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हेल्थ: अब भ्रूण संबंधी विसंगतियों को लेकर मेडिकल बोर्ड ही लेगा फैसला
- हाई कोर्ट में राज्य सरकार ने दी जानकारी
- 24 सप्ताह के बाद आपातकालीन गर्भपात को लेकर नीति तय
- राज्य सरकार ने 24 सप्ताह के बाद वैद्यकीय आपातकालीन गर्भपात पर एसओपी बनाई
डिजिटल डेस्क, नागपुर। गर्भ में पल रहा शिशु कई बार प्राकृतिक रूप से ठीक से विकसित नहीं हो पाता है। अधिकतर मामलों में परिवार को बीस हफ्ते बाद इस बात का पता चलता है। ऐसे समय में शिशु के साथ-साथ मां की जान को भी खतरा होता है। कई माताएं गर्भपात की अनुमति के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाती हैं। इसलिए बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने विचार व्यक्त किया कि, राज्य सरकार को ऐसे मामलों में एक नीति तैयार करनी चाहिए। साथ ही राज्य सरकार को जवाब दाखिल करने का आदेश दिया था।
यह निर्देश दिया : कोर्ट के विचारों पर उचित कदम उठाते हुए राज्य सरकार ने 24 सप्ताह के बाद वैद्यकीय आपातकालीन गर्भपात पर एसओपी (मानक संचालन प्रक्रिया) बनाई है। बुधवार को न्या. नितीन सांबरे और न्या. अभय मंत्री के समक्ष हुई सुनवाई में राज्य सरकार ने इस बारे में जानकारी दी। एसओपी के अनुसार भ्रूण 24 सप्ताह के ऊपर है और भ्रूण संबंधी विसंगतियां हैं, तो अब संबंधित जिला स्तर पर मेडिकल बोर्ड को गर्भपात पर फैसला लेना है। इसलिए अब इन महिलाओं को हाई कोर्ट में याचिका दायर करने की जरूरत नहीं है।
यह है पूरा मामला : वर्धा जिले की एक महिला ने गर्भपात की इजाजत के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। कोर्ट ने इस मामले पर संज्ञान लेते हुए इसे जनहित याचिका में तब्दील करने का आदेश दिया। याचिकाकर्ता महिला की शादी 22 मई 2021 को पंजीकृत विवाह के माध्यम से हुई थी और उसका परिवार मजदूरी करके जीवन यापन कर रहा है। पहला बच्चा ठीक होने के बाद, परिवार को 15 अगस्त 2023 को पता चला कि वह फिर से गर्भवती है।
22 फरवरी 2024 को अल्ट्रा साउंड सोनोग्राफी के बाद डॉक्टर ने पाया कि भ्रूण के फेफड़ों में कोई विकास नहीं हुआ है। तो, अगले दिन कलर डॉपलर सोनोग्राफी से पता चला कि भ्रूण में एक दुर्लभ आनुवंशिक विकार था। तब भ्रूण 26 सप्ताह का था। इसलिए याचिकाकर्ता मां की जान को खतरा था। 19 मार्च, 2023 को महिला को नागपुर में मेडिकल अस्पताल में भर्ती कराया गया और स्त्री रोग विशेषज्ञ द्वारा जांच की गई। इसमें विशेषज्ञों ने गर्भपात की सलाह दी। इसलिए महिला ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और याचिका दायर कर गर्भपात कानून के तहत गर्भपात कराने की इजाजत मांगी। याचिकाकर्ता की ओर से एड. प्रियंका आठवले अरबट और राज्य सरकार की ओर से मुख्य सरकारी वकिल देवेन चौहान ने पैरवी की।
अत्याचार पीड़ितों को छूट नहीं : गर्भपात के मामलों में, अत्याचार के माध्यम से गर्भधारण होने वाली पीड़िताओं को भी गर्भपात की अनुमति है। हालांकि, सरकार ने ऐसे मामलों को नियमानुसार हाई कोर्ट के क्षेत्राधिकार में रखा है। इसमें अत्याचार की शिकार नाबालिग लड़कियां भी शामिल हैं। उन्हें इससे छूट नहीं है, लेकिन उन्हें वैद्यकीय गर्भपात कानून के तहत गर्भपात के लिए हाई कोर्ट की इजाजत लेनी होगी।
Created On :   14 Jun 2024 3:48 PM IST