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Nagpur News: कब सुधरेंगे - 872 सरकारी स्कूलों का सर्वेक्षण 33 प्रतिशत में पीने का पानी नहीं
- पहली से आठवीं तक के 33 फीसदी सरकारी स्कूलों के हाल
- सरकारी स्कूलों में बच्चों को पीने का पानी नहीं मिल रहा
- 6 फीसदी स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग से टायलेट नहीं है
Nagpur News : निखिल जनबंधू | महाराष्ट्र में ग्रामीण इलाकों के कक्षा पहली से आठवीं तक के 33 फीसदी सरकारी स्कूलों में बच्चों को पीने का पानी नहीं मिल रहा है। यह चौंकाने वाला खुलासा प्रथम संस्था की रिपोर्ट "असर - 2024' में हुआ है। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि 6 फीसदी स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग से टायलेट नहीं है। साफ पर्यावरण और शुद्ध जल यह व्यक्ति का मौलिक अधिकार है, लेकिन दुखद स्थिति यह है कि सरकार स्कूलों में पीने के लिए पानी तक नहीं पहुंचा पाई है।
हकीकत : प्रथम संस्था की रिपोर्ट बताती है कि राज्य में एक ओर 95 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में मध्यान्ह भोजन दिया जा रहा है, लेकिन अफ़सोस की बात है कि, आज भी 19 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में पीने के पानी की सुविधा नहीं है। 14 प्रतिशत स्कूलों में पीने के पानी के लिए टंकी या नल तो है, लेकिन उनमें पानी मौजूद नहीं है। यानी कुल मिलाकर 33 प्रतिशत स्कूलों में पीने का पानी उपलब्ध नहीं है।
872 सरकारी स्कूलों का दौरा
प्रथम संस्था ने महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाके में कक्षा पहली से आठवीं तक के सबसे बड़े 872 सरकारी स्कूलों का दौरा किया। इसमें 409 प्राथमिक और 463 उच्च प्राथमिक स्कूल शामिल हैं। इन स्कूलों के सर्वेक्षण के आधार पर यह रिपोर्ट जारी की गई। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2024 में 95 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में छात्रों को मध्यान्ह भोजन मिल रहा है। वर्ष 2010 में मध्यान्ह भोजन का प्रतिशत 90 था। वर्ष 2018 में यह 94 प्रतिशत था। बाद में वर्ष 2022 में यह घटकर 93 प्रतिशत हुआ और 2024 में इसमें 2 प्रतिशत की बढ़त हुई।
नहीं ‘सुधरे’ जिम्मेदार
स्कूलों में पीने के पानी की सुविधा की बात करें तो, वर्ष 2010 में 18.7 प्रतिशत स्कूलों में पीने का पानी की सुविधा नहीं थी। वर्ष 2018 में इसमें सुधार होकर 15.7 प्रतिशत हुआ। वर्ष 2022 में भी इसमें और सुधार हुआ, जिससे स्कूलों में पीने के पानी की सुविधा नहीं होने वाले घटकर स्कूल 12.3 प्रतिशत रह गए, लेकिन 2024 में यह समस्या बढ़कर सीधे 19 प्रतिशत तक पहुँच गई। जिन स्कूलों में टंकी या नल तो थे, लेकिन उनमें पानी नहीं था, वे क्रमशः वर्ष 2010 में 12.3 फीसदी , 2018 में 13.4 फीसदी, 2022 में 20.4 फीसदी और 2024 में 14.4 फीसदी थे।
छात्रों के लिए कंप्यूटर आज बेहद आवश्यक, लेकिन
- 52 प्रतिशत ही प्रदेश के स्कूलों में छात्रों के उपयोग हेतु कंप्यूटर आज उपलब्ध है।
- 48 प्रतिशत स्कूल आज भी ऐसे हैं, जहां छात्रों के उपयोग हेतु कंप्यूटर उपलब्ध नहीं।
- 31.3 प्रतिशत स्कूलों में कंप्यूटर है, लेकिन छात्रों द्वारा इसका उपयोग नहीं किया जा रहा है। }20.4 प्रतिशत ही स्कूलों में छात्र-छात्राओं द्वारा कंप्यूटर का इस्तेमाल किया जा रहा है।
लड़कियों के अलग से शौचालय जरूरी है, लेकिन
- 6 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के शौचालय के लिए कोई अलग प्रावधान नहीं है।
- 21.7 प्रतिशत स्कूलों में अलग प्रावधान है, लेकिन ताला लगा हुआ है।
- 13.9 प्रतिशत स्कूलों में शौचालयों के लिए अलग प्रावधान है, खुला है लेकिन उपयोग योग्य नहीं है।
- 58.3 प्रतिशत शौचालयों का अलग प्रावधान है, खुला है और उपयोग हो रहा है।
कुल मिलाकर ऐसी स्थिति : सभी के लिए शौचालय सुविधा की बात करे तो 2.8 प्रतिशत स्कूलों में शौचालय की सुविधा नहीं है। 35.4 प्रतिशत स्कूलों में शौचालय की सुविधा तो है लेकिन वह उपयोग योग्य नहीं है।
लाइब्रेरी की भी यह स्थिति
- 11 प्रतिशत स्कूलों में छात्रों के लिए लाइब्रेरी की सुविधा नहीं है।
- 37.3 प्रतिशत स्कूलों में लाइब्रेरी है, लेकिन छात्रों द्वारा इसका उपयोग नहीं किया जा रहा। }51.7 प्रतिशत स्कूलों में ही छात्रों द्वारा लाइब्रेरी का उपयोग किया जा रहा है।
"प्रथम' और "असर' क्या है : प्रथम संस्था राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली एक अग्रणी गैर-सरकारी संस्था है, जो पिछले दो दशकों से भारत के अधिकांश राज्यों में बच्चों के आधारभूत शैक्षणिक स्तर को सुधारने के लिए कार्य कर रही है। वहीं, असर एक वार्षिक सर्वेक्षण है जो ग्रामीण भारत में बच्चों की स्कूली शिक्षा और सीखने के स्तर का आकलन करता है।
Created On :   3 Feb 2025 6:42 PM IST