमोटोलोजी संस्थान) में की गई थी। तब पुष्टि हुई कि दोनों का रक्त समूह पैरा बॉम्बे है। इसके बाद तीन साल में दो दाता मिले हैं, जो दुर्लभ रक्त समूह के थे। इनमें से एक पुणे व दूसरा हैदराबाद में मिला। राज्य में पैरा बॉम्बे तो अतिदुर्लभ है ही, लेकिन बॉम्बे ब्लड ग्रुप भी दुर्लभ श्रेणी का है। राज्यभर में इस रक्तसमूह के 300 लोग सूचीबद्ध हैं। नागपुर में यह संख्या 5 बताई गई है। एसबीटीसी (स्टेट ब्लड ट्रांन्सफ्यूजन काउंसिल) ने राज्य की सभी ब्लड बैंकों को दुर्लभ रक्त समूह के दाता सामने आने पर इसकी सारी जानकारी एनआईआईएच के साथ साझा करने को कहा है। ताकि दुर्लभ रक्तदाताओं का एक रजिस्टर बनाया जा सके। लेकिन महाराष्ट्र को छोड़ अन्य राज्य की ब्लड बैंक इसके प्रति संवेदनशील नहीं है। परिणामस्वरुप इस ब्लड ग्रुप के लोगों की सही संख्या का पता नहीं चल पाता।
दो वर्ग एक दुर्लभ ताे दूसरा अति दुर्लभ : बॉम्बे ब्लड ग्रुप और पैरा बॉम्बे ब्लड ग्रुप दोनाें अलग-अलग हैं। बॉम्बे को दुर्लभ तो पैराबॉम्बे आरएच निगेटिव को अतिदुर्लभ माना जाता है। अतिदुर्लभ ग्रुप के राज्य में केवल 25 दाता बताए गए हैं। इनमें भी कुछ लोग रक्तदाता के लिए पात्र नहीं हैं। थिंक फाउंडेशन के पास देशभर से दुर्लभ व अतिदुर्लभ रक्त के लिए ब्लड बैंक, अस्पताल व जरुरतमंदों के कॉल आते है। ऐसे में फाउंडेशन के पास उपलब्ध सूची के आधार पर जरूरतमंदों के लिए उसके आसपास उपलब्ध रक्तदाता से जरूरतमंदों के लिए रक्त संकलन कर भेजा जाता है। दुर्लभ रक्त की आवश्यकता जहां पड़ती है, वहां उस ग्रुप का रक्तदाता हो, यह निश्चित नहीं होता। इसलिए अन्य शहरों से रक्त भेजना पड़ता है। मई महीने में 16 लोगों के सलाइवा सैंपल लिए गए थे। इनमें से केवल एक ही दुर्लभ रक्त समूह का निकला।
देश में हर महीने चाहिए औसत 8 यूनिट : दुर्लभ रक्तदाताओं की सूची मुंबई के थिंक फाउंडेशन द्वारा तैयार की जाती है। यहां के मुख्याधिकारी विनय शेट्टी ने बताया कि उन्हें हर महीने देशभर से औसत 8 कॉल आते हैं। जिसमें बॉम्बे ब्लड ग्रुप की मांग की जाती है। पिछले महीनाभर में वर्धा सें इंदौर, औरंगाबाद से पाेर्टब्लेयर अंडमान, बीड से सातारा, हैद्राबाद से चेन्नई, पुणे से पांडिचेरी व अलग-अलग शहरों से जहां-जहां जरुरत हो वहां रक्त भेजा गया है। सूची के आधार पर रक्तदाताओं से रक्त संकलन कर जरूरतमंदों को भेजा जाता है। शेट्टी के अनुसार ब्लड ग्रुप दुर्लभ होने का संदेह होने पर संबंधित दाता को बुलाकर उनका सलाइवा एनआईआईएच में भेजना जरूरी है। ताकि रक्त की दुर्लभता की पुष्टि हो सके। ऐसे दाताआें को सूचीबद्ध कर सकें। लेकिन अधिकतर ब्लड बैंक वाले इसके प्रति गंभीर नहीं होते। नागपुर की दो प्रमुख निजी ब्लड बैंक इसके प्रति गंभीरता दिखाती है। जबकि सरकारी ब्लड बैंकों में भी दुर्लभ रक्त दाताओं को सूचीबद्ध नहीं किया जाता। उनका कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता।नागपुर में भी यही हाल बताया गया है।
1952 में हुई थी मुंबई में खोज : देश में ब्लड की जिम्मेदारी लेनेवाला, इसकी निगरानी करनेवाला कोई सरकारी विभाग नहीं है। इसलिए दुर्लभ रक्तदाताओं का आंकड़ा सामने नहीं आ रहा है। कही पर दुर्लभ रक्तदाता मिल भी गया तो उसकी जानकारी एनआईआईएच से या थिंक फाउंडेशन से साझा नहीं की जाती। संबंधित व्यक्ति का नाम, नंबर तक नहीं रखा जाता। कुछ तो जानबूझकर टालमटोल करते हैं। जबकि एसबीटीसी ने सभी ब्लड बैंको को दुर्लभ रक्तदाता के मामले में एनआईआईएच को जानकारी देने का निर्देश दिया है। बॉम्बे ब्लड ग्रुप की खोज 1952 में पहलीबार मुंबई (बॉम्बे) मंे डॉ. वाई. एम. भेंडे ने की थी। यह एक दुर्लभ रक्त समूह है। इस समूह के फेनोटाइप में लाल रक्त कोशिका झिल्ली पर एच एंटीजन की कमी होती है और सीरम में एंटी एच होता है। इस रक्त समूह में लाल रक्त कोशिकाओं या स्रावों में कोई ए या बी एंटीजन नहीं पाया जाता है। बॉम्बे फेनोटाइप में, ए एंटीजन, बी एंटीजन और एच एंटीजन की कमी होती है। इस तरह बॉम्बे ब्लड की पहचान की जाती है। यह अनुवांशिकता से भी व्यक्तियों में आता है। माता-पिता दोनों का रक्त समूह एक होने पर बच्चे में भी यह रक्त समूह होता है। दुर्लभ बॉम्बे ग्रूप का रक्त अतिदुर्लभ पैरा बॉम्बे वालों को दिया जा सकता है। लेकिन पैरा बॉम्बे ग्रूप का रक्त बॉम्बे ग्रुप को नहीं दिया जा सकता।
Created On :   14 Jun 2024 4:41 PM IST