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संस्कृति का जतन: विविध भारतीय भाषाएं देश का सांस्कृतिक व भाषिक वैभव हैं
डिजिटल डेस्क, नागपुर। मातृभाषा के अतिरिक्त कम से कम 1 अन्य भारतीय भाषा सीखकर भाषा दूत बनने का संकल्प करें। यह आह्वान कवि कुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय के उप-कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने किया। वे तमिल महाकवि सुब्रमण्यम भारती की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे। प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि विविध भारतीय भाषाएं देश का सांस्कृतिक व भाषिक वैभव हैं। यह विविधता केवल शाब्दिक नहीं, अपितु मातृभाषा के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषा सीखने बोलने व इन भाषा का संरक्षण व प्रसार करने की आवश्यकता है। उन्होंने सभी भारतीय भाषाओं का सौंदर्य व अस्तित्व उनकी बोली व प्रत्यक्ष व्यवहार में होने की बात कही। प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि अन्य भाषा को आत्मसात करने पर सभी भाषाओं का प्रवाह बना रहेगा व हम भाषा-दूत बन सकेंगे। महाकवि भारती की जयंती पर मनाए जाने वाले भारतीय भाषा दिवस के उपलक्ष्य में उन्होंने भाषा-दूत बनने का संकल्प लेने के लिए प्रेरित किया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में विविध रोजगार क्षम कौशल्य विकसित करने पर बल देते हुए उन्होंने बहुभाषी होना महत्वपूर्ण कुशलता निरुपित किया।
Created On :   12 Dec 2023 8:08 AM GMT