सुरक्षा: नागपुर जिले में 300 किसानों ने लगाए सौर बाड़ जानलेवा नहीं, भागेंगे वन्यजीव

नागपुर जिले में 300 किसानों ने लगाए सौर बाड़ जानलेवा नहीं, भागेंगे वन्यजीव
  • फसल बचाने की अच्छी तरकीब जुटाई
  • क्षेत्र के 400 किसानों ने की मांग
  • 300 को ही इसका लाभ मिल पाया

डिजिटल डेस्क, नागपुर। नागपुर प्रादेशिक अंतर्गत जंगल के पास रहने वाले 300 खेतों में सौर बाड़ लगाए जा रहे हैं। वन्यजीव जैसे ही इसके संपर्क में आएंगे, उन्हें बिजली का झटका लगेगा। हालांकि यह झटका पशु और मानव दोनों के लिए नुकसानदायक नहीं है। इससे पशुओं पर मनोवैज्ञानिक असर पड़ेगा और वह खेत की तरफ नहीं आएंगे। इससे एक ओर किसानों की फसल बर्बादी रुकेगी, वहीं वन विभाग को हर साल जो लाखों रुपए की फसल बर्बादी का मुआवजा देना पड़ता है, उससे भी थोड़ी राहत मिल जाएगी। अभी तक 400 किसानों ने इसकी मांग की है, लेकिन 300 को ही इसका लाभ मिल पाया है।

इस तरह से हैं आंकड़े

2019-20 में 4 हजार 5 सौ 88 खेती नुकसान के बदले में वन विभाग को 3 करोड़ 78 लाख देने पड़े हैं।

2020-21 में 4 हजार 47 खेती नुकसान के बदले वन विभाग को 3 करोड़ 11 लाख रुपए देने पड़े हैं।

2021-22 में 5 हजार खेती नुकसान दर्ज हुए हैं, जिसके बदले में 4 करोड़ से ज्यादा की भरपाई हुई है।

2022-23 में भी खेती नुकसान की संख्या 4 हजार से ज्यादा रहने से 3 करोड़ से ज्यादा का मुआवजा देना पड़ा है।

2023-24 में अभी तक नुकसान डेढ़ हजार खेती तक पहुंचे, वन विभाग को 2 करोड़ से ज्यादा की राशि देनी पड़ी है।

जंगल से सटकर अनेक गांव : नागपुर प्रादेशिक वन विभाग अंतर्गत दक्षिण उमरेड, उत्तर उमरेड, नरखेड, कोंढाली, काटोल, हिंगना, देवलापार, पारशिवनी, रामटेक, पवनी, कलमेश्वर, सेमिनरी हिल्स, बुट्‌टीबोरी, खापा आदि क्षेत्र आते हैं। इन क्षेत्र में जहां एक ओर वन्यजीव रहते हैं, वहीं क्षेत्र अंतर्गत एक हजार से ज्यादा गांव बसे हैं। ये जंगल से सटकर ही हैं। यहां रहने वाले अधिकतर लोग खेती कर जीवन यापन करते हैं। जंगल से लगकर ही इनकी खेती है, लेकिन रात के वक्त वन्यजीव जैसे हिरण, सुअर, नीलगाय आदि खेत में आकर फसल को खा जाते हैं। फसल बर्बाद होने से किसानों को बड़ा आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसे में नुकसान भरपाई में लाखों रुपए का मुआवजा वन विभाग को देना पड़ता है। खेतों में कभी कभार बाघ या तेंदुए भी आ जाते हैं। कई बार परिसर में बने कुएं में वे गिर जाते हैं।

अब खेती की दहलीज तक : जानकारों की माने तो वर्षों पहले वन्यजीव खेत तक नहीं पहुंच पाते थे, जिसका मुख्य कारण जंगल व खेती के बीच में बफर जोन था। यानी ऐसी खाली जगह जहां न तो खेती होती थी, और न ही वन्यजीवों का बसेरा। जंगल व खेती के बीच में पड़ने वाली यह गैप काफी बड़ी होती थी। ऐसे में वन से निकलने वाले वन्यजीव खेत तक नहीं पहुंच पाते थे। अब ऐसा नहीं रहा। खेती का दायरा हर साल थोड़ा-थोड़ा कर बढ़ते जाने से खेती जंगलों से कुछ ही दूरी तक रह गई है। इस कारण खेती में लगने वाली ज्वार, गेहूं, चावल यहां तक सब्जियां वन्यजीवों के पहुंच में आ रही है।

Created On :   5 July 2024 7:01 AM GMT

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