Nagpur News: हर साल 18 मरीज पाए जाते है फ्लोरोसिस पीड़ित, सामग्री नहीं मिलने से उपचार अटका

हर साल 18 मरीज पाए जाते है फ्लोरोसिस पीड़ित, सामग्री नहीं मिलने से उपचार अटका
  • ग्रामीण में फ्लोराइड युक्त पानी से होती है बीमारी
  • सामग्री नहीं मिलने से पीड़ितों का उपचार अटका
  • योजना शुरू कर रामभरोसे छोड़ देती है सरकार

Nagpur News शासकीय दंत चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल के माध्यम से हर साल सरकारी योजना अंतर्गत दांतों की विविध बीमारियों का उपचार किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों पर लक्ष्य केंद्रित इन योजना अंतर्गत पहले जांच व बाद में उपचार किया जाता है। जांच के लिए स्थानीय स्वास्थ्य केंदों की टीम सह्योग करती है। इसके बाद शासकीय दंत चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल की टीम बीमारियों का उपचार करती है। फ्लाेरोसिस के मामले में केंद्र सरकार का राष्ट्रीय फ्लोरोसिस रोकथाम एवं नियंत्रण कार्यक्रम (एनपीपीसीएफ) है। इसके अंतर्गत फ्लोरोसिस के मरीजों का उपचार करने निधि अथवा सामग्री मुहैया करायी जाती है। नागपुर विभाग में पिछले साल जांच के दौरान 18 फ्लोरोसिस ग्रस्त मरीजों का उपचार किया गया था। इस साल 18 मरीजों का उपचार करना है। लेकिन योजना अंतर्गत सामग्री नहीं मिलने से उनका उपचार अटका है। इधर शासकीय दंत चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल भी सामग्री का इंतजार कर रही है। कुल मिलाकर यह माना जा रहा है कि सरकार योजनाएं शुरु कर बाद में उसे रामभरोसे छोड़ दिया जाता है।

कुआं, बोरवेल, दूषित पानी बीमारी का कारण : सूत्रों ने बताया कि नागपुर ग्रामीण में फ्लोरोसिस के मरीज पाए जाते है। इनमें सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र पारशिवनी बताया गया है। फ्लोरोसिस अब सार्वजनिक समस्या बन चुकी है। इस बीमारी का प्रमुख कारण पेयजल है। कुआं, बोरवेल का पानी, दूषित पानी, खाद्य पदार्थों, औद्योगिक प्रदूषकों के माध्यम से फ्लोराइड अधिक मात्रा में शरीर में प्रवेश करता है। इसके परिणामस्वरुप दंत फ्लोरोसिस, कंकाल फ्लोरोसिस, गैर-कंकाल फ्लोरोसिस आदि बीमारियां होती है। इसका असर दांतों पर होता है। इस बीमारी से अधिकतर बच्चे प्रभावित होते हैं। फ्लोरोसिस होने पर दातों का रंग बिगड़ने लगता है। दातों के इनेमल के सतह पर सफेद, पीले, भूरे या काले धब्बे, धारियां आदि हो जाते है। मसूढ़ों का रंग भी बदल जाता है। बीमारी का स्तर बढ़ने पर शरीर की हडि्डयों, गर्दन, रीढ़ की हड्‌डी, कंधे, कूल्हे, घुटने व अन्य जोड़ों को प्रभावित करता है। इससे दर्द, कठोरता व अकड़न होने लगती है। उपचार नहीं किया गया तो दिव्यांगता की संभावना होती है।

18 मरीजों का नहीं हो पाया उपचार : नागपुर विभाग अंतर्गत आनेवाली विविध तहसीलों के ग्रामीण क्षेत्रों के स्वास्थ्य केंद्रों की टीम ने 2022-23 में ग्रामीण क्षेत्रों में जांच की थी। उस समय दातों की अलग-अलग बीमारियां पायी गई थी। उनमें 18 ऐसे मामले सामने आये थे, जो फ्लोरोसिस पीड़ित थे। स्वास्थ्य केंद्रों ने इसका ब्योरा शासकीय दंत चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल काे दिया था। यहां के डॉक्टरों की टीम ने उनका उपचार राष्ट्रीय फ्लूरोसिस रोकथाम एवं नियंत्रण कार्यक्रम (एनपीपीसीएफ) योजना अंतर्गत किया था। जिला प्रशासन की मध्यस्थता से योजना अंतर्गत उपचार के लिए सामग्री मिली थी। इसलिए 18 मरीजों का उपचार हो पाया था। 2023-24 में भी 18 पीड़ित पाए गए। इनका उपचार नहीं किया गया है। सूत्रों ने बताया कि इन पीड़ितों का उपचार करने के लिए जरुरी सामग्री नहीं मिल पायी है। बताया गया कि फ्लोरोसिस के उपचार सामग्री महंगी होती है। इसलिए योजना अंतर्गत मिलनेपर ही उपचार किया जा सकता है। जब तक सामग्री नहीं मिलेगी, तब तक 18 मरीजों का उपचार नहीं हो पाएगा। मरीजों में अधिकतर स्कूली बच्चे बताए गए हैं।

अन्य बीमारियों का कारण बन सकता फ्लोरोसिस : फ्लोरोसिस दातों, हडि्डयों, जोड़ों के अलावा शरीर में ग्रैस्ट्रो व अन्य बीमारियों का कारण बन सकता है। बढ़ता उद्योग जगत, जल प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषक आदि के चलते पेय जल दूषित हो रहा है। इसके कारण ग्रामीण व आसपास के क्षेत्रों में फ्लोरोसिस पीड़ितों की संख्या में बढ़ोतरी की संभावना है। इसलिए सरकार ने इसकी रोकथाम व नियंत्रण के लिए योजना शुरु की है। 19 राज्यों के 230 जिलों में फ्लोराईड युक्त जल होने की रिपोर्ट है। इसमें महाराष्ट्र के कुछ जिले भी शामिल है। इसलिए 2008 में राष्ट्रीय कार्यक्रम एनपीपीसीएफ शुरु किया। इसके अंतर्गत फ्लोरोसिस पीड़ितों का निशुल्क उपचार, बीमारी का नियंत्रण व रोकथाम का प्रयास जारी है।

Created On :   21 Sept 2024 12:07 PM GMT

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story